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झारखंड में फिर फेल हुआ ओवैसी फॉर्मूला, मांडर के बाद डुमरी की जनता ने भी नकारा, जानिए आखिर क्यों झामुमो को मिला मुस्लिमों का साथ

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Sep 9, 2023, 5:48 PM IST

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झारखंड में मांडर के बाद डुमरी में भी ओवैसी फॉर्मूला फेल हो गया. डुमरी उपचुनाव एआईएमआईएम के प्रत्याशी अब्दुल मोबीन रिजवी की जमानत जब्त हो गई. यहां पर झामुमो को मुस्लिम वोटर का भरपूर साथ मिला. कैसे और क्यों झारखंड में ओवैसी फैक्टर कमजोर हो रहा है, जानिए इस रिपोर्ट में...

रांची: डुमरी उपचुनाव में भी ओवैसी फॉर्मूला फेल साबित हो गया. मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं के हवाले से मुस्लिम वोटरों को साधने की ओवैसी की कोशिशें नाकाम हो गईं. अलबत्ता, मुस्लिम वोट का ऐसा ध्रुवीकरण हुआ कि एआईएमआईएम के प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई. यही नहीं अब्दुल मोबीन रिजवी को नोटा से भी कम वोट मिले.

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मांडर उपचुनाव के बाद डुमरी में असदुद्दीन ओवैसी खूब गरजे थे. उनकी सभा में भीड़ भी हुई थी. चर्चा थी कि ओवैसी ने चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया है. लेकिन 5 सितंबर को जब वोटिंग खत्म हुआ तो चुनावी पंडित भी फॉर्मूला नहीं निकाल पाए कि आखिर होना क्या है. इसका असर भी दिखा. कई राउंड के मतो की गिनती तक सस्पेंस बना रहा. आखिर में झामुमो की बेबी देवी 17,153 वोट के अंतर से जीत गईं.

सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि 2019 के विधानसभा में 24,132 वोट लाने वाले एआईएमआईएम के अब्दुल मोबीन रिजवी को महज 3,472 वोट मिले यानी पिछले चुनाव की तुलना में 20,660 वोट कम. नतीजे बताते हैं कि 2019 के विधानसभा चुनाव की तरह ओवैसी की पार्टी के प्रत्याशी अब्दुल मोबीन रिजवी को 24,132 वोट भी मिले होते तो तस्वीर कुछ और हो सकती थी. अब सवाल है कि ओवैसी को इतनी बड़ी पटखनी कैसे मिली. आखिर क्यों नहीं बंटा मुस्लिम वोट. क्या कहते हैं राजनीति के जानकार.

वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्र का कहना है कि अब ओवैसी एक्सपोज हो गये हैं. हैदराबाद को छोड़ दें तो सिर्फ पहली बार वो अट्रैक्ट करते हैं. अब सवाल है कि क्यों. उनके वर्ग को लगता है कि बिना जीते हम मजबूत कैसे होंगे. इनके लोग भागकर बिहार में राजद में शामिल हो गये. ये जो सोचते हैं कि मुस्लिम और दलित वोट से जीत जाएंगे, यह संभव नहीं है. गुजरात में भी गये थे. पिछली बार जो वोट मिला था वो गुजरात में इसबार नहीं मिला. जिस वर्ग का ओवैसी वोट लेते हैं, उसका मकसद होता है कि बीजेपी को नहीं जीतने देना है. डुमरी में यह बात वहां के वोटर समझ चुके थे. इनकी विश्वसनीयता खत्म होती जा रही है. मुस्लिम वोटर अब समझ चुके हैं कि जो भी बीजेपी को हराएगा, उसको उनका साथ मिलेगा. डुमरी में भी वही हुआ.

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वरिष्ठ पत्रकार मधुकर ने बताया कि डुमरी में इंडिया बनाम एनडीए की लड़ाई थी. जब भी अल्पसंख्यक को यह दिखेगा कि कोई वोट कटवा आ गया है तो वो इंडिया गठबंधन की तरफ जाएगा. यहां के मुसलमान पाकिस्तान नहीं जाना चाहते. उनको यहीं रहना है. दूसरा पाकिस्तान बन भी नहीं सकता. वो देख रहे हैं कि ओवैसी का फैक्टर डेमोक्रेटिक और सेक्यूलर नहीं है. मुस्लिम वोटर तब उनके पास जाते हैं जब कोई विकल्प नहीं दिखता. यह परिणाम बता रहा है कि आने वाले दिनों में मुस्लिम वोटर सिर्फ और सिर्फ इंडिया गठबंधन की तरफ ही जाएंगे. जहां मुस्लिम अपने बूते चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं, वहां भी वे क्षेत्रीय स्तर पर तय करेंगे. वरिष्ठ पत्रकार मधुकर ने कहा कि भले भाजपा 2024 को लेकर जो दावे कर ले लेकिन जो तस्वीर दिख रही है कि उससे साफ है कि राजनीति की दिशा बदलने वाली है.

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डुमरी रिजल्ट पर भीतरखाने चर्चा: जाहिर सी बात है कि डुमरी उपचुनाव के नतीजों से आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो हताश होंगे. भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के लिए भी यह चुनाव प्रतिष्ठा से जुड़ गया था. उन्होंने ऐड़ी चोटी का जोर लगाया था. वह लगातार सीएम और सोरेन परिवार पर हमलावर थे. लेकिन कोई फॉर्मूला काम नहीं आया. इसको लेकर भाजपा के भीतरखाने से गम से ज्यादा खुशी दिख रही है. इसकी वजह भी है. चर्चा है कि अगर यह चुनाव आजसू जीत गया होता तो उसका कॉन्फिटेंड सांतवें आसमान पर होता क्योंकि कुछ माह पहली ही रामगढ़ में उपचुनाव में आजसू की जीत हुई थी. दूसरी जीत मिलने पर यह मैसेज जाता कि आजसू के बगैर कुर्मी वोट की गोलबंदी भाजपा के बूते संभव नहीं. इसका असर 2024 के विधानसभा चुनाव के वक्त सीट शेयरिंग पर दिखता. अब डुमरी में आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा दावेदारी ठोक सकती है.

2019 के मुकाबले डुमरी उपचुनाव में क्या रहा अलग: 2019 के विधानसभा चुनाव के वक्त डुमरी सीट के लिए नोटा समेत कुल 16 प्रत्याशी मैदान में थे. झामुमो को कांग्रेस और राजद का समर्थन था जबकि आजसू और बीजेपी ने अपने बूते प्रत्याशी मैदान में उतारे थे. 2019 में सभी 16 प्रत्याशियों के बीच कुल 1,90,289 वोट पड़े थे. लेकिन उपचुनाव में कुल 1,93,826 यानी सिर्फ 3,537 वोट ज्यादा पड़े.

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अब सवाल है कि पिछले चुनाव में सिर्फ 71,128 वोट लाकर चुनाव जीतने वाले जगरनाथ महतो की पत्नी बेबी देवी को अबतक के सबसे ज्यादा 1,00,317 वोट कहां से मिले. पति के मुकाबले उन्हें 29,189 अतिरिक्त वोट किस पॉकट से आए. इसका गणित बेहद आसान है. एक तो एआईएमआईएम के रिजवी के 20,660 वोट में से ज्यादातर वोट सीधे बेबी देवी को शिफ्ट हुए. इसके अलावा जदयू के लालचंद महतो के 5,219, सीपीआई के 2,891 और निर्दलीयों के वोट बेबी देवी और यशोदा देवी में बंट गये. यही वजह है कि बेबी देवी के खाते में रिकॉर्ड 1,00,317 वोट गये जबकि एनडीए गठबंधन की यशोदा देवी को 83,164 वोट, जो पिछले चुनाव में भाजपा और आजसू के कुल वोट से 10,311 वोट ज्यादा रहे.

मांडर उपचुनाव में ही ओवैसी की हो गई थी परीक्षा: जेवीएम की टिकट पर 2019 का मांडर चुनाव जीतने वाले बंधु तिर्की ने आय से अधिक संपत्ति मामले में सजा के बाद सदस्यता गंवाई तो उनकी बेटी नेहा शिल्पी कांग्रेस की टिकट पर उपचुनाव में उतरीं. यहां भी ओवैसी फैक्टर था. क्योंकि 2019 में ओवैसी की पार्टी के प्रत्याशी रहे शिशिर लकड़ा को 23,592 वोट मिले थे. उस वक्त भाजपा ने देवकुमार धान को प्रत्याशी बनाया था. तब बंधु तिर्की को 92,491 वोट और भाजपा के देवकुमार धान को 69,364 वोट. उस चुनाव में कुल 2,24,785 वोट पड़े थे.

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लेकिन उपचुनाव हुआ तो ओवैसी को फिर लोगों ने नकार दिया. हालांकि डुमरी के रिजवी वाला हाल देवकुमार धान का नहीं हुआ. वह उपचुनाव में एआईएमआईएम के प्रत्याशी बने थे. लेकिन उन्हें सिर्फ 22,385 वोट मिले. इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें मुस्लिम वोट मिले थे क्योंकि देवकुमार धान की मांडर में अच्छी पकड़ रही है. वह वहां से विधायक रह चुके हैं. आदिवासी वोटर में उनकी पैठ है. लेकिन मांडर के अल्पसंख्यक वोटर कांग्रेस की तरफ चले गये. लिहाजा, कांग्रेस की नेहा शिल्पी तिर्की ने 95,062 वोट लाकर भाजपा की गंगोत्री कुजूर को 23,517 वोट से हरा दिया. डुमरी में भी वही हुआ. इसकी फाइनल तस्वीर इसी साल कई राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में दिख जाएगी.

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