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Drought in Palamu: दशक गुजर गए लेकिन पानी के लिए तरस रहा यह इलाका, कर्क रेखा और पहाड़ बना रेन शेडो जोन

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Published : Aug 13, 2023, 6:51 PM IST

अकाल और सुखाड़ की चर्चा जब भी होती है, एक इलाके की तस्वीर उभर कर सामने आती है. यह इलाका कई दशकों से पानी के लिए तरस रहा है. औसत प्रत्येक दूसरे वर्ष यह इलाका सुखाड़ की चपेट में आता है. कभी यह इलाका अकाल और सुखाड़ के कारण भूख से हुई मौतों के लिए भी चर्चित रहा है. यह इलाका है पलामू का.

Drought in Palamu for second consecutive year
Drought in Palamu for second consecutive year

पलामू: झारखंड की राजधानी रांची से करीब 165 किलोमीटर दूर पलामू लगातार दूसरे वर्ष सुखाड़ के लिए चर्चा में बना हुआ है. पलामू देश के अकाल जोन के लिए भी जाना जाता रहा है. इस जोन में ओडिशा का कालाहांडी, पश्चिम बंगाल का पुरुलिया, गुजरात का कच्छ का इलाका भी है. पलामू के अकाल और सुखाड़ के बारे में जानकारी कई राज्यों के पाठ्य सामग्री में भी उपलब्ध है. पलामू का इलाका पठारी है और 90 प्रतिशत से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर है. 70 प्रतिशत के करीब खेती बारिश के पानी पर निर्भर है, यही वजह है कि यह इस इलाके में अकाल और सुखाड़ का प्रभाव अधिक नजर आता है.

ये भी पढ़ें: सुखाड़ जैसे हालात उत्पन्न होने के बाद पलामू जिला प्रशासन ने शुरू की तैयारी, डीसी ने अधिकारियों को दिए कई निर्देश


पलामू में अकाल के हालात को लेकर प्रधानमंत्री भी कर चुके है दौरा: 1966 के बाद से पलामू आधा दर्जन से अधिक बार अकाल, जबकि दो दर्जन से अधिक बार सुखाड़ का सामना कर चुका है. 1966 में भूख से पलामू में कई लोगो को मौत हुई थी. 1991-92 में पलामू में भीषण अकाल पड़ा था. अकाल के हालात को देखते हुए देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव ने पलामू के इलाके का दौरा किया था और अकाल की विभीषिका को देखी थी. झारखंड बनने के बाद पलामू आधा दर्जन से अधिक बार सुखाड़ का दंश झेल चुका है.

पलामू से गुजरती है कर्क रेखा, नेतरहाट की पहाड़ियां बारिश में बाधक: पलामू के इलाके से कर्क रेखा गुजरती है और यह पूरा का इलाका रेन शैडो जोन के रूप में जाना जाता है. वन रखी मूवमेंट के प्रणेता सह प्रसिद्ध पर्यावरणविद् कौशल किशोर जायसवाल बताते हैं कि पलामू से कर्क रेखा गुजरती है, यही वजह है कि इलाके में बारिश कम होती है. बारिश कम होने से इलाके में अकाल और सुखाड़ का प्रभाव नजर आता है. कौशल किशोर जायसवाल बताते हैं कि नेतरहाट की पहाड़ियां काफी ऊंची हैं. इन पहाड़ियों की तराई में पलामू का इलाका बसा हुआ है.

कौशल किशोर जायसवाल बताते हैं कि 1966 से पलामू में अकाल की विभीषिका चली आ रही है. प्रदूषण के साथ-साथ पहाड़ियां भी बारिश के बड़ी बाधक बन गई है. पूरब दिशा की तरफ से आने वाले बादल प्रदूषण के कारण नहीं बरस पाते हैं. रांची और नेतरहाट की तरफ से आने वाले बादल पहाड़ों के कारण नहीं बरस पाते हैं. उनकी दिशा बदल जाती है, हाल कईं दिनों में बारिश के कम होने का कारण प्रदूषण और माइनिंग है. लोग अर्थ के लिए अनर्थ कर रहे हैं.

अविभाजित बिहार में शुरू हुई कई सिंचाई परियोजना, आज तक नहीं हुई पूरी: पलामू का प्यास बुझाने के लिए अविभाजित बिहार में कई सिंचाई परियोजनाएं शुरू हुईं. इन परियोजनाओं में मंडल डैम, औरंगा सिंचाई परियोजना, कनहर सिंचाई परियोजना, बटाने सिंचाई, अमानत सिंचाई परियोजना अधूरी है. उत्तर कोयल नहर परियोजना के तहत मंडल डैम के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पहल कर चुके हैं, लेकिन आज तक इस डैम का कार्य आगे नहीं बढ़ पाया है. सिंचाई परियोजनाओं के पूरा हो जाने से पलामू प्रमंडल में करीब छह लाख हेक्टेयर जमीन में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो जाएगी.

राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष किसान संजय प्रसाद सिंह यादव का कहना है कि उदासीनता के कारण मंडल डैम परियोजना पूरा नहीं हो पाई है. किसान नर्वदेश्वर सिंह का कहना है कि जिसकी भी सरकार बनी किसानों को छलने का काम किया है, सिंचाई परियोजनाएं पूरी हो इसके लिए किसी भी सरकार ने ठोस कदम नहीं उठाया है. किसान लगातार काल और सुखाड़ का सामना कर रहे हैं. उनके पूर्वजों ने भी अकाल और सुखाड़ को देखा था और वह भी देख रहे हैं.

पलामू: झारखंड की राजधानी रांची से करीब 165 किलोमीटर दूर पलामू लगातार दूसरे वर्ष सुखाड़ के लिए चर्चा में बना हुआ है. पलामू देश के अकाल जोन के लिए भी जाना जाता रहा है. इस जोन में ओडिशा का कालाहांडी, पश्चिम बंगाल का पुरुलिया, गुजरात का कच्छ का इलाका भी है. पलामू के अकाल और सुखाड़ के बारे में जानकारी कई राज्यों के पाठ्य सामग्री में भी उपलब्ध है. पलामू का इलाका पठारी है और 90 प्रतिशत से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर है. 70 प्रतिशत के करीब खेती बारिश के पानी पर निर्भर है, यही वजह है कि यह इस इलाके में अकाल और सुखाड़ का प्रभाव अधिक नजर आता है.

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पलामू में अकाल के हालात को लेकर प्रधानमंत्री भी कर चुके है दौरा: 1966 के बाद से पलामू आधा दर्जन से अधिक बार अकाल, जबकि दो दर्जन से अधिक बार सुखाड़ का सामना कर चुका है. 1966 में भूख से पलामू में कई लोगो को मौत हुई थी. 1991-92 में पलामू में भीषण अकाल पड़ा था. अकाल के हालात को देखते हुए देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव ने पलामू के इलाके का दौरा किया था और अकाल की विभीषिका को देखी थी. झारखंड बनने के बाद पलामू आधा दर्जन से अधिक बार सुखाड़ का दंश झेल चुका है.

पलामू से गुजरती है कर्क रेखा, नेतरहाट की पहाड़ियां बारिश में बाधक: पलामू के इलाके से कर्क रेखा गुजरती है और यह पूरा का इलाका रेन शैडो जोन के रूप में जाना जाता है. वन रखी मूवमेंट के प्रणेता सह प्रसिद्ध पर्यावरणविद् कौशल किशोर जायसवाल बताते हैं कि पलामू से कर्क रेखा गुजरती है, यही वजह है कि इलाके में बारिश कम होती है. बारिश कम होने से इलाके में अकाल और सुखाड़ का प्रभाव नजर आता है. कौशल किशोर जायसवाल बताते हैं कि नेतरहाट की पहाड़ियां काफी ऊंची हैं. इन पहाड़ियों की तराई में पलामू का इलाका बसा हुआ है.

कौशल किशोर जायसवाल बताते हैं कि 1966 से पलामू में अकाल की विभीषिका चली आ रही है. प्रदूषण के साथ-साथ पहाड़ियां भी बारिश के बड़ी बाधक बन गई है. पूरब दिशा की तरफ से आने वाले बादल प्रदूषण के कारण नहीं बरस पाते हैं. रांची और नेतरहाट की तरफ से आने वाले बादल पहाड़ों के कारण नहीं बरस पाते हैं. उनकी दिशा बदल जाती है, हाल कईं दिनों में बारिश के कम होने का कारण प्रदूषण और माइनिंग है. लोग अर्थ के लिए अनर्थ कर रहे हैं.

अविभाजित बिहार में शुरू हुई कई सिंचाई परियोजना, आज तक नहीं हुई पूरी: पलामू का प्यास बुझाने के लिए अविभाजित बिहार में कई सिंचाई परियोजनाएं शुरू हुईं. इन परियोजनाओं में मंडल डैम, औरंगा सिंचाई परियोजना, कनहर सिंचाई परियोजना, बटाने सिंचाई, अमानत सिंचाई परियोजना अधूरी है. उत्तर कोयल नहर परियोजना के तहत मंडल डैम के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पहल कर चुके हैं, लेकिन आज तक इस डैम का कार्य आगे नहीं बढ़ पाया है. सिंचाई परियोजनाओं के पूरा हो जाने से पलामू प्रमंडल में करीब छह लाख हेक्टेयर जमीन में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो जाएगी.

राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष किसान संजय प्रसाद सिंह यादव का कहना है कि उदासीनता के कारण मंडल डैम परियोजना पूरा नहीं हो पाई है. किसान नर्वदेश्वर सिंह का कहना है कि जिसकी भी सरकार बनी किसानों को छलने का काम किया है, सिंचाई परियोजनाएं पूरी हो इसके लिए किसी भी सरकार ने ठोस कदम नहीं उठाया है. किसान लगातार काल और सुखाड़ का सामना कर रहे हैं. उनके पूर्वजों ने भी अकाल और सुखाड़ को देखा था और वह भी देख रहे हैं.

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