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गिरिडीह सीट के लिए जयराम ने बजा दी डुगडुगी, एनडीए और इंडी गठबंधन में किसके लिए बन सकते हैं चुनौती

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jan 13, 2024, 8:42 PM IST

Jairam Mahato will contest elections from Giridih. झारखंड के युवा नेता जयराम महतो ने लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर एनडीए और इंडी गठबंधन के लिए टेंशन पैदा कर दी है. लेकिन असल में जयराम किसके लिए टेंशन बनेंगे, यह इस रिपोर्ट में जानने की कोशिश करेंगे.

Jairam Mahato will contest elections from Giridih
Jairam Mahato will contest elections from Giridih

रांची: झारखंड की 14 लोकसभा सीटों पर एनडीए और इंडी गठबंधन अपने अपने समीकरण सेट कर रहे हैं. लेकिन दोनों गठबंधनों के किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले ही छात्र नेता के रुप में उभरे जयराम महतो ने गिरिडीह लोकसभा सीट से बतौर निर्दलीय दावा ठोककर सबको चौंका दिया है. 60-40 नाय चलतो वाले नारे के साथ सुर्खियां बटोरने वाले जयराम महतो ने धनबाद, गिरिडीह और बोकारो के ग्रामीण इलाकों में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. स्थानीय भाषा और स्थानीयों के हक की बात करने वाले जयराम बखूबी जानते हैं कि गिरिडीह एक ऐसी लोकसभा सीट है जो धनबाद और बोकारो के ग्रामीण इलाकों को कवर करती है. इसलिए धनबाद के निवासी होने के बावजूद उन्होंने इस सीट पर भाग्य आजमाने का फैसला किया है.

सवाल है कि क्या गिरिडीह में जयराम महतो के ताल ठोंकने से यहां का मुकाबला त्रिकोणीय हो जाएगा. फिलहाल इसका जवाब किसी के पास नहीं है. दरअसल, इस सीट पर पिछला मुकाबला एनडीए और इंडी (महागठबंन) के बीच हुआ था. भाजपा ने आजसू को यह सीट दी थी और चंद्रप्रकाश चौधरी चुनाव जीत गये थे. उनका मुकाबला डुमरी से झामुमो विधायक रहे जगरनाथ महतो से हुआ था. लेकिन मोदी लहर में जगरनाथ महतो नहीं टिक पाए थे.

अब सवाल है कि क्या गिरिडीह सीट पर इस बार भी आजसू का ही दावा रहेगा. इसपर फिलहाल संशय नजर आ रहा है. जमीनी स्तर पर पड़ताल से पता चला है कि चंद्रप्रकाश चौधरी को लेकर लोगों में नाराजगी है. लोगों का कहना है कि वह गिरिडीह में वक्त नहीं देते. इसलिए अनुमान लगाया जा रहा है कि इसबार गिरिडीह में भाजपा अपना प्रत्याशी उतार सकती है क्योंकि इस सीट पर भाजपा की जबरदस्त पकड़ रही है. आजसू का इंटरेस्ट लोकसभा से ज्यादा विधानसभा को लेकर है. गिरिडीह के बदले आजसू को ज्यादा विधानसभा सीटें मिल सकती हैं.

जयराम के लिए प्लस प्वाइंट: जयराम महतो के साथ प्लस प्वाइंट यह है कि उनके साथ लोकल युवा जुड़े हुए हैं. उनकी रैलियों में युवाओं की भीड़ जुटती है. लेकिन जानकार कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में हर तबके के वोटबैंक में पैठ जरुरी है. ऊपर से लोकसभा चुनाव को लोग सीधे पीएम मोदी से जोड़कर देखते हैं. लिहाजा, राजनीतिक पारी की शुरुआत के लिहाज से जयराम महतो के लिए गिरिडीह सीट मुफीद जरुर कही जा सकती है. इस चुनाव से उनको भी अंदाजा लग जाएगा कि वह कितने पानी में हैं.

गिरिडीह में एनडी और इंडी गठबंधन की ओर से कौन हैं रेस में: इस सवाल का फिलहाल पुख्ता जवाब किसी के पास नहीं है. लेकिन गौर करने वाली बात है कि इस सीट से कभी झामुमो के टेकलाल महतो भी जीत चुके हैं. हालांकि बाद के दिनों में भाजपा के रवींद्र पांडेय दबदबा बनाने में कायम रहे. अगर यह सीट आजसू के खाते में नहीं जाती है तो इस रेस में भाजपा के रवींद्र पांडेय की दोबारा दावेदारी बन सकती है. लेकिन बाघमारा से भाजपा विधायक ढुल्लू महतो इस क्षेत्र में जबरदस्त तरीके से सक्रिय हुए हैं. वह भी गिरिडीह के रास्ते दिल्ली पहुंचने का सपना देख रहे हैं. रही बात झामुमो की तो जगरनाथ महतो के निधन के बाद टुंडी से विधायक मथुरा महतो के नाम की चर्चा चल रही है. हालांकि जानकार यह भी कह रहे हैं कि ईडी की कार्रवाई के बीच गांडेय विधानसभा सीट खाली करने वाले सरफराज अहमद को भी झामुमो का आशीर्वाद मिल सकता है.

गिरिडीह में भाजपा और झामुमो में होती रही है टक्कर: झारखंड बनने के बाद पहली बार 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में झामुमो के टेकलाल महतो ने भाजपा के रवींद्र पांडेय को डेढ़ लाख वोट के अंतर से हराया था. लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के रवींद्र पांडेय की जीत हुई थी. 2014 के चुनाव में मोदी लहर का भाजपा के रवींद्र पांडेय को फायदा मिला था. उनकी दोबारा जीत हुई थी. लेकिन 2019 में गठबंधन के तहत यह सीट आजसू के पाले में चली गई थी. इसकी वजह से रवींद्र पांडेय को बैठना पड़ गया था.

तीन जिलों में फैला है गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र: गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र तीन जिलों को कवर करता है. इस लोकसभा क्षेत्र में कुल छह विधानसभा सीटें हैं. इनमें गिरिडीह और डुमरी के अलावा धनबाद का बाघमारा और टुंडी के साथ-साथ बोकारो जिले का बेरमो और गोमिया शामिल है. लेकिन जब गिरिडीह जिला की बात करते हैं तो इसके अधीन गिरिडीह, गांडेय, बगोदर, डुमरी, जमुआ और धनबार विधासभा सीटें आती हैं. जाहिर है कि लोकसभा के लिहाज से इस सीट पर तीन जिलों के वोटरों का मन और मिजाज प्रभाव डालता है.

लिहाजा, तमाम समीकरणों से पता चलता है कि गिरिडीह में कई और चौंकाने वाली तस्वीरें सामने आ सकती हैं. लेकिन इन सबके बीच जयराम महतो ने ताल ठोककर गिरिडीह का राजनीतिक पारा तो जरुर चढ़ा दिया है.

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रांची: झारखंड की 14 लोकसभा सीटों पर एनडीए और इंडी गठबंधन अपने अपने समीकरण सेट कर रहे हैं. लेकिन दोनों गठबंधनों के किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले ही छात्र नेता के रुप में उभरे जयराम महतो ने गिरिडीह लोकसभा सीट से बतौर निर्दलीय दावा ठोककर सबको चौंका दिया है. 60-40 नाय चलतो वाले नारे के साथ सुर्खियां बटोरने वाले जयराम महतो ने धनबाद, गिरिडीह और बोकारो के ग्रामीण इलाकों में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. स्थानीय भाषा और स्थानीयों के हक की बात करने वाले जयराम बखूबी जानते हैं कि गिरिडीह एक ऐसी लोकसभा सीट है जो धनबाद और बोकारो के ग्रामीण इलाकों को कवर करती है. इसलिए धनबाद के निवासी होने के बावजूद उन्होंने इस सीट पर भाग्य आजमाने का फैसला किया है.

सवाल है कि क्या गिरिडीह में जयराम महतो के ताल ठोंकने से यहां का मुकाबला त्रिकोणीय हो जाएगा. फिलहाल इसका जवाब किसी के पास नहीं है. दरअसल, इस सीट पर पिछला मुकाबला एनडीए और इंडी (महागठबंन) के बीच हुआ था. भाजपा ने आजसू को यह सीट दी थी और चंद्रप्रकाश चौधरी चुनाव जीत गये थे. उनका मुकाबला डुमरी से झामुमो विधायक रहे जगरनाथ महतो से हुआ था. लेकिन मोदी लहर में जगरनाथ महतो नहीं टिक पाए थे.

अब सवाल है कि क्या गिरिडीह सीट पर इस बार भी आजसू का ही दावा रहेगा. इसपर फिलहाल संशय नजर आ रहा है. जमीनी स्तर पर पड़ताल से पता चला है कि चंद्रप्रकाश चौधरी को लेकर लोगों में नाराजगी है. लोगों का कहना है कि वह गिरिडीह में वक्त नहीं देते. इसलिए अनुमान लगाया जा रहा है कि इसबार गिरिडीह में भाजपा अपना प्रत्याशी उतार सकती है क्योंकि इस सीट पर भाजपा की जबरदस्त पकड़ रही है. आजसू का इंटरेस्ट लोकसभा से ज्यादा विधानसभा को लेकर है. गिरिडीह के बदले आजसू को ज्यादा विधानसभा सीटें मिल सकती हैं.

जयराम के लिए प्लस प्वाइंट: जयराम महतो के साथ प्लस प्वाइंट यह है कि उनके साथ लोकल युवा जुड़े हुए हैं. उनकी रैलियों में युवाओं की भीड़ जुटती है. लेकिन जानकार कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में हर तबके के वोटबैंक में पैठ जरुरी है. ऊपर से लोकसभा चुनाव को लोग सीधे पीएम मोदी से जोड़कर देखते हैं. लिहाजा, राजनीतिक पारी की शुरुआत के लिहाज से जयराम महतो के लिए गिरिडीह सीट मुफीद जरुर कही जा सकती है. इस चुनाव से उनको भी अंदाजा लग जाएगा कि वह कितने पानी में हैं.

गिरिडीह में एनडी और इंडी गठबंधन की ओर से कौन हैं रेस में: इस सवाल का फिलहाल पुख्ता जवाब किसी के पास नहीं है. लेकिन गौर करने वाली बात है कि इस सीट से कभी झामुमो के टेकलाल महतो भी जीत चुके हैं. हालांकि बाद के दिनों में भाजपा के रवींद्र पांडेय दबदबा बनाने में कायम रहे. अगर यह सीट आजसू के खाते में नहीं जाती है तो इस रेस में भाजपा के रवींद्र पांडेय की दोबारा दावेदारी बन सकती है. लेकिन बाघमारा से भाजपा विधायक ढुल्लू महतो इस क्षेत्र में जबरदस्त तरीके से सक्रिय हुए हैं. वह भी गिरिडीह के रास्ते दिल्ली पहुंचने का सपना देख रहे हैं. रही बात झामुमो की तो जगरनाथ महतो के निधन के बाद टुंडी से विधायक मथुरा महतो के नाम की चर्चा चल रही है. हालांकि जानकार यह भी कह रहे हैं कि ईडी की कार्रवाई के बीच गांडेय विधानसभा सीट खाली करने वाले सरफराज अहमद को भी झामुमो का आशीर्वाद मिल सकता है.

गिरिडीह में भाजपा और झामुमो में होती रही है टक्कर: झारखंड बनने के बाद पहली बार 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में झामुमो के टेकलाल महतो ने भाजपा के रवींद्र पांडेय को डेढ़ लाख वोट के अंतर से हराया था. लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के रवींद्र पांडेय की जीत हुई थी. 2014 के चुनाव में मोदी लहर का भाजपा के रवींद्र पांडेय को फायदा मिला था. उनकी दोबारा जीत हुई थी. लेकिन 2019 में गठबंधन के तहत यह सीट आजसू के पाले में चली गई थी. इसकी वजह से रवींद्र पांडेय को बैठना पड़ गया था.

तीन जिलों में फैला है गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र: गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र तीन जिलों को कवर करता है. इस लोकसभा क्षेत्र में कुल छह विधानसभा सीटें हैं. इनमें गिरिडीह और डुमरी के अलावा धनबाद का बाघमारा और टुंडी के साथ-साथ बोकारो जिले का बेरमो और गोमिया शामिल है. लेकिन जब गिरिडीह जिला की बात करते हैं तो इसके अधीन गिरिडीह, गांडेय, बगोदर, डुमरी, जमुआ और धनबार विधासभा सीटें आती हैं. जाहिर है कि लोकसभा के लिहाज से इस सीट पर तीन जिलों के वोटरों का मन और मिजाज प्रभाव डालता है.

लिहाजा, तमाम समीकरणों से पता चलता है कि गिरिडीह में कई और चौंकाने वाली तस्वीरें सामने आ सकती हैं. लेकिन इन सबके बीच जयराम महतो ने ताल ठोककर गिरिडीह का राजनीतिक पारा तो जरुर चढ़ा दिया है.

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