Maoist band: लातेहार में बंद का मिलाजुला असर, महुआडांड़ में जनजीवन प्रभावित

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Published : Nov 23, 2021, 5:32 PM IST

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लातेहार में माओवादी बंद का मिलाजुला असर दिखा. लेकिन महुआडांड़ में बंद का व्यापक असर देखने को मिला.

लातेहारः भाकपा माओवादियों के तीन दिवसीय बंद (CPI-Maoists' Three-day Band) का लातेहार जिला में मिलाजुला असर देखने को मिला. बंद के पहले दिन जिला मुख्यालय में जहां स्थिति सामान्य रही. वहीं जिला के महुआडांड़ अनुमंडल क्षेत्र में बंद का व्यापक असर रहा. हालांकि लंबी दूरी की यात्रा वाहन पूरे जिला में ही काफी कम चले.

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माओवादी नेता प्रशांत बोस (Maoist leader Prashant Bose) और शीला मरांडी की गिरफ्तारी का विरोध किया. इसके साथ ही किसान आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों को मुआवजा देने की मांग को लेकर भाकपा माओवादियों ने झारखंड समेत देश के 4 राज्यों में तीन दिवसीय बंद का ऐलान किया. बंद के पहले दिन लातेहार जिला में मंगलवार को इसका मिलाजुला असर देखने को मिला है.

मौके से जानकारी देते लातेहार संवाददाता

जिला के लातेहार, चंदवा, बालूमाथ और मनिका में बंद का असर काफी कम दिखा. यहां सामान्य दिनों की तरह ही दुकानें खुली रहीं. छोटी-मोटी गाड़ियों का परिचालन भी सड़कों पर होता दिखा. इसके अलावा जिला में सरकारी कार्यालय भी खुले रहे.

महुआडांड़ में व्यापक असर
जिला के महुआडांड़ अनुमंडल क्षेत्र में माओवादी बंद का व्यापक असर (Massive impact of Maoist band) देखने को मिल रहा है. बंदी को लेकर यहां लगभग सभी दुकानें भी बंद थीं. वहीं एक भी यात्री वाहन सड़कों पर नहीं चल रहे. ऐसे में बंद के कारण आम लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा.

पुलिस रही सक्रिय
हालांकि बंद को लेकर पुलिस पूरी तरह सक्रिय दिखी. पुलिस की टीम लगातार सड़कों पर पेट्रोलिंग करती रही. जिससे किसी प्रकार की घटना को रोका जा सके. एसपी अंजनी अंजन भी सुरक्षा व्यवस्था को लेकर लगातार अधिकारियों को निर्देश देते रहे.

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4 दिन पहले हुई घटना से बना भय
माओवादियों की ओर से 4 दिन पूर्व की गयी एकदिवसीय बंद के दौरान रेलवे ट्रैक को उड़ा दिया (Blew up Railway Track) था. घटना के बाद लोगों में एक बार फिर भय का माहौल दिखा. इसी कारण बंदी होने पर यात्री वाहनों के परिचालन पर प्रभाव पड़ा है.

कई वर्षों के बाद दिखा बंदी का असर
लातेहार जिला में माओवादी या दूसरे किसी भी उग्रवादी संगठन के बंदी का असर कई वर्षों के बाद देखने को मिला है. इधर हाल के वर्षों में उग्रवादियों के बुलाए बंद के बावजूद भी बंद का कोई खास असर नहीं होता था.

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