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डुमरी बना सीएम बनाम तीन पूर्व सीएम का अखाड़ा, रोचक होता जा रहा है उपचुनाव, आखिर क्यों लगा है दिग्गजों का जमावड़ा, पढ़ें रिपोर्ट

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Sep 3, 2023, 1:25 PM IST

Updated : Sep 3, 2023, 2:24 PM IST

डुमरी उपचुनाव काफी दिलचस्प हो चुका है. आज चुनाव प्रचार का अंतिम दिन है. सभी दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. सत्ताधारी इंडिया गठबंधन और एनडीए के तमाम दिग्गज नेता मैदान में खूब पसीना बहा रहे हैं. सभी वोटरों को रिझाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं.

prestige of current CM and three former CM
prestige of current CM and three former CM

रांचीः डुमरी विधानसभा उपचुनाव दिलचस्प होता जा रहा है. यह उपचुनाव मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन बनाम राज्य के पहले मुख्यमंत्री रहे बाबूलाल मरांडी की प्रतिष्ठा से जुड़ गया है. ऐसा पहली बार हो रहा है कि किसी उपचुनाव में राज्य के तमाम दिग्गज नेता पसीना बहाते दिख रहे हैं. एनडीए और इंडिया गठबंधन की ओर से पूरी ताकत झोंक दी गई है. सीएम के पक्ष में सहानुभूति की ताकत है. क्योंकि लगातार डुमरी जीतते रहे जगरनाथ महतो के असमय निधन के बाद पार्टी ने उनकी पत्नी बेबी देवी को मैदान में उतारा है. उनके पक्ष में गठबंधन में शामिल कांग्रेस और राजद के नेता एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं. दूसरी तरफ आजसू प्रत्याशी यशोदा देवी के लिए भाजपा के तमाम दिग्गज गेम चेंजर की भूमिका निभा रहे हैं.

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डुमरी बना सीएम बनाम तीन पूर्व सीएम का अखाड़ाः साल 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद दुमका, मधुपुर, बेरमो, मांडर और रामगढ़ सीट पर उपचुनाव हो चुके हैं. डुमरी छठी सीट है जहां 5 सितंबर को वोटिंग होनी है. लेकिन पहली बार ऐसा हो रहा है जब राजनीतिक दलों के तमाम दिग्गज मैदान में कूद पड़े हैं. आजसू प्रत्याशी के लिए पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास, पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा और प्रथम मुख्यमंत्री सह भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी वोटरों को रिझाने में जुटे हैं. वहीं सत्ताधारी दल की ओर से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कमान संभाले हुए हैं. उनके साथ झामुमो के सभी मंत्री तो लगे ही हुए हैं, साथ ही कांग्रेस कोटे के मंत्री बन्ना गुप्ता, बादल पत्रलेख और आलमगीर आलम ने भी ताकत झोंक रखी है. इससे साफ है कि यह मैच एकतरफा नहीं है. आरोप-प्रत्यारोप का स्तर बता रहा है कि मामला टाइट है.

क्या कहते हैं राजनीति के जानकारः अब सवाल है कि एक सीट पर हो रहे उपचुनाव के दौरान तमाम दिग्गज क्यों उतरे हुए हैं. वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्र ने कहा कि यह तो होना ही था. यहां सीधे तौर पर सीएम की प्रतिष्ठा दाव पर लगी है. डुमरी का मैदान आल्हा-उदल का माधवगढ़ बन गया है. मंत्री रहते बेबी देवी नहीं जीत पाती हैं तो एक परसेप्शन का दौर शुरू हो जाएगा. इस वजह से सीएम को मेहनत करनी पड़ रही है. उन्होंने कहा कि सारा खेल नावाडीह और चंद्रपुरा पर टिका है. अगर झामुमो अपने इस गढ़ को बचा लेता है तब एज मिल जाएगा. लेकिन जिस तरह से बीजेपी यहां काम कर रही है उससे लगता है कि यह खेल झामुमो के लिए आसान नहीं होगा. भाजपा के प्रत्याशी रहे प्रदीप साहू खुद आजसू के सुदेश महतो के साथ पदयात्रा कर रहे हैं. बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि भाजपा अपने वोट को आजसू में कन्वर्ट करा पाती है कि नहीं.

वरिष्ठ पत्रकार मधुकर ने बताया कि यह लड़ाई इंडिया गठबंधन बनाम एनडीए गठबंधन की है. जाहिर सी बात है कि लड़ाई पार्टी के स्तर से ऊपर जा चुकी है. इस उपचुनाव में सिर्फ सीएम और बाबूलाल मरांडी ही नहीं बल्कि कई लोगों की प्रतिष्ठा दाव पर है. ओवैसी के आने से इंडिया गठबंधन का वोट गड़बड़ा रहा है. इसकी वजह से कास्ट स्तर पर फील्डिंग की जा रही है. दूसरी तरफ भाजपा कुर्मी आंदोलन की आड़ में कुर्मी वोटर के बीच अपनी पकड़ मजबूत करना चाह रही है. झारखंड बीजेपी के नेताओं को मालूम है कि सुदेश महतो इस वोट बैंक में अपनी मजबूत पकड़ बना चुके हैं और उनका संबंध बीजेपी आलाकमान के बड़े नेताओं से सीधे तौर पर हो चुका है. वरिष्ठ पत्रकार मधुकर ने बताया कि पूरा खेल इस बात पर निर्भर करता है कि सहयोगी दल के नेता वाकई वोट बैंक शिफ्ट करने जा रहे हैं या खेल को उल्टा करना उनका मकसद है. आमतौर पर उपचुनाव में सत्ताधारी दल की जीत होती है. इसके बावजूद अगर झामुमो यह सीट गंवाती है तो राष्ट्रीय स्तर पर नेगेटिव मैसेज जाएगा. इस सीट पर हार और जीत से झारखंड के आगे की राजनीति भी तय होने वाली है.

जातीय समीकरण पर सत्ताधारी दल की रणनीतिः दोनों गठबंधन जातीय समीकरण पर काम कर रहे हैं. मुस्लिम वोट बैंक में एआईएमआईएम के प्रत्याशी सेंध ना लगा पाएं, इसके लिए मंत्री हफीजुल हसन लगातार कैंप कर रहे हैं. इस काम में मंत्री आलमगीर आलम भी जुटे हुए हैं. वैश्य वोटरों को रिझाने की जिम्मेदारी मंत्री बन्ना गुप्ता को दी गई है. अगड़ी जाति के वोटर को संभालने की जिम्मेदारी बादल पत्रलेख निभा रहे हैं. ट्राइबल वोट बैंक को मंत्री चंपई सोरेन साध रहे हैं. राजद कोटे के मंत्री सत्यानंद भोक्ता भी एससी वोटर को लुभाने में जुटे हैं. हालाकि अब उनकी जाति को एसटी का दर्जा मिल चुका है. वहीं मुख्यमंत्री अपने बयानों और सवालों से माहौल को बेबी देवी के पक्ष में करने में जुटे हैं. डुमरी के चुनावी माहौल को इस बात से समझा जा सकता है कि कभी इस सीट पर जीत दर्ज चुके लालचंद महतो को सीएम अपने मंच पर बुलाकर वोट की अपील करा चुके हैं. लालचंद महतो की कभी डुमरी के एक हिस्से में अच्छी पकड़ थी. हालाकि पिछले चुनाव में उनकी जमानत जब्त हो गई थी. फिलहाल वह बहुजन सदान मोर्चा बनाकर अपनी राजनीति कर रहे हैं. रही बात कांग्रेस के पकड़ की तो इस सीट पर अंतिम बार 1972 में कांग्रेस की जीत हुई थी.

जातीय समीकरण पर विपक्ष की रणनीतिः सत्ताधारी दल की तुलना में विपक्ष की सक्रियता ज्यादा दिख रही है. आजसू पदयात्रा पर फोकस कर रहा है. खासकर जगरनाथ महतो के गढ़ में सुदेश महतो पूरी टीम के साथ डटे हुए हैं. डोर टू डोर कंपेन कर रहे हैं. उनको पूर्व में डुमरी से भाजपा प्रत्याशी रहे प्रदीप साहू भी साथ दे रहे हैं. भाजपा डुमरी मंडल, ससारखो मंडल और निमियाघाट मंडल पर फोकस कर रही है. डुमरी में वैश्य बहुल इलाके में रघुवर दास कार्यक्रम कर चुके हैं. निमियाघाट के वैश्य बहुल इलाके की जिम्मेदारी भी रघुवर दास को ही दी गई है, जिस क्षेत्र में आदिवासी वोट बैंक ज्यादा है, वहां बाबूलाल मरांडी फोकस कर रहे हैं. 2 सितंबर से पूर्व सीएम सह केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा भी मैदान में उतर गये हैं. केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी भी सभा कर चुकी हैं. प्रदेश प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी और संगठन महामंत्री कर्मवीर सिंह बूथ लेवल पर फोकस कर रहे हैं. भाजपा ने आदित्य साहू को डुमरी उपचुनाव प्रभारी की जिम्मेदारी दे रखी है.

डुमरी विधानसभा में कुल तीन प्रखंड हैं. इसमें डुमरी, नावाडीह और चंद्रपुरा प्रखंड के दो पंचायत शामिल हैं. उस सीट पर दो जिलों के वोटर की भूमिका रहती है. डुमरी में भाजपा के दिग्गज के चुनावी सभा कर रहे हैं. चंपई सोरेन, बन्ना गुप्ता वैश्य वोट में सेंध लगा रहे हैं. बादल पत्रलेख, हफीजुल हसन मुस्लिम बहुल क्षेत्र में, एक दिन आलमगीर आलम भी रहे, राजद के सत्यानंद भोक्ता ससारखो में सक्रिय रहे हैं. महुआ माजी को भी चुनाव प्रचार में उतारा गया.

Last Updated : Sep 3, 2023, 2:24 PM IST
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