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Farming In Palamu: पलामू में मैजिक राइस की खेती से किसानों के जीवन में जादुई परिवर्तन, वैकल्पिक खेती कर किसान बन रहे संपन्न

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Published : Jul 9, 2023, 5:18 PM IST

पलामू के हुसैनाबाद के किसान पारंपरिक खेती से इतर वैकल्पिक खेती कर अपना जीवन संवार रहे हैं. सहकारी समिति की सहायता से किसान वैकल्पिक खेती कर रहे हैं. यह खेती सामान्य खेती से अलग है. इससे आमदनी भी अच्छी होती है.

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Farmers Of Palamu Are Cultivating Magic Rice

पलामू: जिले के हुसैनाबाद की वीर कुंवर सिंह कृषक सेवा स्वावलंबी सहकारी समिति डूमरहाथा के सदस्यों ने काला धान, लाल धान, काली गेहूं, आलू, पिपरमिंट, पामारोज, तुलसी, लेमनग्रास, काली हल्दी, हरे धान की फसल के प्रयोग के बाद इस वर्ष मैजिक राइस की खेती की है. यह बीज असम से लाया गया है. इसके बीज की कीमत 400 रुपए प्रति किलो है. कुल पांच किलो बीज लाया गया है. जिसे एक एकड़ में लगाया गया है. संस्था के अध्यक्ष रविरंजन कुमार सिंह ने बताया कि इसकी खेती पूरी तरह जैविक विधि से की गई है. इसमें किसी प्रकार का रासायनिक खाद का प्रयोग नहीं किया गया है.

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मैजिक राइस को उबालने की जरूरत नहीं पड़तीः उन्होंने बताया कि इस चावल को उबालने की जरूरत नहीं पड़ती है. इसे डंडा पानी में डाल देने से एक घंटे के अंदर चावल पक कर तैयार हो जाता है. यह मैजिक राइस 150-160 दिनों में तैयार हो जाता है. यह चावल शुगर फ्री होता है. इसमें प्रोटीन की मात्रा बहुत ज्यादा होती है. यह मोटापा को कम करने में सहायक है. उन्होंने बताया कि यह राइस औषधिय गुणों से भरपूर होता है. इस चावल की खेती मणिपुर में प्रचुर मात्रा में की जाती है. वहीं मैजिक राइस की बाजार में कीमत 100 से 150 रुपए किलो है. इस मैजिक राइस की खेती कर झारखंड के किसान अपनी दशा सुधार सकते हैं.

हरे धान की भी की गई है खेती: समिति के सदस्यों ने हरा धान की खेती भी की है. यह बीज असम से लाया गया है. यह बीज 700 रुपए प्रति किलो है. कुल 10 किलो बीज लाया गया है. इसे एक एकड़ में लगाया गया है. इसकी खेती पूरी तरह जैविक विधि से की गई है. इसमें किसी प्रकार का रासायनिक खाद नहीं डाला जाता है. इसका स्वाद खाने में हल्का मीठा होता है. इसमें पोटाशियम और प्रोटीन भरपूर मात्रा में होती है. जिससे यह कुपोषण से बचाव में कारगर है. इस चावल में बासमती चावल की तरह खुश्बू होती है. हरा चावल में एंटी ऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में होते हैं. इसकी फसल 170 दिनों में तैयार हो जाती है. इसका बाजार मूल्य 200 से 300 रुपए प्रति किलो है.

लाल धान की खेती एक एकड़ मेंः इसी तरह लाल धान की खेती भी की गई है. संस्था ने यह बीज असम से लाया गया है. यह बीज 500 प्रति किलो है. कुल 10 किलो बीज लाया गया है. जिसे एक एकड़ में लगाया गया है. इसकी भी खेती पूरी तरह जैविक विधि से की गई है. इसमें किसी प्रकार का रासायनिक खाद नहीं लगता है. यह धान 110-120 दिनों में पककर तैयार हो जाता है. इसमें लेनोइ एन्थोसायनिन की मात्रा भरपूर होने के कारण इसमें मैग्नीसियम और प्रोटीन की मात्रा भरपूर होती है, जो कई प्रकार के रोग को दूर करता है. इस चावल में ग्लाइसेमिक इंडेक्स की मात्रा कम होने के कारण शुगर के रोगी भी इस चावल को खा सकते हैं. किसानों ने बताया कि लाल चावल में आयरन की मात्रा अधिक होने के कारण यह अस्थमा रोग रोकने में सहायक है. इसका बाजार भाव 200 से 300 रुपए प्रति किलो है.

काली हल्दी के खेती की ओर भी बढ़ रहा रुझानः समिति के सदस्यों ने इस बार काली हल्दी की खेती भी की है. यह बीज गया (बिहार) से लाया गया है. यह बीज 800 प्रति किलो है. 10 किलो बीज लाया गया है. जिसे पांच कट्ठा खेत में लगाया गया है. किसानों ने बताया कि काली हल्दी औषधिय गुणों से भरपूर है. इसकी खेती के लिए भुरभुरी मिट्टी उपयुक्त है. इसमें कीट प्रकोप नहीं लगता है. इसकी खेती के लिए जून माह उपयुक्त है. यह 250 दिनों में तैयार होती है. इसमें एंटी ऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में पाया जाता है. इसमें एंटी बैक्टीरियल, एंटी इंफ्लेमीट्री गुण होने के कारण जोड़ों का दर्द, अस्थमा, सर्दी, जुकाम, कैंसर, मिर्गी और अन्य रोगों को दूर करने में सहायक है. इसका उपयोग आयुर्वेद दवाई बनाने में किया जाता है. यह फेफड़े के रोगों में भी रामबाण है. यह माइग्रेन के दर्द को दूर करने में भी काम आता है. इसके पत्ते को पीसकर पाउडर बनाया जाता है. यह गैस्ट्रीक के रोग में काम आता है. इसका बाजार मूल्य 500 से 800 प्रति किलो है.

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परंपरागत खेती से अलग खेती कर संपन्न बन रहे किसानः समिति के अध्यक्ष प्रियरंजन कुमार सिंह ने बताया कि डूमरहत्था समेत आसपास के किसानों ने परंपरागत खेती को कम कर अधिकतर नई फसलें उगाकर अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ कर रहे हैं. किसानों के द्वारा उपजाए फसलों को खरीदने यूपी के नोएडा, बाराबंकी समेत अन्य शहरों के व्यापारी आते हैं. उन्हें अपनी उपज बेचने कहीं जाना भी नहीं पड़ता है. प्रियरंजन ने बताया कि परंपरागत खेती को छोड़ किसान मालामाल हो रहे हैं. इस तकनीक को सिखाने के लिए समिति किसी प्रखंड या गांव में प्रशिक्षण देने के साथ-साथ बीज आदि भी उपलब्ध कराने का काम करेंगे.

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