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खेत-खलिहान के साथ देश बचाने की लड़ाई में कूदे हैं किसान 'वोट की चोट' जरूरी : अतुल अंजान

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Published : Sep 6, 2021, 7:57 PM IST

Updated : Sep 6, 2021, 8:45 PM IST

तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसान संगठनों का आंदोलन अब और विस्तृत होता दिख रहा है. यूपी के मुजफ्फरनगर में इसका उदाहरण देखने को मिला, जब बड़ी संख्या में देश के अलग-अलग हिस्से से लोग किसान महापंचायत में पहुंचे. हालांकि सत्ता पक्ष ने मुजफ्फरनगर किसान महापंचायत को पूरी तरह राजनीतिक बताया है. इन्हीं मुद्दों पर ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता अभिजीत ठाकुर ने अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय महासचिव अतुल अंजान से विशेष बातचीत की.

Anjaan
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नई दिल्ली : किसान महापंचायत के साथ ही संयुक्त किसान मोर्चा ने मिशन यूपी का ऐलान किया और राज्य से योगी सरकार को उखाड़ फेंकने की अपील भी कर दी है. किसान आंदोलन और उस पर लगातार राजनीतिक होने के आरोप पर अतुल अंजान ने कहा कि जब तीन कृषि कानून लाए गए, एमएसपी पर गारंटी की मांग को अस्वीकार किया गया और कानूनों में आवश्यक वस्तु अधिनियम को खत्म करने का प्रावधान रखा गया तो वह निर्णय भी पूर्णतः राजनीतिक ही था.

अंजान ने सरकार को घेरते हुए कहा कि किसानों ने इस निर्णय के खिलाफ आवाज उठाई, हमने भी विरोध किया तो आंदोलन को राजनीतिक बताया जा रहा है. खाद्य तेल की बढ़ती हुई कीमतों का उदाहरण देते हुए अतुल अंजान ने कहा कि चार माह के भीतर दुगने से भी ज्यादा हो चुके खाद्य तेल की कीमतें बताती हैं कि आवश्यक वस्तु अधिनियम न होने के क्या कुप्रभाव होंगे.

ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता अभिजीत ठाकुर की अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय महासचिव अतुल अंजान से विशेष बातचीत

सामान्य व्यक्ति को बचाने वाले इस कानून के तहत कोई जमाखोरी नहीं कर सकता और बाजार में कृत्रिम कमी पैदा कर मनमाफिक कीमत तय नहीं कर सकता. यह सरकार इस कानून को निरस्त कर बड़े उद्योगपतियों को लूटने की खुली छूट देना चाहती है. कारखानों से निकलने वाले उत्पाद पर उद्योगपतियों को अधिकार है कि वह एमआरपी तय करते हैं. लेकिन किसान को MSP यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य लेने का भी अधिकार नहीं होता.

पिछले साल नवंबर माह में तीन कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली के बोर्डर पर आंदोलन शुरू हुआ तो मांगें तीन कानून रद्द करने और एमएसपी पर गारंटी के साथ खरीद के लिए कानूनी प्रावधान की थी लेकिन सरकार इस पर सहमत नहीं हुई.

किसान मोर्चा ने रणनीति बदलकर सत्तासीन भाजपा और उनके घटक दलों को चुनाव में नुकसान पहुंचा कर वोट की चोट देने का आवाह्न कर रही है. पहले किसान नेता पश्चिम बंगाल चुनाव में भाजपा के खिलाफ प्रचार करने पहुंचे और अब उत्तर प्रदेश में दखल का ऐलान कर दिया है.

ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि किसानों का मुद्दा कहीं पीछे रह कर अब किसान मोर्चा सरकार गिराने और बनाने के काम में अपनी भूमिका ज्यादा निभा रहे हैं. अतुल अंजान ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि किसान लुटने वाले हैं और ऐसी परिस्थिति में उनके पास यही विकल्प है.

किसान अपने बचाव के लिए सरकार को बदलने की बात कर रहे हैं. यदि इसमें उन्हें राजनीति नजर आती है तो यही सही. मुजफ्फरनगर में शक्ति प्रदर्शन के बाद सोमवार को संयुक्त किसान मोर्चा एक बार फिर हरियाणा के करनाल पहुंचने के लिए कमर कस चुका है.

करनाल में किसानों पर लाठी चार्ज का ऑर्डर करने वाले एसडीएम की बर्खास्तगी और मृतक किसान के परिवार को 25 लाख रुपये मुआवजे और एक सदस्य को सरकारी नौकरी की मांग के साथ किसान मोर्चा ने खट्टर सरकार को 6 सिंतबर तक की मोहलत दी थी, जो सोमवार को खत्म हो चुकी है.

अतुल अंजान ने बताया कि मंगलवार को किसान मोर्चा की एक बैठक करनाल में होगी जिसके बाद तय किया जाएगा. लेकिन सरकार इसलिए अधिकारी को बर्खास्त नहीं कर रही क्योंकि वह भाजपा के राज्यसभा सांसद और संघ के करीबी नेता के रिश्तेदार हैं.

संयुक्त किसान मोर्चा का अगला बड़ा कदम 27 सितंबर को भारत बंद सफल बनाने का है. इससे पहले भी भारत बंद का आवाह्न किसान मोर्चा द्वारा किया गया था लेकिन 27 सितंबर के भारत बंद को बड़े स्तर पर सफल बनाने की बात हो रही है.

अतुल अंजान ने कहा कि पहले के भारत बंद भी सफल रहे और आने वाली 27 सितंबर को भी भारत बंद पूर्ण रूप से सफल रहेगा. अतुल अंजान ने आगे कहा कि किसानों की लड़ाई अब खेत खलिहान को बचाने के साथ साथ देश और उसकी संस्कृति को बचाने तक पहुंच चुकी है. जनता द्वारा दिए गए टैक्स से जो संपत्ति आज तक देश की बनी है, उन सबको प्राइवेट हाथों में बेचकर यह सरकार धन इकट्ठा करना चाहती है. किसानों की लड़ाई इसके खिलाफ भी है.

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मोदी सरकार ने पांच साल में किसनों की आय दुगनी करने की बात कही थी लेकिन आय दुगनी हुई चंद उद्योगपतियों और बिजनेस घरानों की. मुजफ्फरनगर में यह ऐलान हो चुका है कि यदि सरकार तीन कृषि कानूनों पर पीछे नहीं हटती तो किसान भी नहीं हटेंगे. 27 सितंबर का भारत बंद भी यही संदेश देगा. सरकार को देखना और समझना चाहिए कि जनता क्या चाहती है.

Last Updated :Sep 6, 2021, 8:45 PM IST
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