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Measles outbreak: झारखंड सहित कई राज्यों में इस साल खसरा आउटब्रेक, जानें क्या हैं वापसी के कारण

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Published : Dec 20, 2022, 12:30 PM IST

Measles outbreak in India
Measles outbreak in India

कोरोना के बाद खसरा-रुबेला को लेकर भारत चिंतित है. झारखंड सहित कई राज्यों में इस साल खसरा का प्रकोप देखने को मिल रहा है (Measles outbreak in India). खसरा के बढ़ते केस ने यूनिसेफ की भी चिंता बढ़ा दी है. आइए जानते हैं खसरा के वापसी के क्या कारण हैं और इससे कैसे छुटकारा मिल सकता है.

रांची: कोरोना संक्रमण की रफ्तार धीमी होने से इस साल भारत को थोड़ी राहत मिली तो झारखंड, बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात सहित कई राज्यों में खसरा के बढ़ते केस ने सरकार और स्वास्थ्य महकमे के साथ-साथ बच्चों के बेहतर जीवन के लिए काम कर रही संस्था यूनिसेफ की चिंता बढ़ा दी है (Measles outbreak in India). इसी चिंता को दूर करने और 2023 तक भारत को खसरा मुक्त करने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए लोगों में जागरुकता लाने और उन्हें खसरा से बचाव के लिए टीका की जानकारी जन-जन तक पहुंचाने और उनके अंदर वैक्सीन को लेकर भय और गलत जानकारी दूर करने के लिए भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय और यूनिसेफ ने मीडिया की भूमिका को अहम बताया है.

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खसरा के केस फिर से बढ़ने का क्या मतलब: लोगों में टीकाकरण को लेकर व्याप्त भ्रांतियां दूर करने में कैसे मीडिया सहयोगी की भूमिका निभा सकता है, इसपर यूनिसेफ इंडिया ने मुम्बई में राष्ट्रीय वर्कशॉप का आयोजन किया जिसमें देशभर के अलग-अलग मीडिया संस्थानों से जुड़े 60 वरिष्ठ पत्रकारों ने शिरकत की. देशभर के 60 स्वास्थ्य की रिपोर्टिंग करने वाले वरिष्ठ संवाददाताओं के साथ मुम्बई में वर्कशॉप में यूनिसेफ इंडिया के स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ आशीष चौहान ने कहा कि मीजल्स का फिर से कई इलाकों में बड़े पैमाने पर होना, एक ट्रेसर का काम करता है जो यह बताता है हमारे टीकाकरण सिस्टम में कहीं कोई कमी रह गयी. उन्होंने कहा कि जन टीकाकरण कम होता है तो मीजल्स तेजी से वापसी करता है. अब उन्हें दूर कर टीकाकरण को 90% से अधिक करने की जरूरत हैं. डॉ चौहान ने कहा कि अब जरूरत है कि इसे आपातीय स्थिति मानकर टीकाकरण को बढ़ाया जाए और लोगों को सामाजिक स्तर पर जागरूक किया जाए, उनके अंदर की भ्रांतियों को दूर की जाय.

क्यों कम हुआ टीकाकरण और बढ़ने लगे खसरा के केस: यूनिसेफ इंडिया के अनुसार कोरोना काल में करीब 36% रूटीन इम्यूनाइजेशन कम हुआ. इसकी वजह कोरोना के दौरान देशभर में लगे लॉकडाउन की वजह से आवाजाही प्रभावित था तो उस दौरान बड़ी संख्या में माइग्रेशन हुआ. डॉ चौहान के अनुसार भारत में जहां हर साल करीब 2.7 करोड़ बच्चे जन्म लेते हैं. वहां 10% (27 लाख) बच्चों का टीकाकरण से छूट जाना एक बड़ी समस्या हो जाती है. उन्होंने कहा कि मीजल्स का टीका नहीं लेने वाले देशों में भारत,नाइजेरिया के बाद दूसरे नंबर पर है.

यूं बढ़ते गए खसरा के मामले: मीजल्स-रुबेला वैक्सीन के पहले डोज से ही 85% सुरक्षा और दो डोज से 95% तक सुरक्षा देनेवाला काफी जांचा-परखा वैक्सीन होने के बावजूद टीकाकरण में कमी की वजह से खसरा के मामले बढ़े हैं. राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में वर्ष 2020 में जहां खसरा के 5503 कन्फर्म केस मिले थे वहीं, 2021 में यह संख्या बढ़कर 5819 हो गयी, वर्ष 2022 में नवम्बर तक तो यह आंकड़ा और बढ़कर 18643 हो गया जो चिंताजनक स्थिति है.


खसरा हो जाने का दंश जीवन भर सहता है आपका नौनिहाल: खसरा के केस तेजी से बढ़ने को चिंताजनक बताते हुए भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग में एडिशनल कमिश्नर (टीकाकरण) डॉ वीणा धवन ने कहा कि खसरा का वायरस बच्चों के ऐपिथेलियल सेल को डैमेज करता है, जिसका प्रभाव तब भी रह जाता है. जब बच्चा खसरा से मुक्त हो जाता है. वहीं गर्भवती महिलाओं को रुबेला का वैक्सीन देने से नवजात की जीवन रक्षा होती है. रुबेला के वैक्सीन नहीं लेने से Still Birth यानी (मरे हुए बच्चे जन्म लेने का खतरा बढ़ जाता है). वहीं, कंजेनाइटल रुबेला सिंड्रोम, जिसमें दिल की समस्या, अंधापन, बहरापन, मानसिक विक्षिप्तता का खतरा बढ़ जाता है.

खसरा-रुबेला की रोकथाम में मीडिया की भूमिका बेहद अहम- पंकज पचौरी: प्रख्यात पत्रकार पंकज पचौरी ने खसरा और रुबेला की रोकथाम में मीडिया की भूमिका को सबसे बेहद महत्वपूर्ण बताया और कहा कि मीडिया रिपोर्टिंग फैक्ट पर आधारित होना चाहिए, एक गलत खबर हजारों-लाखों बच्चों को टीका से दूर कर देता है. रायटर के आंकड़े के अनुसार 59% लोग TV, 49% प्रिंट, 84% ऑनलाइन (सोशल मीडिया सहित) और 63% लोग भारत में सोशल मीडिया से खबर पाते हैं. ऐसे में खबरों का फैक्ट चेक जरूरी हो जाता है. पंकज पचौरी ने कहा कि भारत के संदर्भ में खबरों की तथ्यपरक इसलिए जरूरी है क्योंकि यहां 15.9% खबरें मिसइन्फॉर्मेशन पर आधारित हैं. ऐसे में खबरों में सत्यता और उसे तथ्य पर आधारित होना जरूरी है. वहीं, अमर उजाला के पूर्व कार्यकारी संपादक रहे संजय अभिज्ञान ने कहा न सिर्फ न्यूज बल्कि भ्रामक प्रचार भी लोगों में अंधविश्वास बढ़ाने में सहायक बनता है. ऐसे में खबरों की जरूरी जांच परख (CAS- Critical Appraisal Skills) जरूरी है. उन्होंने कहा कि भारत में 84% खबर सिंगल सोर्स पर आधारित होती है जो ठीक नहीं है.

झारखंड के संदर्भ में खसरा के खतरे: झारखंड में खसरा का खतरा इसलिए भी अधिक है क्योंकि यहां इस साल 99 आउट ब्रेक खसरा के हुए हैं. राज्य के देवघर, धनबाद, गिरिडीह, जामताड़ा, साहिबगंज, गोड्डा, दुमका, रांची और पाकुड़ ऐसे जिले हैं, जहां खसरा के काफी अधिक केस मिले हैं. झारखंड के स्टेट टीकाकरण अधिकारी डॉ राकेश दयाल ने कहा कि राज्य के सभी सिविल सर्जनों को निर्देश दिया गया है कि जिन बच्चों ने अभी तक MR का वैक्सीन नहीं लिया है, उनकी पहचान कर वैक्सीन दिलवाएं. वहीं, जहां भी कहीं खसरा के लक्षण दिखे. सैंपल लेकर जांच के लिए रिम्स रांची या MGM जमशेदपुर भेजें. उन्होंने राज्य के लोगों से अपील की कि वह अपने 9 से 12 वर्ष तक के बच्चे को मीजल्स का पहला डोज और 16 से 24 साल तक बच्चे को दूसरा डोज जरूर लगवाएं. वहीं जिन बच्चों ने 5 वर्ष की उम्र तक वैक्सीन नहीं लिया है उन्हें भी MR का वैक्सीन दिलवा दें क्योंकि यह 100% सुरक्षित टीका है और काफी प्रभावशाली है.


WHO की सलाह: विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह सलाह दी है कि जिन इलाकों में खसरा के अधिक केस मिले हैं. वहां 5 वर्ष तक के बच्चों को मीजल्स-रुबेला का MR का एक एडिशनल डोज दिया जाए. मीजल्स-रुबेला और रूटीन इम्यूनाइजेशन को लेकर यूनिसेफ इंडिया और भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मुम्बई में आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला में पीआईबी पश्चिमी क्षेत्र के अतिरिक्त महानिदेशक स्मिता वक्त शर्मा ने कहा कि मीडिया प्रमाणिक जानकारी प्राप्त करने और गलत सूचना से मुकाबला करने के लिए प्रेस इनफॉरमेशन ब्यूरो थे. विभिन्न वेबसाइट और सोशल मीडिया पर फैक्ट चेक करें. खबरों को जनता तक पहुंचाएं ताकि टीकाकरण खासकर खसरा और रुबेला को लेकर कोई भ्रांतियां जनता के बीच ना हो. उन्होंने कहा कि मीजल्स रुबेला के 9 से 12 महीने में पहली खुराक और 16 से 24 महीने में दूसरी खुराक के अतिरिक्त सभी प्राथमिक टीकाकरण कार्यक्रम में खसरा रुबेला का अधिकार दिया जाना है. अतिरिक्त टीका उन इलाकों में दिया जाएगा, जहां 9 महीने से कम उम्र के खसरे के मामले फुल खतरे के मामलों से 10% से अधिक है.

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