ETV Bharat / state

जन्मदिन विशेष: शिबू से कैसे बने दिशोम गुरु, यहां जानिए

author img

By

Published : Jan 11, 2023, 9:33 AM IST

Updated : Jan 11, 2023, 10:07 AM IST

Dishom Guru made from Shibu
शिबू से कैसे बने दिशोम गुरु

11 जनवरी यानी आज शिबू सोरेन का 79वां जन्मदिन है (Shibu soren 79th birthday). झारखंड की राजनीति (Politics of Jharkhand) या फिर जल जंगल और जमीन की चर्चा. इन चर्चाओं में दिशोम गुरु यानी गुरुजी नहीं हो तो वह अधूरा है. आज गुरुजी की चर्चा करना लाजमी है. शिबू से कैसे गुरुजी बनें यह काफी लंबा संघर्ष है. इस रिपोर्ट में जानिए गुरुजी की पूरी कहानी.

रांची: शिबू सोरेन आज अपना 79वां जन्मदिन मना रहे हैं (Shibu soren 79th birthday). शिबू सोरेन से गुरुजी बनने की इनकी कहानी संघर्ष से भरी हुई है. अविभाजित बिहार के दक्षिणी हिस्से में सबसे प्रताड़ित और शोषित समाज आदिवासी यानी जनजातीय समुदाय था. इस समुदाय के भाग्य विधाता और आवाज को बुलंद करने वाले शिबू सोरेन 79वें जन्मदिवस मना रहे हैं. इस स्थिति में जेएमएम सुप्रीमो शिबू सोरेन के संघर्ष, सपने और चिंता आज भी प्रासंगिक है. शिबू सोरेन की अपनी मिट्टी और अपने समुदाय के प्रति अटूट प्रेम है. उन्होंने अपने क्रांतिकारी विचार और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ लोगों को संगठित किया. इस अद्भूत क्षमता की वजह से शिबू से गुरुजी बन गए.

यह भी पढ़ेंः झारखंड के दो पुरोधाओं शिबू सोरेन और बाबूलाल मरांडी का जन्मदिन, जानिए कैसा रहा इनका राजनीतिक सफर

अविभाजित बिहार यानी आज के झारखंड में महाजनी प्रथा चरम पर थी. आदिवासी समुदाय के लोगों को अपनी पैदावार का सिर्फ एक तिहाई हिस्सा मिलता था. बाकी सूदखोर उठा ले जाते थे. बात यहीं तक नहीं थी, जो लोग घर की परेशानी और दूसरे कारणों से महाजनों के सूद को नहीं चुका पाते थे तो उनकी परेशानी और बढ़ जाती थी. हालांकि इसके खिलाफ शिबू सोरेन के पिता शुभम मांझी आवाज उठाते रहे और उनकी आवाज में इतना जोर था कि सूदखोरों की रूह कांप गई थी. साल 1957 में सूदखोरों के इशारे पर शिबू सोरेन के पिता की हत्या कर दी गई. परिवार इस कदर बिखरा गया कि शिबू को लकड़ी बेचकर जीवन का गुजारा करना पड़ा. लेकिन हौसला, हिम्मत, जुनून शिबू सोरेन में कुछ इस कदर था कि पूरे परिवार को अपनी मेहनत से खड़ा किया.

शिबू सोरेन ने अपने पिता की हत्या के प्रतिशोध में पीड़ित जनजातीय समुदाय के लोगों को एकजुट किया और गोला, पेटरवार और बोकारो इलाके में महाजनी प्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद किया और सामाजिक ढांचे को चुनौती दी. शिबू सोरेन की हनक इतनी हो गई थी कि ओडिशा, पश्चिम बंगाल और बिहार में भी महाजनी प्रथा और उस समय के बने खास समाज को बड़ी चुनौती मिलने लगी. झारखंड में नगाड़े की अगर आवाज आ जाए तो झारखंड के लोगों को यह पता चल जाता था कि गुरुजी का कोई संदेश आया है. महाजनी प्रथा के खिलाफ शिबू सोरेन ने इतना आंदोलन किया कि सूदखोरों को झारखंड में आदिवासी समाज का पीछा छोड़ना पड़ गया. इस मुहिम की सफलता ने उनके आगामी आंदोलन की जमीन तैयार कर दी.

अपने झारखंड को बनाने के लिए मिट्टी की दीवारें जो आदिवासियों के घरों की होती थी उस पर नील और लाल मिट्टी से आदिवासियों के अपने उस साम्राज्य को स्थापित करने का गुरु जी ने आलेख लिखवा दिया. जो आज के झारखंड के लिए बुलंद तस्वीर बनकर खड़ी हैं. कहने के लिए तो गुरु जी ने एक छोटी सी लड़ाई शुरू की थी. जिसमें महाजनों के उत्पात का विरोध था. लेकिन समाज के विद्वेष की जो लड़ाई गुरुजी ने शुरू की, उसमें आज झारखंड की राजनीति उन लोगों के लिए काम कर रही है, जो गरीब हैं, दबे कुचले हैं, जिनकी आवाज शायद ही कभी सत्ता तक पहुंच पाती. आज वह लोग सत्ता पर काबिज हैं. यह सब कुछ सिर्फ और सिर्फ शिबू सोरेन के अपने जीवन के संघर्ष से लिखी गई इबारत की कहानी है. जिसे आज पूरा झारखंड और झारखंड की हर जुबान गुरुजी कहकर बोल रही है.

यह भी पढ़ेंः राष्ट्रपति चुनावः द्रौपदी मुर्मू ने शिबू सोरेन को किया फोन, समर्थन के लिए कहा- शुक्रिया

शिबू सोरेन के महाजनी प्रथा के विरोध का असर इतना जबरदस्त था कि अगर किसी कोने में नगाड़े की आवाज आ जाए तो संदेश पूरे झारखंड में फैल जाता था. 1970 से शिबू सोरेन झारखंड की राजनीति में राजनेताओं के लिए मुद्दा बनना शुरू हो गए थे और शिबू सोरेन की राजनीति से जुड़े बगैर झारखंड की राजनीति में चुनाव का कोई आधार नहीं खड़ा होता था. 1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन हुआ और उस समय बिनोद बिहारी महतो झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष बने और शिबू सोरेन जनरल सेक्रेटरी. लेकिन बाद में निर्मल महतो की मौत के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा की कमान शिबू सोरेन के हाथ में आई. इसके बाद से आज तक झारखंड मुक्ति मोर्चा ने झारखंड में विकास के परचम लहराए. आज भी झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार चल रही है तो उसकी धूरी शिबू सोरेन ही हैं.

शिबू सोरेन ने सीधे तौर पर राजनीति की शुरुआत 1977 में की, जब उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ा था. लेकिन वह लोकसभा चुनाव हार गए. 1980 में उन्होंने दूसरी बार चुनाव लड़ा और जीते. इसके बाद 1989 में तीसरी बार 1991, 1996, 2004, 2009 और 2014 सांसद चुने गए. शिबू सोरेन 2002 में थोड़े समय के लिए राज्यसभा के सदस्य भी रहे और 2004 में मनमोहन सिंह की सरकार में कोयला मंत्री के तौर पर भी काम किया. राष्ट्रीय राजनीति में गुरु जी का मजबूत दखल था और झारखंड की बात दिल्ली तक बगैर गुरुजी के पहुंचती नहीं थी.

शिबू सोरेन ने झारखंड के तीसरे मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य की कमान संभाली. 2 मार्च 2005 को उन्होंने पहली बार झारखंड में मुख्यमंत्री के तौर पर पदभार ग्रहण किया. लेकिन 10 दिनों बाद ही उन्हें रिजाइन करना पड़ा. 2008 में दूसरी बार मुख्यमंत्री बने. इस बार 4 महीने 22 दिनों तक उनका कार्यकाल रहा. जबकि उनका मुख्यमंत्री के तौर पर तीसरा कार्यकाल 30 दिसंबर 2009 से 31 मई 2010 तक का रहा.

शिबू सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा झारखंड की राजनीति में सिर्फ पार्टी नहीं है, बल्कि राजनीति की एक पाठशाला भी है. सियासत के दौर में लालू यादव की जब तूती बोलती थी तो शिबू सोरेन कभी उनके सबसे अच्छे सिपाहसलारों में हुआ करते थे. देश की राजनीति में गुरुजी का अच्छा खासा दखल था. सभी नेता गुरुजी को सम्मान के नजरिए से देखते हैं. इसकी वजह थी कि अपने लिए सियासत, अपने लिए जमीन, अपने लिए घर, अपने लिए जिंदगी, गुरु जी ने खोजी नहीं थी. इसलिए झारखंड ने गुरुजी को अपनाया. आज की राजनीति भी उसका एक बड़ा उदाहरण है. जो सियासत के हर पन्ने पर उनके समर्पण की इबारत के रूप में चमक रही है.

झारखंड राज्य के अस्तित्व में आने और झारखंड की सियासत में जो कुछ होता है और उसमें गुरुजी के दखल की इतनी किंवदंतियां हैं जिसका कोई और ओर-छोर नहीं है. देश की राजनीति में अगर आज अर्जुन मुंडा सरीखे नेताओं का नाम लिया जाता है तो इनके भी राजनीतक गुरु शिबू सोरेन ही रहे हैं. सियासत के पन्नों से अगर अलग जाकर देखा जाए तो गुरुजी ने झारखंड के लोगों के लिए और खासतौर से आदिवासी समाज के लिए सूदखोरों के खिलाफ जिस जंग का ऐलान किया था उसने मानवीय सभ्यता के उस पहलू को इतना मजबूत बनाया जो दशकों से आजादी की सबसे बड़ी कहानी है.

बापू के सिद्धांतों में, बापू की नीतियों में, विकास के आधार में, गांव की पगडंडी तक पहुंचने वाले विकास में अगर सच्चाई की कोई कहानी है तो सबसे बड़ी यही है कि समाज तब तक बड़ा होकर के कुछ लिख नहीं पाएगा जब तक उसके ऊपर दासता प्रथा की जकड़ रहेगी. महाजनी प्रथा की जकड़ से गुरुजी ने झारखंड को आजाद कराया था. देश भले ही 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया हो. लेकिन झारखंड के लोगों को खासतौर से महाजनी प्रथा के कुचक्र से गुरुजी ने आजादी दिलाई थी. झारखंड के विकास के लिए उन्होंने जो कहानी लिख दी है उसी की रोशनी में झारखंड के उत्तरोत्तर विकास की शृंखला आगे चलती रहेगी. ईटीवी भारत शिबू सोरेन जी को उनके जन्मदिन पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देता है.

Last Updated :Jan 11, 2023, 10:07 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.