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Dumri by-election: मुस्लिम वोट बैंक बनेगा हार-जीत का सबसे बड़ा फैक्टर! झामुमो ने मंत्री हफीजुल हसन को दिया टास्क

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Aug 28, 2023, 7:14 PM IST

Muslim factor in Dumri
Muslim factor in Dumri

डुमरी उपचुनाव (Dumri by-election) का प्रचार अभियान चरम पर है. वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए राजनीतिक दल पसीना बहा रहे हैं. इस बीच चर्चाओं का दौर भी जारी है. डुमरी उपचुनाव में अवैसी फैक्टर (Owaisi factor in Dumri) की भी खूब चर्चा हो रही है.

रांची: झारखंड में 2019 के चुनाव के बाद डुमरी छठी ऐसी विधानसभा सीट है जहां उपचुनाव होने जा रहा है. इससे पहले दुमका, मधुपुर, बेरमो, मांडर और रामगढ़ में उपचुनाव हो चुके हैं. अबतक सत्ताधारी दल को सिर्फ एक जगह धक्का लगा है, वह है रामगढ़. उस उपचुनाव में एनडीए गठबंधन की आजसू प्रत्याशी ने कांग्रेस प्रत्याशी को मात दी थी. अब बारी डुमरी की है.

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यहां सत्ताधारी दल झामुमो की बेबी देवी का मुकाबला एनडीए गठबंधन की आजसू प्रत्याशी यशोदा देवी से है. खास बात है कि इस बार गठबंधन फैक्टर हावी है. लेकिन ओवैसी की पार्टी ने सस्पेंस का तड़का डाल दिया है. झामुमो को इस बात का डर सता रहा है कि कहीं इस बार भी एआईएमआईएम का प्रत्याशी मुस्लिम वोट बैंक में सेंध ना लगा दे. इसको रोकने के लिए पार्टी ने पूरी ताकत झोंक दी है. सूत्रों के मुताबिक मुस्लिम वोट बैंक को एकजुट करने के लिए झामुमो विधायक सह मंत्री हफीजुल हसन को टास्क दिया गया है. पार्टी के कई मुस्लिम नेता डुमरी में डेरा जमाए हुए हैं.

झामुमो को मालूम है कि चार बार से विधायक रहे जगरनाथ महतो के असमय निधन से उनकी पत्नी बेबी देवी के साथ लोगों की सहानुभूति है. लेकिन पार्टी अच्छी तरह जानती है कि सिर्फ सहानुभूति से चुनाव नहीं जीता जा सकता. रही बात मुस्लिम वोट बैंक की तो उसकी गोलबंदी भाजपा प्रत्याशी के हिसाब से तय होती है. लेकिन यहां मुकाबला आजसू की महिला प्रत्याशी से है. गौर करने वाली बात यह है कि रामगढ़ उपचुनाव में कांग्रेस की ममता देवी के जेल जाने के बावजूद सहानुभूति काम नहीं आई थी.

इस उपचुनाव में एक और गौर करने वाली बात यह है कि जिस बेबी देवी के साथ सहानुभूति की बात हो रही है, वहीं स्थिति यशोदा देवी के साथ भी है. दरअसल, यशोदा देवी के पति दामोदर महतो भी इलाके में बेहद सक्रिय थे. 2009 के चुनाव में जदयू की टिकट पर दूसरे स्थान पर रहे थे. 2005 में समता पार्टी के टिकट पर उनको तीसरा स्थान मिला था. लेकिन साल 2018 में बीमारी की वजह से उनका निधन हो गया. उनकी जगह उनकी पत्नी यशोदा देवी ने ले ली. वह लंबे समय से क्षेत्र में सक्रिय हैं. जबकि बेबी देवी को हालात ने अचानक चुनाव के मैदान में ला खड़ा किया है. बेबी देवी सिर्फ साक्षर हैं. वहीं यशोदा देवी इंटर साइंस तक पढ़ी हुई हैं.

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2019 के चुनाव में ओवैसी की पार्टी का प्रभाव: डुमरी में हो रहे उपचुनाव को ओवैसी की पार्टी के प्रत्याशी अब्दुल मोबिन रिजवी ने दिलचस्प बना दिया है. पिछले विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम प्रत्याशी झामुमो, आजसू और भाजपा के बाद 24,132 वोट के साथ चौथे नंबर पर थे. भाजपा यह मान कर चल रही है कि अगर पिछला चुनाव आजसू के साथ मिलकर लड़ा गया होता तो जीत तय थी. क्योंकि भाजपा और आजसू का वोट जोड़ने पर 72,853 वोट होते हैं जो जगरनाथ महतो से 1,725 वोट ज्यादा होते. जबकि झामुमो का कहना है कि इसबार उसको जदयू और लेफ्ट का समर्थन है. उनके वोट को जोड़ने पर जीत का फासला और बढ़ जाएगा. जाहिर है कि गठबंधन के खेल में मुस्लिम वोट बैंक का बिखराव झामुमो के लिए महंगा पड़ सकता है.

जाति और धर्म आधारित अनुमानित वोट बैंक: डुमरी विधानसभा क्षेत्र में डुमरी, नावाडीह और चंद्रपुरा प्रखंड है. इन तीनों प्रखंडों में करीब 40 हजार मुस्लिम वोटर हैं. जो वर्तमान चुनाव में हार-जीत का फैसला करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. पिछली बार रिजवी को सबसे ज्यादा मुस्लिम वोट मिला था. यहां 85 से 90 हजार कुर्मी वोटर हैं. दूसरे स्थान वैश्य वर्ग और तीसरे स्थान मुस्लिम वोटर है. एससी वोटर चौथे स्थान पर हैं. पांचवे स्थान पर आदिवासी वोटर हैं.

2019 के डुमरी चुनाव की तस्वीर: 2019 के विधानसभा चुनाव में डुमरी सीट पर झामुमो के जगरनाथ महतो को 71,128 वोट मिले थे. दूसरे स्थान में आजसू की यशोदा देवी को 36,840 वोट मिले थे. लिहाजा, 34,288 वोट के अंतर से जगरनाथ महतो की जीत हुई थी. तीसरे स्थान पर भाजपा के प्रदीप कुमार साहू को 36,013 वोट मिले थे. वहीं ओवैसी की पार्टी के अब्दुल मोबिन रिजवी 24,132 वोट के साथ चौथे स्थान पर थे. जदयू के लालचंद महतो को 5,219 वोट, सीपीआई के गणेश प्रसाद महतो को 2891 वोट मिले थे. नोटा में 2090 वोट के अलावा शेष प्रत्याशियों को सैंकड़ा में वोट मिले थे.

2019 के चुनाव में डुमरी सीट पर कुल 15 प्रत्याशी भाग्य आजमाने उतर थे. इनमें सिर्फ एक महिला प्रत्याशी थी. 15 में से 12 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी. उस चुनाव में कुल 2 लाख 72 हजार वोटर थे. इनमें से 1 लाख 90 हजार 325 वोटरों में मत का इस्तेमाल किया था. पुरूष वोटर की संख्या 90,555 थी. इसकी तुलना में महिला वोटरों ने उत्साह दिखाया था. उनकी संख्या थी 99,564 थी. उस चुनाव में 69.77 प्रतिशत वोटिंग हुई थी. वोटिंग 16 दिसंबर 2019 और मतों की गिनती 23 दिसंबर 2019 को हुई थी.

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कब होता है जमानत जब्त: हर तरह के चुनाव की अलग-अलग जमानत राशि होती है. रिप्रेजेंटेटिव्स ऑफ पीपुल्स एक्ट 1951 के तहत लोकसभा और विधानसभा चुनाव की राशि तय की गई है, जबकि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के लिए प्रसिडेंट एंड वाइस प्रेसिडेंट इलेक्शन एक्टर 1952 में किया गया है. लोकसभा चुनाव में सामान्य वर्ग के लिए 25 हजार और एसटी-एससी वर्ग के लिए 12,500 की जमानत राशि लगती है. जबकि विधानसभा में सामान्य वर्ग को 10 हजार और एसटी-एसटी उम्मीदवार को जमानत राशि के रूप में 5 हजार जमा करना होता है. अगर कुल वोट का 1/16 यानी 16.66 प्रतिशत वोट नहीं मिलता है तो संबंधित उम्मीदवार की जमानत राशि जब्त हो जाती है. अगर 1/16 प्रतिशत तक वोट मिल जाता है तो हार के बावजूद प्रत्याशी को जमानत राशि लौटा दी जाती है. अगर वोटिंग के पहले प्रत्याशी की मौत हो जाती है, तब भी संबंधित परिजन को जमानत राशि लौटा दी जाती है.

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