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किसानों को आधुनिक तरीके सीखने इजराइल भेज रही सरकार, लेकिन 'घर' में करोड़ों की लैब बेकार

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Published : Mar 27, 2019, 3:34 PM IST

प्रयोगशाला में खराब पड़ी मशीनें

बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केन्द्र परिसर में साल 2009 को एक एग्रीकल्चर लेबोरेटरी स्थापित की गई. इसकी लागत करीब 1 करोड़ रुपए थी. इस प्रयोगशाला के पौधे रोगमुक्त होने के साथ ही तीव्र गति से बढ़ते. लेकिन सरकारी तंत्र और अधिकारियों की लापरवाही से अब ये मशीनों धूल फांक रही हैं. स्थानीय किसानों का कहना है कि प्रयोगशाला बनने से लगा कि अब उत्तम क्वालिटी के पौधे मिलेंगे, हमारी फसल अच्छी होगी, पैदावार बढ़ेगी. लेकिन उपकरणों के खराब हो जाने से किसानों की ये उम्मीद महज एक ख्वाब बनकर रह गई.

दुमका: झारखंड सरकार किसानों को कृषि के आधुनिक तरीके सिखाना चाहती है. इसे लेकर राज्य से कई किसानों को इजरायल भी भेजा गया. सरकार की इन योजनओं के बाद भी जमीनी हालत में कुछ ज्यादा बदलाव नहीं आए हैं. आधुनिक खेती के लिए जो व्यवस्था की गई है, उसमें जो भी खर्च हुआ उसका लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है.

बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केन्द्र परिसर में साल 2009 को एक एग्रीकल्चर लेबोरेटरी स्थापित की गई. इसकी लागत करीब 1 करोड़ रुपए थी. इस प्रयोगशाला के पौधे रोगमुक्त होने के साथ ही तीव्र गति से बढ़ते. लेकिन सरकारी तंत्र और अधिकारियों की लापरवाही से अब ये मशीनों धूल फांक रही हैं. स्थानीय किसानों का कहना है कि प्रयोगशाला बनने से लगा कि अब उत्तम क्वालिटी के पौधे मिलेंगे, हमारी फसल अच्छी होगी, पैदावार बढ़ेगी. लेकिन उपकरणों के खराब हो जाने से किसानों की ये उम्मीद महज एक ख्वाब बनकर रह गई.

वीडियो में देखें पूरी खबर

बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के प्रभारी निदेशक और कृषि वैज्ञानिक पीबी साहा ने ईटीवी भारत को बताया कि यह लेबोरेटरी किसानों के लिए काफी फायदेमंद थी. उन्हें आधुनिक खेती से जोड़ने के लिए यह सकरात्मक पहल साबित होती. लेकिन अभी इसके उपकरण खराब हैं. इसे ठीक करने की कोशिश की जा रही है.

Intro:दुमका -
झारखंड सरकार किसानों को आधुनिक कृषि के तौर तरीकों से जोड़ना चाहती है । हाल ही में राज्य से काफी किसानों को नई तकनीक से रूबरू कराने इजरायल भी भेजा गया । लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि आधुनिक खेती के लिए जो व्यवस्था की गई उसमें जो खर्च हुए उसका कोई लाभ किसानों को नहीं मिलता दिख रहा है । देखिये दुमका से मनोज की स्पेशल रिपोर्ट ।


Body:क्या है पूरा है मामला ।
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दुमका स्थित बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केन्द्र परिसर में 2009 में एक एग्रीकल्चर लेब्रोटरी स्थापित किया गया था । इसकी लागत एक करोड़ रुपये थी । इसमें उत्तम क्वालिटी के पौधे को डेवलप कर किसानों को देना था । जिसमें गन्ना , केला , बांस , निम्बू के पौधे शामिल थे । इस प्रयोगशाला में निर्मित पौधे की क्वालिटी ऐसी थी कि उसके फल सामान्य पौधों से ज्यादा बेहतर होते । वे पौधे रोगमुक्त होने के साथ साथ तीव्र गति से बढ़ते । कहने का तात्पर्य आधुनिक खेती के तौर तरीकों से किसान जुड़ते । लेकिन कुछ दिनों तक तो इसमें पौधे डेवलप हुए बाद में उपकरण खराब हो गए तो बने नहीं । नतीजा यह हुआ कि आज वर्षों से यह प्रयोगशाला बन्द है और अत्याधुनिक उपकरण और मशीनें धूल फांक रही है ।


Conclusion:क्या कहते हैं किसान ।
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इस संबध में स्थानीय किसानों का कहना है कि इस प्रयोगशाला से उन्हें काफी उम्मीदें थी कि अब उन्हें उत्तम गुणवत्ता वाले पौधे उपलब्ध होंगे । उनकी फसल अच्छी होगी , पैदावार बढ़ेगा । लेकिन उपकरणों के खराब हो जाने की वजह से यह सम्भव नहीं हो पा रहा है ।
बाईट - गुंजन मराण्डी , किसान

क्या कहते हैं वैज्ञानिक ।
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इस संबंध में जब हमने BAU ( Birsa Agriculture University ) के क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र के कृषि वैज्ञानिक पी बी साहा जो अभी इस संस्थान के प्रभारी निदेशक भी हैं उनसे जानकारी ली तो उन्होंने बताया कि यह लेब्रोटरी किसानों के लिए काफी हितकारी थी । उन्हें आधुनिक खेती से जोड़ने की दिशा में यह सकरात्मक पहल था । लेकिन अभी इसके उपकरण खराब हैं । इसे ठीक करने की दिशा में पहल हुई है और जल्द यह किसानों के लिए उपलब्ध होगा ।

बाईट - पीबी साहा , कृषि वैज्ञानिक सह प्रभारी निदेशक कृषि अनुसंधान केन्द्र , दुमका ।

फाईनल वीओ -
ईटीवी भारत का उद्देश्य रहता है कि वह आम जनता किसानों से जुड़ी समस्याओं को सामने लाये ताकि उसका समाधान हो । सरकार ने जिन योजनाओं पर बड़ी राशि खर्च की उसका फ़ायदा जरूरतमंदों को मिले । अगर यह कृषि प्रयोगशाला काम करने लगेगा तो निश्चित रूप से किसान लाभन्वित होंगे ।

मनोज केशरी
ईटीवी भारत ,
दुमका
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