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झारखंड में सरकार के शराब बेचने पर सियासत, सत्ता पक्ष के नेता हैं मुखर, क्यों चुप है बीजेपी?

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Published : Dec 23, 2021, 6:21 PM IST

Updated : Dec 23, 2021, 7:36 PM IST

झारखंड में सरकार शराब बेचेगी. विधानसभा में झारखंड सरकार की तरफ से यह कहा गया है. सत्ता पक्ष के कुछ नेता शराब बेचने का विरोध कर रहे हैं, लेकिन राज्य में विपक्षी दल भाजपा इस मामले पर बहुत कुछ बोलने को तैयार नहीं है क्योंकि सरकार के शराब बेचने और शराब बंदी के बीच वह फंस गई है.

Government liquor politics in Jharkhand
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रांची: झारखंड में सरकार शराब बेचेगी. मामला साफ है कि राजस्व की आमदनी इस विभाग से खूब होती है. 17 दिसंबर 2020 को हेमंत सोरेन ने अपनी समीक्षा बैठक में कहा था कि राज्य में कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा आबकारी विभाग से आता है और बेहतर परिणाम लाने के लिए विभाग को और सजग होकर काम करना होगा. अब इस बात को लेकर के विपक्षी दल इस सवाल को उठाने लगे हैं कि आखिर हेमंत सोरेन की मंशा क्या है?

शराब बेचने का विरोध

22 दिसंबर 2021 को विधानसभा में सरकार की तरफ से यह कहा गया कि सरकार शराब बेचेगी. हालांकि सत्ता पक्ष के लोगों को ही इस पर नाराजगी थी, लेकिन राज्य में हेमंत सोरेन के विपक्षी दल भाजपा इस मामले पर बहुत कुछ बोलने को तैयार इसलिए नहीं है कि पड़ोसी राज्य बिहार में शराबबंदी के बाद नीतीश की मुखालफत को लेकर के शराब को चालू करने का जो भी बयान भाजपा नेताओं की तरफ से दिया गया उसमें कई बार बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी. बिहार में शराबबंदी है लेकिन झारखंड में कमाई की बात हो रही है. अब ऐसे में बिहार झारखंड की जो सियासत है वह एक दूसरे की पूरक है, क्योंकि कहा यह भी जाता है कि बिहार का एक बड़ा तबका वीकेंड मनाने के लिए झारखंड चला आता है और कमाई झारखंड के खाते में चली जाती है. अब हेमंत सोरेन ने इस बात को लेकर कहा है कि शराब बेचने को लेकर नीतियां और मजबूत की जाएगी. इससे कई सवाल सियासत में और राजनीतिक दल के भीतर भी उठ खड़े हुए हैं. आखिर इसकी वजह क्या है और आज सियासत को हवा देने का मूल कारण क्या है?

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2019 में झारखंड में हेमंत सरकार बनने के बाद से लगातार झारखंड का खजाना खाली होने का दावा हेमंत सरकार द्वारा किया जाता रहा है. अगर सिर्फ आबकारी विभाग की बात कर लें तो वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिए सिर्फ आबकारी से 961.67 करोड़ का लक्ष्य रखा गया था, जो 2020 में यह 2009.26 करोड़ हो गया. 2021-22 के लिए आबकारी विभाग का राजस्व तकरीबन चार हजार करोड़ के आसपास पहुंच गया. इससे अंदाजा लगाना सहज है कि राजस्व में आने वाले पैसे में आबकारी विभाग की हिस्सेदारी कितनी है. सदन में जिस सवाल को लेकर के सबसे ज्यादा चर्चा हुई उसमें शराब बेचने और शराब की बंदी को लेकर के भी विभेद वाली राजनीति सत्ता पक्ष में ही दिख गई. अब तो सवाल उठ खड़ा हुआ है कि आखिर झारखंड को नई सरकार कहां ले जाना चाहती है?


झारखंड में शराब पर सियासत

पिछड़ा राज्य, संसाधनों का अभाव, गरीबी, भुखमरी, कुपोषण और शिक्षा जैसे शब्दों से झारखंड की शुरुआत खुद झारखंड सरकार के मुखिया करते हैं कि हमारा राज्य पिछड़ा है तो राज्य को आगे ले जाने में शराब से अगर कमाई करनी है तो शराब की कमाई देने वाले लोग कौन हैं. अब जब इस साल को बीतने में कुछ ही समय बचा है और उसके पहले शीतकालीन सत्र के दौरान जो बातें सरकार की तरफ से रखी गई और सत्ता पक्ष के ही लोगों ने शराब बेचने को लेकर के जिस तरीके की राजनीति को जगह दी उससे एक बात तो साफ है कि कहीं न कहीं झारखंड के जनमानस में शराब से होने वाले नुकसान की चर्चा भी शुरू हो गई है. क्योंकि शराब से होने वाली कमाई सरकार के खाते में आती है. लेकिन शराब बंद करके झारखंड को जो कमाई होनी है वह शायद नए झारखंड को बेहतर बनाने के लिए ज्यादा बड़ी बात है. यही वजह है कि खुद सत्तापक्ष के विधायक इस बात के हिमायती नहीं रहे कि शराब बेचने का काम सरकार को करना चाहिए.

शराबबंदी का विरोध

झारखंड में सरकार के शराब बेचने के मुद्दे पर बीजेपी का बहुत मुखर जवाब इसलिए भी नहीं है कि पड़ोसी राज्य बिहार में ही बीजेपी नीतीश कुमार के शराबबंदी के खिलाफ कई बार बयान दे चुकी है. बीजेपी के कई नेताओं का यह मानना है कि बिहार में शराब बिक रही है. माफिया शराब बेच रहे हैं. बस सरकार के खाते में पैसा नहीं आ रहा है जो लोग पीते हैं और जिन्हें पीना है उन्हें तो शराब कहीं ना कहीं से मिल ही जाती है. सरकार को ऐसा उपाय करना चाहिए ताकि लोगों को सहूलियत मिले बिहार में भाजपा नेताओं का यह बयान झारखंड की राजनीति में किसी उत्तर से काफी भारी पड़ सकता है. क्योंकि बिहार में शराब पर नजरिया कुछ और झारखंड में नजरिया कुछ होगा और शायद यही वजह है कि बीजेपी के नेता इस पर ज्यादा कुछ नहीं बोल रहे हैं.

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झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने शराब को लेकर के भले ही सदन में सरकार से बेचने की बात कह दी. लेकिन अपनों के बीच बात में यह चर्चा तो जरूर हुई होगी कि शराब का ज्यादा बेचा जाना भी झारखंड के लोगों के लिए ठीक नहीं. क्योंकि बहुत सारे ऐसे पैरामीटर हैं जिसमें झारखंड में अभी बहुत कुछ करना बाकी है और कहीं झारखंड सरकार द्वारा बेचे जाने वाली शराब के नशे में आ गया तो विकास का बहुत सारा पैमाना अपने आप भटक जाएगा. क्योंकि शराब के जिस ग्लास के पैमाने में झारखंड डूबेगा उससे उबर पाना झारखंड के लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाएगा. यह बात सत्तापक्ष के विधायक और हेमंत सोरेन की बैठक में तो निश्चित तौर पर होगा. लेकिन सवाल पैसे का है इसलिए संभवत: कोई बड़ी रणनीति उस पर न बन पाए. लेकिन राजनीति इस पर होगी इसमें दो राय नहीं है.


बीजेपी का बिहार का रुख और बीजेपी का झारखंड में चुप रहना इस बात का संदेश तो है कि बिहार में शराबबंदी को लेकर के भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इस पर क्या कहता है. यह बीजेपी का हर नेता अपने तरीके से अपने बयानों में रख देता है. लेकिन झारखंड में सरकारी शराब की बिक्री को लेकर के बीजेपी का बहुत मुखर होकर विरोध न करना इसी बात को दर्शाता है कि राजनीति कहीं उत्तर प्रदेश में भारी न पड़ जाए. क्योंकि पड़ोसी राज्यों में जिन चीजों को जोड़ा घटाया जाता है उसमें बिहार झारखंड और उत्तर प्रदेश में राजनीति का समकालीन होना और कई मुद्दों पर एक तरह की राजनीति का होना आम बात है.

ऐसे में बीजेपी का चुप रहना ही इसमें सबसे अहम है. लेकिन शराब बेचने के नाम को लेकर जिस तरीके से सत्ता पक्ष के अपने नेताओं के भीतर अलग-अलग राय आई है उससे एक बात तो साफ है कि नीतीश कुमार की शराबबंदी का कुछ ना कुछ असर झारखंड के कई नेताओं पर दिख रहा है, जो झारखंड के बदलने और झारखंड के बदलाव के लिए भी बहुत जरूरी है. क्योंकि शराब के नशे में रहकर के विकास की बात का करना दिन में सूरज की रोशनी में आकाश में तारे खोजने जैसी ही बात होगी. बहरहाल शराब को लेकर हेमंत सोरेन का बयान सत्ता पक्ष का विरोध और बीजेपी का चुप रहना एक राजनीति को तो बता रहा है कि झारखंड के विकास के लिए यह जरूरी है कि शराब बेचने वाली कोई सरकारी नीति शायद झारखंड को नागवार ही गुजरेगी.

Last Updated : Dec 23, 2021, 7:36 PM IST
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