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JVM की नैय्या कैसे लगेगी पार, पार्टी से लगातार हो रहा नेताओं का पलायन

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Published : Jul 18, 2019, 4:02 PM IST

JVM से लगातार हो रहा नेताओं का पलायन

लोकसभा चुनाव के पहले मरांडी के पुराने सहयोगी प्रवीण सिंह ने झाविमो का दामन थामा, लेकिन फिर वह भी जदयू में चले गए. वहीं, लोकसभा चुनाव के दौरान पलामू इलाके से बड़ी संख्या में झाविमो नेताओं का बीजेपी में दामन थामना भी झाविमो के लिए बड़ा झटका माना जा रहा था.

रांची: अपने गठन के बाद लगातार राजनीतिक झंझावात झेल रहे प्रदेश के विपक्षी दल झारखंड विकास मोर्चा की नाव फिर से मंझधार में फंस गई है. लोकसभा चुनाव में झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी और पार्टी के मजबूत स्तंभ समझे जाने वाले प्रदीप यादव की करारी शिकस्त की मार से दल अभी उभरा भी नहीं कि दूसरा घाव पार्टी को झेलना पड़ रहा है. झाविमो से लोग अब बीजेपी की ओर रुख करने लगे हैं.

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फिलहाल पार्टी के 2 विधायकों में से एक प्रदीप यादव यौन शोषण के एक मामले में आरोपी हैं और फरार चल रहे हैं. उनके ऊपर उनके ही दल की एक महिला नेत्री ने यौन शोषण का आरोप लगाया है. देवघर जिले में इस बाबत मामला दर्ज होने के बाद प्रदीप यादव ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन वहां भी उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज हो गई. वहीं, दूसरे विधायक प्रकाश राम की गतिविधियां भी पार्टी के अंदरखाने नहीं देखने को मिल रही हैं.

विधानसभा चुनाव 2009 के बाद बढ़ा पलायन
हालांकि पार्टी से पलायन का दौर 2009 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद तेज हुआ, लेकिन अभी तक पार्टी के विधायक दूसरे दलों की तरफ शिफ्ट हो रहे थे. अब स्थिति यह है कि झाविमो से जुड़े नेता पार्टी छोड़कर जा रहे हैं. कुछ दिन पहले एकीकृत बिहार में दो बार विधायक रहे और 2014 में बीजेपी छोड़कर झाविमो गए गिरिडीह इलाके के लक्ष्मण स्वर्णकार ने बीजेपी में घर वापसी की. हालिया उदाहरण झाविमो कोषाध्यक्ष और बाबूलाल मरांडी के करीबी रहे केके पोद्दार, पार्टी के केंद्रीय प्रवक्ता योगेंद्र प्रताप सिंह और दल के अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष मुन्ना मलिक की बीजेपी में शिफ्टिंग से झाविमो के राजनीतिक भविष्य को लेकर प्रश्न उठने लगा है.

2006 में हुआ जेवीएम का गठन

इतना ही नहीं लोकसभा चुनाव के पहले मरांडी के पुराने सहयोगी प्रवीण सिंह ने झाविमो का दामन थामा, लेकिन फिर वह भी जदयू में चले गए. वहीं, लोकसभा चुनाव के दौरान पलामू इलाके से बड़ी संख्या में झाविमो नेताओं का बीजेपी में दामन थामना भी झाविमो के लिए बड़ा झटका माना जा रहा था. 2006 में बीजेपी से रास्ता अलग करने के बाद बाबूलाल मरांडी ने झाविमो का गठन किया. उसके बाद कई दफा ऐसे मौके आए जब पार्टी को राजनीतिक झंझावतों से होकर गुजरना पड़ा.

साल 2009 में झारखंड विकास मोर्चा ने कांग्रेस से गठबंधन कर 25 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा और ग्यारह एमएलए चुनकर आए. उनमें से ज्यादातर अगले विधानसभा चुनाव नजदीक आते आते झाविमो का दामन छोड़कर अन्य दलों में चले गए. वहीं, 2014 विधानसभा के बाद 8 एमएलए झारखंड विकास मोर्चा के झारखंड विधानसभा पहुंचे, लेकिन उनमें से 6 पाला बदलकर बीजेपी में शामिल हो गए. 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में बाबूलाल मरांडी और 2019 में मरांडी और प्रदीप यादव दोनों को करारी हार का सामना करना पड़ा. नतीजा यह हुआ कि दोनों आम चुनावों में पार्टी का खाता तक नहीं खुला.

Intro:बाइट योगेंद्र प्रताप पूर्व केंद्रीय प्रवक्ता झाविमो रांची। अपने गठन के बाद लगातार राजनीतिक झंझावात झेल रहे प्रदेश के विपक्षी दल झारखंड विकास मोर्चा की नाव फिर से मंझधार में फंस गई है। लोकसभा चुनावों में झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी और पार्टी के मजबूत स्तंभ समझे जाने वाले प्रदीप यादव की करारी शिकस्त की मार से दल अभी उबरा नहीं कि दूसरा घाव पार्टी को झेलना पड़ रहा है। एक तरफ प्रदेश में इस साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने हैं वहीं दूसरी तरफ झाविमो के संगठन से लोग बीजेपी के तरफ मुड़ने लगे हैं। झाविमो के दो विधायकों में से एक 'फरार' दूसरा 'खामोश' फिलहाल पार्टी के 2 विधायकों में से एक प्रदीप यादव यौन शोषण के एक मामले में आरोपी हैं और फरार चल रहे हैं। उनके उपर उनके ही दल की एक महिला नेत्री ने यौन शोषण का आरोप लगाया है। देवघर जिले में इस बाबत मामला दर्ज होने के बाद प्रदीप यादव ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन वहां भी उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज हो गई। वहीं दूसरे विधायक प्रकाश राम की गतिविधियां भी पार्टी के अंदरखाने नहीं देखने को मिल रही हैं।


Body: 2009 के विधानसभा के चुनाव के बाद बढ़ा पलायन हालांकि पार्टी से पलायन का दौर 2009 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद तेज हुआ लेकिन अभी तक पार्टी के विधायक दूसरे दलों के तरफ शिफ्ट हो रहे थे। अब स्थिति यह है कि झाविमो के संगठन से जुड़े नेता पार्टी छोड़कर जा रहे हैं। कुछ दिन पहले एकीकृत बिहार में दो बार विधायक रहे और 2014 में बीजेपी छोड़कर झाविमो गए गिरिडीह इलाके के लक्ष्मण स्वर्णकार ने बीजेपी में घर वापसी की। हालिया उदाहरण झाविमो के कोषाध्यक्ष और बाबूलाल मरांडी के करीबी रहे के के पोद्दार, पार्टी के केंद्रीय प्रवक्ता योगेंद्र प्रताप सिंह और दल के अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष मुन्ना मलिक की बीजेपी में शिफ्टिंग से झाविमो के राजनीतिक भविष्य को लेकर प्रश्न उठने लगा है। इतना ही नहीं लोकसभा चुनाव के पहले मरांडी के पुराने सहयोगी प्रवीण सिंह ने झाविमो का दामन थामा लेकिन फिर वह भी जदयू में चले गए। वहीं लोकसभा चुनावों के दौरान पलामू इलाके से बड़ी संख्या में झाविमो नेताओं का बीजेपी में दामन थामना भी झाविमो के लिए बड़ा झटका माना जा रहा था। कई राजनीतिक झंझावात झेले हैं मरांडी के झाविमो ने 2006 में बीजेपी से रास्ता अलग करने के बाद बाबूलाल मरांडी ने झाविमो का गठन किया। उसके बाद कई दफे ऐसे मौके आए जब पार्टी को राजनीतिक झंझावतों से होकर गुजरना पड़ा। 2009 में झारखंड विकास मोर्चा ने कांग्रेस से गठबंधन कर 25 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा और एक ग्यारह एमएलए चुनकर आए। उनमें से ज्यादातर अगले विधानसभा चुनाव नजदीक आते आते झाविमो का दामन छोड़ कर अन्य दलों में चले गए। वहीं 2014 के विधानसभा के बाद 8 एमएलए झारखंड विकास मोर्चा के झारखंड विधानसभा पहुंचे लेकिन उनमें से छह पाला बदलकर बीजेपी में शामिल हो गए । 2014 में में हुए लोकसभा चुनावों में बाबूलाल मरांडी और 2019 में मरांडी और प्रदीप यक़दव दोनों को करारी हार का सामना करना पड़ा। नतीजा यह हुआ कि दोनों आम चुनावों में पार्टी का खाता तक नहीं खुला।


Conclusion:कौन प्रमुख चेहरे बचे हैं झाविमो में पार्टी में लगातार पलायन के बाद पलट कर देखें तो पार्टी सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी के अलावा राज्य के पूर्व शिक्षा मंत्री और झाविमो में महासचिव बंधु तिर्की का चेहरा देखने को मिलता है। वहीं झाविमो की महिला मोर्चा और युवा मोर्चा में थोड़ी सक्रियता बची हुई है। हालांकि बंधु तिर्की के बारे में यह भी चर्चा है कि वह जल्द ही कांग्रेस का दामन थामने वाले हैं। इसके अलावे पूर्व विधायक सब अहमद, जमशेदपुर में सक्रिय अभय सिंह और खालिद खलील के नाम भी शामिल हैं। क्या है भविष्य की स्ट्रेटेजी विधानसभा चुनाव में कथित तौर पर महागठबंधन का हिस्सा बने झाविमो के पास ज्यादा विकल्प नजर नहीं आ रहे हैं। हालांकि पार्टी ने दावा किया है कि वह 41 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। हैरत की बात यह है कि महागठबंधन को लेकर कांग्रेस और झामुमो ने भी क्लियर कर दिया है कि विधानसभा चुनाव झामुमो के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। ऐसे में आधी से अधिक सीट झामुमो के खाते में जाएगी। उसके बाद कांग्रेस का नंबर आएगा। इन परिस्थितियों में झाविमो महागठबंधन का हिस्सा होगा या नहीं यह भी अभी स्पष्ट नहीं है
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