रांची: झारखंड देश का एकमात्र ऐसा राज्य है जहां क्षेत्रीय या राष्ट्रीय भाषा के संवर्धन के लिए कोई अकादमी तक नहीं है. पिछले रघुवर सरकार के कार्यकाल में हिंदी, उर्दू सहित कुछ क्षेत्रीय भाषाओं के अकादमी खोलने की घोषणा भी की गई थी मगर वो भी सरकार बदलने के साथ समाप्त हो गया. वर्तमान सरकार भी लगभग इसी राह पर है. भाषा अकादमी खोलने को लेकर सरकार ने क्षेत्रीय जनजातीय भाषाओं के लिए अकादमी बनाने का निर्णय भी लिया, मगर यह भी सरकारी उलझनों में फंस कर रह गया है.
छत्तीसगढ़ समेत देश के विभिन्न राज्यों में है भाषा अकादमीः झारखंड में भाषा को लेकर उठे विवाद के आगे भाषा अकादमी खोलने की मांग दब सी गई है. लंबे समय से भाषा अकादमी की मांग कर रहे मैथिली के जाने माने साहित्यकार सियाराम झा सरस कहते हैं कि दृढ इच्छाशक्ति की कमी के कारण यहां अब तक भाषा अकादमी नहीं खोला जा सका. जबकि छत्तीसगढ़ इससे कहीं आगे निकल चुका है. राज्यपाल से लेकर मुख्यमंत्री तक कई बार गुहार लगाने के बावजूद अब तक अकादमी नहीं बनाया जाना सरकार की इच्छाशक्ति को दर्शाता है. जबकि इसके माध्यम से ना केवल भाषा का संवर्धन होगा, बल्कि झारखंड की संस्कृति और सभ्यता को युगों युगों तक जाना जायेगा.
उर्दू के प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ मंजर हुसैन सरकार की वादाखिलाफी से बेहद नाराज दिख रहे हैं. उन्होंने बिहार की तरह झारखंड में उर्दू अकादमी, उर्दू निदेशालय आदि खोलने की मांग करते हुए कहा कि इसके होने से उर्दू भाषा का विकास और उस पर रिसर्च का काम हो सकेगा. उन्होंने कहा कि 22 वर्षों में जो भी सरकारें आई सभी ने आश्वासन दिया मगर भाषा अकादमी खोलने पर गंभीरता नहीं दिखाई.
झारखंड में ये भाषा हैं दूसरी राजभाषा में शामिलः झारखंड में कुल 17 भाषा द्वितीय राजभाषा में शामिल हैं. 10 दिसंबर 2018 को प्रकाशित झारखंड गजट के अनुसार राज्य में उर्दू, संथाली, बांग्ला, खड़िया, मुंडारी, हो, कुडुख, कुरमाली, खोरठा, नागपुरी, पंचपरगनिया, उड़िया, मगही, भोजपुरी, मैथिली, अंगिका एवं भूमिज भाषा को मान्यता दी गई है. मैथिली को छोड़कर सभी भाषाओं को जेएसएससी की मैट्रिक-इंटर स्तर की प्रतियोगिता परीक्षा में मान्यता दी गई है.
जनजातीय भाषाओं के संवर्धन के लिए बना टीआरआई भी बदहालः जनजातीय भाषाओं और बोली के संवर्धन के लिए गठित टीआरआई बदहाल है. टीआरआई में स्वीकृत 54 पदों में से महज 2 कार्यरत हैं. ऐसे में यह संस्थान किस तरह काम करेगा इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. इन सबके बीच टीआरआई निदेशक रणेंद्र कुमार का मानना है कि भाषा अकादमी को लेकर सरकार गंभीर है और इस दिशा में टीआरआई द्वारा एक प्रस्ताव विभागीय सचिव को भेजा गया है. इस भाषा अकादमी में सभी भाषाओं का समावेश होगा. बिहार एवं अन्य राज्यों में राजनीतिक कारणों से बनी भाषा अकादमी से सीख लेते हुए राज्य सरकार सम्मिलित रुप से भाषा अकादमी बनाने पर विचार कर रही है.
बहरहाल भाषा को लेकर भलें ही झारखंड में सियासत हो रही हो, मगर हकीकत तो यही है कि देश का एकमात्र ऐसा राज्य जहां भाषा अकादमी के नाम पर कोई भी सरकारी संस्थान अब तक नहीं है. ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि सियासी चश्मे के बजाय सरकार भाषा संरक्षण के लिए ईमानदारी से पहल करे.