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Palamu News: आजादी के नायक नीलांबर-पीतांबर ने अंग्रेजों की बजा दी थी ईंट से ईंट, आज उपेक्षा का दंश झेल रहा है शहीद का गांव, विकास से कोसों दूर

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Published : Mar 28, 2023, 1:14 PM IST

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स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी शहीद नीलांबर और पीतांबर का गांव चेमो और सान्या सरकार और प्रशासन की उपेक्षा का शिकार है. विकास के काम नहीं हो रहे हैं. सरकारी योजनाओं का भी लाभ लोगों को नहीं मिल रहा है.

पलामू: जिले के ऐसे वीर सपूत जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए, आज उनका गांव उपेक्षा का दंश झेल रहा है. यहां से विकास कोसों दूर है. हम बात कर रहे हैं शहीद नीलांबर और पीतांबर के बदहाल गांव चेमो सान्या की.

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वीर योद्धाओं का गांव नक्सल हिंसा के लिए भी हुआ चर्चित, पूरा इलाका रिजर्व एरिया मेंः शहीद नीलांबर और पीतांबर का गांव चेमो सान्या बूढ़ापहाड़ की तलहटी में है. यह इलाका नक्सल हिंसा के लिए दशकों तक चर्चित रहा है. हालांकि अब इलाके में सुरक्षाबलों के पहुंचने के बाद नक्सलियों की स्थिति कमजोर हो गई है. चेमो और सान्या गांव आज गढ़वा के भंडरिया प्रखंड के अंतर्गत है. पूरा इलाका पलामू टाइगर रिजर्व का हिस्सा है, जबकि यह मंडल डैम डूब क्षेत्र में भी आता है. नतीजा है कि इस गांव में कोई भी विकास के काम नहीं हो रहे हैं. यहां तक कि गांव के लोगों के नियोजन के लिए जरूरी प्रमाण पत्र भी नहीं बन पाता है. डूब क्षेत्र होने के कारण इलाके में पक्की सड़क नहीं बनी है. शौचालय को छोड़ दिया जाए तो इलाके में किसी भी व्यक्ति को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर नहीं मिला है.

दोनों गांव को विस्थापित करने की योजना को तैयार की गई है. लेकिन, स्थानीय लोगों के विरोध और कई बिंदुओं पर सहमति नहीं होने के कारण गांव को विस्थापित नहीं किया गया है. एक वर्ष पहले चेमो-सान्या गांव में नीलांबर और पीतांबर की प्रतिमा लगाई गई थी, जबकि विस्थापन के कारण गांव से दूर मतगड़ी में नीलांबर और पीतांबर की आदमकद प्रतिमा भी लगाई गई थी.

28 मार्च 1859 को दी गई थी नीलांबर और पीतांबर को फांसीः आजादी की लड़ाई में झारखंड के कई वीर सपूतों का योगदान रहा है. नीलांबर और पीतांबर दो ऐसे ही वीर सपूत थे, जिनकी वीरता ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे. 28 मार्च 1859 को नीलांबर और पीतांबर को अंग्रेजों ने पलामू के लेस्लीगंज में पेड़ पर फांसी से लटका दिया था. नीलांबर और पीतांबर ने अपने गुरिल्ला तकनीक से अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे. भगवान बिरसा मुंडा से पहले इन दोनों ने झारखंड में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई शुरू की थी. देश के अधिकांश इलाकों में 1857 की क्रांति कुछ दिनों में कमजोर हो गई थी, लेकिन पलामू ही एक ऐसा इलाका था जहां क्रांति की आग 1859 तक जलती रही. इतिहास में नीलांबर पीतांबर को उतनी जगह नहीं मिली जितने वे इसके हकदार थे.

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नीलांबर और पीतांबर के पिता ने चेमो और सान्या गांव को बसाया थाः नीलांबर और पीतांबर के पिता चेमो सिंह खरवार ने चेमो और सान्या गांव को बसाया था और वे वहां के जागीरदार थे. पिता की मौत के बाद नीलांबर ने ही पीतांबर को पाला था. 1857 के सैन्य विद्रोह के वक्त पीतांबर रांची में थे, वहां से लौट कर उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई की योजना बनाई. दोनों भाइयों ने मिलकर भोक्ता, खरवार, चेरो और आस पास के जागीरदारों के साथ मिल कर गुरिल्ला लड़ाई शुरू कर दी. नीलांबर और पीतांबर ने 27 नवंबर 1857 को रजहरा रेलवे स्टेशन पर हमला किया. यहीं से अंग्रेजो को कोयले की सप्लाई होती थी. इसके बाद अंग्रेज बौखला गए. लेफ्टिनेंट ग्राहम के नेतृत्व में अंग्रेजों की एक फौज पलामू पहुंची और नीलांबर और पीतांबर के ठिकाने पलामू किला पर हमला किया. इस हमले से नीलांबर और पीतांबर के योद्धाओं को नुकसान हुआ था. नीलांबर और पीतांबर की गुरिल्ला लड़ाई की बहादुरी के खिलाफ अंग्रेजो ने कमिश्नर डाल्टन को बड़ी फौज के साथ पलामू भेजा था. कर्नल डाल्टन के साथ मद्रास इन्फेंट्री के सैनिक, घुड़सवार और विशेष बंदूकधारी जवान शामिल थे. फरवरी 1858 में डाल्टन चेमो सान्या पहुंचा और जमकर तबाही मचाई. डाल्टन लगातार 24 दिनों तक के चेमो सान्या में रहा था. बाद में अंग्रेजों ने दोनों भाइयों को धोखे से पकड़ा और 28 मार्च 1859 को लेस्लीगंज में एक पेड़ पर दोनो भाइयों को फांसी दे दी गई.

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