ETV Bharat / state

झारखंड में इंडिया गठबंधन में भरोसे की कमी! किसके दावे में कितना दम

author img

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Nov 30, 2023, 8:10 PM IST

Updated : Feb 13, 2024, 10:20 PM IST

मिशन 2024 के सियासी फतह को लेकर तैयारी में जुटे राजनीतिक दल झारखंड में सीट के फेरे में फंस गए हैं. भरोसे की राजनीति के एकजुटता का सारा मजमून बिखरता हुआ दिख रहा है. राजनीतिक दलों ने अपने हिसाब से सीटों को बांट लिया है. झारखंड में 2024 की तैयारी में जुटे राजनीतिक दलों का भरोसे की राजनीति टिके कैसे और यह चले कैसे?

Etv Bharat
Etv Bharat

रांची: 2024 की सियासत ने अभी ढंग से अंगड़ाई भी नहीं ली, की झारखंड में सीट वाली लड़ाई जोर पकड़ने लगी है. निर्धारित तो यह हुआ था कि पूरे देश में इंडिया गठबंधन मजबूती से खड़ा होकर के मोदी के मुखालफत की राजनीति करेगा. लेकिन विरोध वाला युद्ध अपनो में ही शुरू हो गया है. झारखंड की 14 सीटों में से 9 सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ेगी, जबकि 9 सीट पर दावेदारी झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भी कर दी है. RJD ने चार सीटों पर अपना दावा ठोका है. जदयू भी 2024 की लड़ाई के लिए मैदान में उतर गई है. अब सवाल यह उठ रहा है कि भरोसे वाली राजनीति आगे कैसे बढ़ेगी और कौन किस पर कैसे भरोसा करेगा क्योंकि बयान शुरू हो गया है कि हम किसी के भरोसे नहीं है.

JDU का दावा: नीतीश की जेडीयू ने झारखंड में चुनाव लड़ने का ऐलान किया और कह दिया कि वह झारखंड में जमीन और जनाधार मजबूत कर रहे हैं. 29 और 30 नवंबर को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और झारखंड के जदयू प्रभारी अशोक चौधरी ने पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ मंथन किया. झारखंड में किस राजनीति के तहत जाना है इस पर चर्चा हुई. लेकिन उसके बाद जो बात कही गई उसने झारखंड की सियासत में एक नई लड़ाई शुरू कर दी. अशोक चौधरी जब बाहर निकले तो उनसे यह पूछा गया कि जो स्थिति झारखंड की है उसमें सीट बंटवारे का जो समीकरण फिलहाल बनता दिख रहा है उसमें जदयू खुद को कहां पाती है. और जिस गठबंधन में आप हैं अगर उसमें आप की पार्टी को सीट नहीं मिलती है तो क्या करेंगे. अशोक चौधरी ने कहा कि हम चुनाव लड़ेंगे. हम किसी के भरोसे नहीं हैं. सवाल यह है कि इंडिया गठबंधन के उस भरोसे का क्या, जिसे नीतीश कुमार पूरे देश में ले जाने के लिए सबसे पहले निकले थे.

हिस्सेदारी की रार- लोकसभा चुनाव आने में अभी समय है. तारीखों का ऐलान भी नहीं हुआ है. चुनाव होने में अभी अच्छा वक्त है. हालांकि 30 तारीख को एक एग्जिट पोल जरूर आया है जिसके बाद एक नई सियासी जंग भी देश में चर्चा में आ गई है. लेकिन उससे पहले झारखंड में हिस्सेदारी की जो लड़ाई छिड़ी हुई है, उसका निदान क्या होगा. यह तो सभी नेता कह रहे हैं कि तमाम वरिष्ठ नेता बैठ करके इस पर फैसला लेंगे. लेकिन समाधान की जो राह बताई जा रही है उसमें वक्त इतना ज्यादा है कि उससे पहले आने वाले बयान गठबंधन धर्म में विरोध की इतनी किले लगा देगा कि फिर उन्हें निकलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा हो जाएगा. 9 सीटों पर कांग्रेस कई महीने पहले से ही दावेदारी कर रखी है. राष्ट्रीय जनता दल ने 4 सीटों पर अपनी पुरानी दावेदारी को बरकरार रखे हुए हैं. 13 सीटों की दावेदारी दो राजनीतिक दलों ने तय कर दी. झारखंड मुक्ति मोर्चा के सहयोग से सरकार चल रही है. हेमंत सोरेन गठबंधन में सबसे मजबूत और सबसे बड़ी पार्टी के रूप में भी हैं. अब ऐसे में उनकी पार्टी के खाते में सिर्फ एक सीट जाएगी यह भी किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं होगा. हालांकि उनकी पार्टी ने भी 9 सीटों पर अपनी दावेदारी ठोक दी है. ऐसी स्थिति में जदयू का क्या होगा.

INDIA गठबंधन का दावा: झारखंड में सीट बंटवारे की लड़ाई पर कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम ने कहा कि पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव 3 दिसंबर को पूरा हो जाएगा उसके बाद हम लोग लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुड़ जाएंगे उसके बाद इस बात की चर्चा की भी जाएगी और सीटों को लेकर के भी तय कर दिया जाएगा कि हम कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेंगे लेकिन हमारी तैयारी तो पहले से ही चल रही है वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडे ने कहा कि हर दल के कार्यकर्ता यह चाहते हैं कि उन्हें अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिले लेकिन इसका निर्णय पार्टी के आलाकमान करेंगे और वही सर्वमान्य होता है. राष्ट्रीय जनता दल ने ऐलान कर दिया है कि वह चार सीटों पर तैयारी कर रहे हैं और वह उस पर चुनाव लड़ेंगे. महागठबंधन के सबसे मजबूत और सबसे बड़े घटक दल जदयू की बात करें तो जिनके प्रयास से गठबंधन वजूद में आया. उन्होंने भी झारखंड में आकर कह दिया कि हम किसी के भरोसे नहीं हैं हम तो चुनाव लड़ेंगे.

BJP का दावा: इंडिया गठबंधन के बीच मची घमासान में भाजपा प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने दावा कर दिया कि गठबंधन का वजूद ही पहले से इसी तरह का रहा है. मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी को जिस तरीके से कांग्रेस ने अलग किया. उत्तर प्रदेश में जिस तरीके की राजनीतिक सियासत है और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने कांग्रेस के साथ जाने से मना कर दिया. यह बातें इंडिया गठबंधन के समझौते को और इंडिया गठबंधन के बीच चल रहे विरोध को दर्शाती हैं. झारखंड में जो लोग सरकार चला रहे हैं उनकी इच्छा नहीं है कि जनता दल यू यहां आकर चुनाव लड़े. अब जबकि जनता दल यूनाइटेड ने अपना दावा ठोक दिया है, तो आने वाले समय में इस पर भी विरोध होना लाजमी है. यह अपने में ही उलझा हुआ गठबंधन है उनके नेता सीट की संख्या पर ही लड़े जा रहे हैं. भाजपा प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा की सीट बंटवारे की लड़ाई से बाहर निकलना इनके बस के बाहर की बात है. क्योंकि सभी स्वार्थ की राजनीति वाले हैं इसलिए समझौते वाला कोई फॉर्मूला यहां दिख नहीं रहा है.

आसान नहीं है भरोसे की राजनीति: सीट बंटवारे में भरोसे वाली राजनीति और राजनीति में भरोसे की बात पर वरिष्ठ पत्रकार रंजीत कुमार ने कहा कि बिहार झारखंड में भरोसे वाली राजनीति की बात चल रही राजनीति के साथ बेईमानी वाली बात है. यहां पर नेताओं ने अभी तक राजनीति का जो चेहरा सामने रखा है उसमें भरोसे की बात ही इस राजनीति में एक दूसरे का बड़ा विरोधाभासी है. नीरज कुमार ने कहा कि नीतीश कुमार ने बीजेपी से राष्ट्रीय जनता दल फिर भाजपा और फिर राष्ट्रीय जनता दल के साथ चलने वाली सियासत से जिस राजनीतिक भरोसे की जमीन खड़ी की है वह सियासत में कितना भरोसा बटोर पाई है यह कहना मुश्किल है. लेकिन इसका सबसे बड़ा उदाहरण यही है कि जिस गठबंधन को खुद नीतीश कुमार खड़ा करना चाह रहे थे, जिसको लेकर के इतनी सारी बैठक हुई उनके नेता ही अब यह कहना शुरू कर दिए हैं कि हम तो चुनाव लड़ेंगे हम किसी के भरोसे नहीं है.

रंजीत कुमार ने कहा कि भरोसे का यह विश्वास ना तो प्रधानमंत्री के नाम पर यह गठबंधन तय कर सका. वह पूरा नहीं हुआ कि अब सीट बंटवारे की लड़ाई चल रही है. अब देखना यह होगा कि महागठबंधन के भरोसे वाली राजनीति जिसका दावा हर नेता कर रहा है सीट बंटवारे का क्या हल निकालता है. गठबंधन के समझौते वाला मामला कहां तक चल पाता है. जिस भरोसे पर कार्यकर्ता बैठे हैं कि हमारे नेता क्या निर्णय लेते हैं और जिस विश्वास पर राज्य के नेता बैठे हैं कि हमारे आलाकमान क्या निर्णय देता है, वह भरोसा उन लोगों के लिए काफी भारी पड़ रहा है जो लोग आज से अपनी राजनीति को मजबूत करने की तैयारी में जमीन पर है. क्योंकि अपने लिए जीत की जमीन और जनाधार को खड़ा करने की लड़ाई ये नेता लड़ते हैं, समझौते के भरोसे वाली राजनीति इन्हें बेरोजगार कर जाती है. और यही वजह है कि भरोसे वाली राजनीति पर सवाल उठने लगा है.

Last Updated :Feb 13, 2024, 10:20 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.