रांची: झारखंड विधानसभा के बजट सत्र के दौरान जब 14 मार्च को विधानसभा स्वास्थ्य बजट पर चर्चा हो रही थी, तब मुख्य विपक्षी दल भाजपा वर्तमान सरकार में लचर स्वास्थ्य व्यवस्था और कोरोना काल में पूरी तरह फेल होने का आरोप लगा रही थी. इस दौरान बीजेपी पूर्व की रघुवर सरकार में स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर बता रही थी. विधानसभा के अंदर सरकार और विपक्ष के बीच स्वास्थ्य को लेकर आरोप प्रत्यारोप के बीच झारखंड में वर्ष 2014 से 2019 के बीच राज्य के 06 जिलों के सदर अस्पताल में किए गए CAG जांच और स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट न सिर्फ चौंकाने वाली है बल्कि यह सवाल भी खड़े करती है कि किस तरह राज्य की सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था आम लोगों के जीवन से खिलवाड़ करती रही है.
विधानसभा के पटल पर 15 मार्च 2022 को रिपोर्ट रखने के बाद झारखंड की प्रधान महालेखाकार इंदु अग्रवाल ने कहा कि राज्य में बेहतर सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए जवाबदेही तय होनी जरूरी है. कुछ खास बिदू हैं जो यह दिखाती है कि स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में वर्ष 2014-2019 के बीच कैसे लापरवाही बरती गई.
रामगढ़ में नवजात को दी गई एक्सपायर्ड वैक्सीन: सीएजी (CAG) की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि हेपेटाइटिस बी से बचाव के लिए जो वैक्सीन नवजात को दी जाती है वह अक्टूबर 2018 में ही एक्सपायर हो गयी थी. इसके बाद भी जनवरी 2019 तक बच्चों को लगाई गई.
नकली दवा भी बीमार लोगों को दी गई: झारखंड की प्रधान महालेखाकार इंदु अग्रवाल ने स्वास्थ्य पर सीएजी (CAG) की रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि देवघर जिले में डेकसोना 2ml की वायल को रीजनल ड्रग टेस्टिंग सेंटर गुवाहाटी ने नकली बताया था. जबकि कोलकाता की ड्रग टेस्टिंग सेंटर ने उसे सबस्टैंडर्ड बताया था. इसके बाद भी 309 वायल नकली इंजेक्शन मरीजों को लगा दी गयी.
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सवालों के घेरे में झारखंड मेडिकल एंड हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्टर डेवलपमेंट एंड प्रोक्योरमेंट कॉर्पोरेशन: अपनी रिपोर्ट में झारखंड की प्रधान महालेखाकार इंदु अग्रवाल ने झारखंड मेडिकल एंड हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्टर डेवलपमेंट एंड प्रोक्योरमेंट कॉर्पोरेशन पर भी सवाल उठाए हैं. उन्होंने सवाल उठाया कि कैसे अक्टूबर 2017 में कॉरपोरेशन ने दो लाख cefo taxim नाम की एंटीबायोटिक्स की खरीद का ऑर्डर दिया और वेंडर ने MOU का उल्लंघन कर बिना क्वालिटी टेस्टिंग के दवा सप्लाई कर दी. कॉरपोरेशन ने पेमेंट भी कर दिया जो नियम के विरुद्ध है.
सीएजी रिपोर्ट की ये बिंदू 2014 से वर्ष 2019 के बीच बेपटरी स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलती है
1.राज्य में सरकारी अस्पतालों में ओपीडी की स्थिति ठीक नहीं है. 2014-15 की तुलना में 2018-19 में ओपीडी पर रोगियों का भार 57% बढ़ गया पर डॉक्टर्स नहीं बढ़ें यानी झारखंड में डॉक्टरों की कमी है. नतीजा यह कि मरीजों को डॉक्टर्स ज्यादा समय नहीं दे पाए. जबकि एक मरीज पर कम से कम 5 मिनट समय देने का एक स्टैंडर्ड तय है. जिन छह जिलों की सीएजी (CAG) की जांच रिपोर्ट में जिक्र है उसमें से ज्यादातर में जांच खास कर रेडियोलॉजिकल और पैथोलोजिकल जांच न्यूनतम है वहीं स्टाफ की भी घोर कमी है.
2. इंडोर रोगी को मिलने वाली सेवाओं के खस्ताहाल स्थिति का जिक्र करते हुए रिपोर्ट बताती है कि जिला अस्पतालों में बर्न वार्ड, ENT, दुर्घटना और ट्रॉमा वार्ड, मनश्चिकित्सा की कोई इंडोर व्यवस्था ज्यादातर जिला असपतालो में नहीं है. राज्य के जिला अस्पतालों में जहां 19 से 56% तक कमी है तो पारा चिकित्साकर्मी की 43 से 77% तक की कमी है. जिन छह जिलों की जांच की गई उसमें से पांच जिलों में इमरजेंसी ओटी तक नहीं थी, तो ऑपेरशन थिएटर तक में जरूरी दवाओं की कमी देखी गयी. राज्य के जिला अस्पतालों में ज्यादातर में ICU तक नहीं है. तो कहीं सभी संसाधन होते हुए भी 2019 तक ICU नहीं चल रहा था. जिन जगहों पर ICU चल भी रहा है वहां IPHS के मानक के अनुसार न डॉक्टर्स हैं और न ही नर्सें.
मातृत्व रक्षा के दावे भी साबित हुए खोखले: राज्य के छह जिले पूर्वी सिंहभूम, रांची, रामगढ़, हजारीबाग, पलामू और देवघर जिला अस्पतालों में की गई सीएजी (CAG) जांच की रिपोर्ट बताती है कि मातृत्व से जुड़ी सभी सेवाओं की स्थिति बेहद खराब है. इन छह जिलों में 2014-19 के दौरान पंजीकृत 1.30 गर्भवती महिलाओं में से 51526 (40%) महिलाओं ने ANC यानि प्रसव पूर्व जांच का चक्र पूरा नहीं किया. वहीं 60% गर्भवती महिलाओं को टेटनस का पहला इंजेक्शन नहीं दिया गया. वहीं 66% महिलाओं को टेटनस का दूसरा इंजेक्शन नहीं दिया गया. इन छह जिलों के आंकड़े ही बताते हैं कि 42% महिलाओं को आयरन और फोलिक एसिड की दवाएं नहीं दी गयी. गर्भवती महिलाओं के लिए इंडोर, आउटडोर और ऑपरेशन थियेटर तक में जरूरी दवाओं की घोर कमी 2014-19 के बीच थी.
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संक्रमण नियंत्रण में भी फेल था रघुवर राज के दौरान ज्यादातर जिला अस्पताल: CAG की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2014-19 के बीच राज्य के जिला अस्पतालों में रोगियों को संक्रमण से बचाने का कोई SOP नहीं था, मरीजों के कपड़े, चादर, ओटी के कपड़े सब लौंड्री में परंपरागत रूप से धुलाई जाती थी, तरल रसायनों को सीधे नालियों में छोड़ा जा रहा था जो जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 का उल्लंघन भी है.
अस्पतालों में दवाओं की कमी, दूसरी ओर दवा खरीद की राशि खर्च नहीं कर पाया कॉर्पोरेशन: विधानसभा के बजट सत्र के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी जो रिपोर्ट CAG ने विधानसभा को सौंपी है वह इस ओर इशारा करती है कि कैसे एक ओर जहां राज्य की आम जनता को असपतालो में दवाएं नहीं मिल पा रही थी. तो दूसरी ओर झारखंड मेडिकल प्रोक्योरमेंट कॉर्पोरेशन दवा खरीद के लिए मिले 100.31 करोड़ में से 87.85 करोड़ (88%) की राशि खर्च नहीं कर पाई. जून 2020 में वह राशि वापस हो गई, इसी तरह NHM से मिली राशि मे से 12 करोड़ 24 लाख की राशि खर्च ही नहीं हुई और बैंक खाते में रह गई. नतीजा यह रहा कि 2017-19 की नमूना जांच में सरकारी अस्पतालों में सिर्फ 11 से 23% दवाएं ही उपलब्ध थी. इसी तरह भवन निर्माण में भी कई अनियमितता, लेटलतीफी का जिक्र है और यह बताया गया है कि इस वजह से कैसे सरकार को अस्पताल इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए जनता की गाढ़ी कमाई का अधिक राशि खर्च करना पड़ता है.
जवाबदेही तय होकर कार्रवाई हो: राज्य के 06 जिला अस्पतालों में वर्ष 2014-19 की सीएजी रिपोर्ट जारी करने के बाद मीडिया कर्मियों के सवाल के जवाब में राज्य की प्रधान महालेखाकार इंदु अग्रवाल ने कहा कि रिपोर्ट यह बताती है कि राज्य में स्वास्थ्य के क्षेत्र में हालात क्या है. कमियां कहां कहां हैं, उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि इस रिपोर्ट को आधार बनाकर राज्य में स्वास्थ्य के क्षेत्र व्यवस्था में सुधार होगा और गड़बड़ियों के जिम्मेवार लोगों को चिन्हित कर जवाबदेही तय की जाएगी.