ETV Bharat / state

Johar Project in Jharkhand: बेमिसाल डॉक्टर दीदियां, पशुपालकों के जीवन में घोल रहीं हैं खुशियां, 'जोहार' प्रोजेक्ट को मिली अंतर्राष्ट्रीय पहचान

author img

By

Published : Feb 4, 2023, 5:03 PM IST

Etv Bharat
डिजाइन इमेज

झारखंड में जोहार प्रोजेक्ट को अच्छी सफलता मिल रही है. इस प्रोजेक्ट से ना सिर्फ ग्रामीण क्षेत्र में लोगों को रोजगार मिल रहा है बल्कि पशुपालकों की आय में बढ़ोतरी हो रही है.

रांची: घर में किसी के बीमार पड़ने पर डॉक्टर साहब की याद आती है. लेकिन झारखंड के ग्रामीण इलाकों में बकरी और मुर्गियों के बीमार पड़ने पर डॉक्टर दीदी की याद आती है. इनकी पहचान है ब्लू साड़ी और ब्लू रंग का बक्सा. रांची के ओरमांझी प्रखंड के कुरूम गांव में रहती हैं कलावती देवी. सुबह होते ही ब्लू बॉक्स के साथ अपने पंचायत के गांवों की तरफ निकल पड़ती हैं. हर माह औसतन 6 से 10 हजार रुपए की कमाई हो जाती है. कलावती देवी अपने मायके में रहती हैं. पति ने साथ छोड़ दिया है. उनका एक बेटा है राजवीर कुमार महतो. यह कहते हुए खिलखिलाने लगती हैं कि पहली कक्षा में पढ़ रहा उनका बेटा बड़ा होकर डॉक्टर बनना चाहता है. उन्होंने ईटीवी भारत से फोन पर डॉक्टर दीदी बनने का सफर साझा किया.

ये भी पढ़ें- नक्सल हीट इलाके में जोहार ला रहा बदलाव, 20 गांव की महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर

संघर्ष से सम्मान तक का सफर: कलावती देवी ने बताया कि राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत साल 2013 में ग्रामीण इलाकों के पशुधन को बीमारियों से बचाने के लिए एपीएस यानी आजीविका पशु सखी का चयन किया गया था. पति ने साथ छोड़ा तो कलावती देवी अपने बच्चे के लिए साल 2016 में इस अभियान से जुड़ गयीं. उन्होंने मुर्गियों और बकरियों को होने वाली बीमारियों से बचाने की ट्रेनिंग ली. एक माह की ट्रेनिंग के बाद जब कलावती देवी गांवों में जाकर बीमार बकरियों और मुर्गियों के इलाज की बात करती थीं तो कोई विश्वास नहीं करता था. कोई दवा नहीं लेता था. तब जाकर उन्होंने अपने घर में पाली गई बकरियों और मुर्गियों के बीमार होने पर इलाज करना शुरू किया. जबकि उसी गांव के दूसरे पशुपालकों के पशु उन मामूली बीमारियों की वजह से मर जाया करते थे. करीब एक साल के संघर्ष के बाद लोगों ने बकरी और मुर्गियों के इलाज के लिए बुलाना शुरू किया.

कलावती ने बताया कि इस अभियान के शुरू होने के पहले गांवों में मामूली बीमारी से 30 प्रतिशत बकरियां और 80 प्रतिशत मुर्गियां मर जाया करतीं थी. लेकिन अब ऐसा नहीं होता. वह दूसरी दीदियों को ट्रेनिंग भी देती हैं. उन्होंने बताया कि माह में एक या दो बार ओरमांझी ब्लॉक में वैक्सीन और दवाईयां उपलब्ध हो जाती हैं. उसके बदले पैसे देने पड़ते हैं. कहती हैं कि वेटनरी डॉक्टरों को भी फॉलों कर लेती हैं. पशुओं के हावभाव से पता चल जाता है कि क्या दवा देनी चाहिए. अब तो लोग गांव में ले जाने के लिए घर पर भी आ जाते हैं.

वर्ल्ड बैंक का मिला साथ: झारखंड में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत 68 ब्लॉक में चल रहे Jharkhand Opportunities for Harnessing Rural Growth (JOHAR) प्रोजेक्ट को वर्ल्ड बैंक सपोर्ट कर रहा है. पूरे राज्य में अबतक एक हजार से ज्यादा पशु सखी ट्रेनिंग ले चुकी हैं. इनमें से 70 प्रतिशत को एग्रीकल्चल स्कील काउंसिल ऑफ इंडिया की तरफ से सर्टिफिकेट भी मिल चुका है. अभी तक 57 हजार पशुपालक इस अभियान से जुड़ चुके हैं. इनमें 90 प्रतिशत महिलाएं हैं. इस अभियान के तहत झारखंड के 24 जिलों में एक हजार से ज्यादा पशु सखी यानी कम्यूनिटी एनिमल हेल्थकेयर वर्कर्स जुड़े हैं.

ये भी पढ़ें- गरीबी से मुक्ति की चाह ने बदली तकदीर, पाकुड़ की ये महिलाएं मुर्गी पालन से कर रहीं अच्छी कमाई

'जोहार' प्रोजेक्ट को मिली अंतर्राष्ट्रीय पहचान: नवंबर 2022 को प्रकाशित वर्ल्ड बैंक के न्यूज लेटर के मुताबिक जोहार प्रोजेक्ट को यूएन फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन और इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर चयनित 8 मॉडल में फारमर्स सर्विस डिलिवरी के लिए इस मॉडल को भी शामिल किया है. यूके ऑक्सफोर्ड ग्रुप के एसेसमेंट के मुताबिक इस प्रोजेक्ट की बदौलत ग्रामीण इलाकों में पशुधन से पशुपालकों की औसत मासिक आमदगी 45 हजार से ज्यादा हो गई है. जोहार प्रोजेक्ट के बाद 55 से 125 फीसदी का इजाफा हुआ है.

झारखंड में बकरी और मुर्गियों की संख्या: झारखंड के गांवों में बकरी और मुर्गी पालन एक परंपरा का हिस्सा बन गया है. वर्ल्ड बैंक के रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के 70 प्रतिशत से ज्यादा लाइवस्टॉक का उत्पादन भूमिहीन या सीमांत किसान पूरा करते हैं. इसमें महिलाओं का सबसे ज्यादा सहयोग होता है. 2012 में हुई पशुगणना के मुताबिक झारखंड में बकरियों की संख्या 65.81 लाख और मुर्गियों की संख्या 103.62 लाख थी. लेकिन 2019 की पशुगणना में बकरी की संख्या बढ़कर 91.28 लाख और मुर्गियों की संख्या बढ़कर 188.10 लाख हो गई. जाहिर है 2013 में शुरू हुए इस अभियान का असर दिखने लगा है.

किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए कई तरह के प्रयास किए जा रहे हैं. मिट्टी और मौसम के अनुरूप फसल लगाने के अलावा ऑर्गेनिक खेती के लिए प्रेरित किया जा रहा है. साथ ही पशुपालन को बढ़ावा दिया जा रहा है. इस मामले में झारखंड की ग्रामीण महिलाएं हमेशा से आगे रही हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में बकरी और मुर्गी पालन की जिम्मेदारी ज्यादातर महिलाएं निभा रही हैं. जेएसएलपीएस के राज्य कार्यक्रम प्रबंधक, फार्म ने बताया कि इस प्रोजेक्ट के अमलीजामा पहनाने में कई तरह की दिक्कतें आई थी. लेकिन अब पशु सखियों ने अपने सेवा से नई पहचान बना ली है. गांव के लोग उन्हें बकरी दीदी और डॉक्टर दीदी कहते हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.