रांची: अपने गठन के बाद लगातार राजनीतिक झंझावात झेल रहे प्रदेश के विपक्षी दल झारखंड विकास मोर्चा की नाव फिर से मंझधार में फंस गई है. लोकसभा चुनाव में झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी और पार्टी के मजबूत स्तंभ समझे जाने वाले प्रदीप यादव की करारी शिकस्त की मार से दल अभी उभरा भी नहीं कि दूसरा घाव पार्टी को झेलना पड़ रहा है. झाविमो से लोग अब बीजेपी की ओर रुख करने लगे हैं.
फिलहाल पार्टी के 2 विधायकों में से एक प्रदीप यादव यौन शोषण के एक मामले में आरोपी हैं और फरार चल रहे हैं. उनके ऊपर उनके ही दल की एक महिला नेत्री ने यौन शोषण का आरोप लगाया है. देवघर जिले में इस बाबत मामला दर्ज होने के बाद प्रदीप यादव ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन वहां भी उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज हो गई. वहीं, दूसरे विधायक प्रकाश राम की गतिविधियां भी पार्टी के अंदरखाने नहीं देखने को मिल रही हैं.
विधानसभा चुनाव 2009 के बाद बढ़ा पलायन
हालांकि पार्टी से पलायन का दौर 2009 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद तेज हुआ, लेकिन अभी तक पार्टी के विधायक दूसरे दलों की तरफ शिफ्ट हो रहे थे. अब स्थिति यह है कि झाविमो से जुड़े नेता पार्टी छोड़कर जा रहे हैं. कुछ दिन पहले एकीकृत बिहार में दो बार विधायक रहे और 2014 में बीजेपी छोड़कर झाविमो गए गिरिडीह इलाके के लक्ष्मण स्वर्णकार ने बीजेपी में घर वापसी की. हालिया उदाहरण झाविमो कोषाध्यक्ष और बाबूलाल मरांडी के करीबी रहे केके पोद्दार, पार्टी के केंद्रीय प्रवक्ता योगेंद्र प्रताप सिंह और दल के अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष मुन्ना मलिक की बीजेपी में शिफ्टिंग से झाविमो के राजनीतिक भविष्य को लेकर प्रश्न उठने लगा है.
2006 में हुआ जेवीएम का गठन
इतना ही नहीं लोकसभा चुनाव के पहले मरांडी के पुराने सहयोगी प्रवीण सिंह ने झाविमो का दामन थामा, लेकिन फिर वह भी जदयू में चले गए. वहीं, लोकसभा चुनाव के दौरान पलामू इलाके से बड़ी संख्या में झाविमो नेताओं का बीजेपी में दामन थामना भी झाविमो के लिए बड़ा झटका माना जा रहा था. 2006 में बीजेपी से रास्ता अलग करने के बाद बाबूलाल मरांडी ने झाविमो का गठन किया. उसके बाद कई दफा ऐसे मौके आए जब पार्टी को राजनीतिक झंझावतों से होकर गुजरना पड़ा.
साल 2009 में झारखंड विकास मोर्चा ने कांग्रेस से गठबंधन कर 25 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा और ग्यारह एमएलए चुनकर आए. उनमें से ज्यादातर अगले विधानसभा चुनाव नजदीक आते आते झाविमो का दामन छोड़कर अन्य दलों में चले गए. वहीं, 2014 विधानसभा के बाद 8 एमएलए झारखंड विकास मोर्चा के झारखंड विधानसभा पहुंचे, लेकिन उनमें से 6 पाला बदलकर बीजेपी में शामिल हो गए. 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में बाबूलाल मरांडी और 2019 में मरांडी और प्रदीप यादव दोनों को करारी हार का सामना करना पड़ा. नतीजा यह हुआ कि दोनों आम चुनावों में पार्टी का खाता तक नहीं खुला.