ग्वालियर। दीपावली का त्यौहार नजदीक है और हिंदू धर्म में इस त्योहार को बहुत ही हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है. इसके साथ ही हिंदू धर्म में एक मान्यता भी है कि इस समय भगवान श्री राम 14 वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या आए थे. इसलिए नगर वासियों ने घी के दीए जलाकर खुशियां मनाई थी. हिंदू धर्म के अलावा सिख धर्म में भी दीपावली के पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है. आइये जानते हैं कि सिखों की दीपावली मनाने की शुरुआत कैसे और कब हुई और ग्वालियर से इसका क्या नाता है. पढ़िए ग्वालियर से अनिल गौर की यह रिपोर्ट...
सिखों में दीपावली मनाने की शुरुआत: ग्वालियर के विश्व प्रसिद्ध किले पर स्थित एक बड़े हिस्से में ऐतिहासिक गुरुद्वारा बना हुआ है. इस गुरुद्वारा को दाताबंदी छोड़ के नाम से जाना जाता है. यहां पर पूरे विश्व भर से सिख समुदाय के लोग आते हैं. इसी गुरुद्वारे से सिखों की दीपावली मनाने की शुरुआत हुई. हर साल सिख समुदाय के लोग पूरे धूम-धाम से दीपावली का त्योहार मनाता है. दिवाली के दिन इस गुरुद्वारे पर विश्व भर से लोग पहुंचते हैं. इसलिए कहा जाता है कि सिखों की दिवाली मनाने की शुरुआत ग्वालियर से हुई है.
साल 1606 में जेल में गुरु हरगोबिंद राय को कराया कैद: आपको बता दें यह बात सन 1606 की है. जब पिता की हत्या के बाद हरगोबिंद ने छोटी उम्र में अपने गुरु की पदवी को संभालने की जिम्मेदारी दी गई. उस दौरान मुगल साम्राज्य का आतंक चल रहा था. 11 साल की उम्र में गुरु हरगोबिंद के बढ़ते प्रभाव को देखकर मुगल शासक जहांगीर ने उन्हें बंदी बनाकर ग्वालियर के किले पर स्थित एक जेल में कैद कर दिया. जब गुरु हरगोबिंद जेल के अंदर पहुंचे तो उसमें पहले से ही 52 हिंदू राजा कैद थे. जेल के अंदर गुरु हरगोबिंद साहिब का प्रभाव कम नहीं हुआ. जेल के अंदर कैद 52 हिंदू राजाओं को उन्होंने अपना बना लिया.
जहांगीर अपने बीमार पड़ने की वजह जानकर हुआ हैरान: वहीं 52 हिंदू राजाओं ने भी गुरु हरगोबिंद का स्वागत किया. इस बीच एक दिन जहांगीर बीमार पड़ गया और लगातार इलाज मिलने के बाद भी उसकी बीमारी में कोई अंतर दिखाई नहीं दिया. बीमारी में कोई फायदा ना मिले के कारण जहांगीर ने एक दिन काजी को बुलवाया. काजी ने जहांगीर की बीमारी को देखते हुए सलाह दी कि आपकी बीमारी की वजह एक सच्चे गुरु को किले में कैद करना है. काजी की इस बात को सुनकर जहांगीर आश्चर्यचकित हो गया.
जहांगीर ने तुरंत हरगोविंद सिंह को रिहा करने के दिए आदेश: जहांगीर से काजी ने कहा कि अगर आप जेल के अंदर सच्चे गुरु यानी हरगोबिंद को रिहा नहीं करेंगे, तब तक आपकी बीमारी में कोई फायदा नहीं होने वाला है. आप दिन-व-दिन बीमार होते चले जाएंगे. लगातार बढ़ती बीमारी को देखकर जहांगीर ने गुरु हरगोबिंद साहिब को छोड़ने का आदेश जारी किया. जैसे ही यह फरमान गुरु हरगोबिंद साहिब के पास पहुंचा, तो उन्होंने रिहा होने से इनकार कर दिया. गुरु हरगोबिंद साहिब की इस बात को सुनकर जहांगीर आग बबूला होकर उनके पास पहुंचा, तो उन्होंने कहा कि मैं इस जेल से अकेला रिहा नहीं होने वाला हूं. अपने साथ इस जेल के अंदर 52 हिंदू राजाओं को भी रिहा करने की बात कही.
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हरगोबिंद राय अपने साथ 52 हिंदू राजाओं को लेकर हुए रिहा: गुरु हरगोबिंद साहिब की इस बात को सुनकर जहांगीर ने एक शर्त रखी और उसकी शर्त थी. किले में गुरुजी के साथ सिर्फ वही राजा बाहर निकलेगा, जो गुरु हरगोबिंद के कपड़ों को पकड़ सकेगा. जितने राजा हरगोबिंद सिंह के कपड़े को पकड़कर बाहर निकलेंगे, उन्हें ही रिहा किया जाएगा. उसके बाद गुरु हरगोबिंद साहिब ने ऐसा कुर्ता सिलवाया, जिसके 52 हिस्से थे. एक-एक कर सभी राजाओं ने गुरु हरगोबिंद साहब के कुर्ते का एक-एक हिस्सा पकड़ा और यह सभी जेल से रिहा हो गए. इसलिए इस गुरुद्वारे को दाता बंदी छोड़ भी कहा जाता है.
ऐसे हुई सिखों की दीपावली की शुरूआत: जब गुरु हरगोबिंद साहिब 52 राजाओं को रिहा करने के बाद बाहर निकले, तो सिख समुदाय ने दीप प्रज्वलित कर खुशियां मनाई. उसके बाद सिखों में दीपावली मनाने की शुरुआत हुई. इसके साथ ही कार्तिक माह की अमावस्या को दाता बंदी छोड़ दिवस भी मनाया जाता है. दीपावली के दो दिन पहले सिख समुदाय के अनुयाई धूमधाम से यहां से अमृतसर स्वर्ण मंदिर पहुंचते हैं. दीपावली के दिन वहां प्रकाश पर्व मनाया जाता है. कहा जाता है कि गुरु हरगोबिंद साहब रिहा होने के बाद सीधे स्वर्ण मंदिर गए थे. सिख धर्म में लोग गुरु हरगोबिंद साहिब को छठवें गुरु के रूप में मानते हैं और यहां साहिब के गुरुद्वारे में माथा टेकने के लिए देश और विदेश से लोग आते हैं.