ETV Bharat / bharat

विशेष : पीएम मोदी की लद्दाख यात्रा का सैन्य और राजनयिक स्तर पर महत्व

author img

By

Published : Jul 6, 2020, 9:56 AM IST

भारत अपनी आकस्मिकताओं की तैयारी कर रहा है, चीनी नेतृत्व को भी अपने व्यवहार के परिणामों का गहराई से आत्मनिरीक्षण करना चाहिए. रणनीतिक सोच में सबसे बड़ी गलतियों में से एक है मामूली लड़ाई में हासिल की हुई जीत की बराबरी युद्ध को जीतने से करना. पढ़ें विशेष लेख...

PM Modi visit to Ladakh
पीएम मोदी की लद्दाख यात्रा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को हमेशा अपने कार्यों से आश्चर्यचकित करने की अपनी क्षमता के लिए जाने जाते हैं. तीन जुलाई को टेलीविजन स्क्रीन पर छा जाने वाली छवियां इस बात से अलग नहीं थीं, जब पीएम मोदी का विमान लेह में उतरा. उन्होंने घायल सैनिकों से मुलाक़ात की, ब्रीफिंग में भाग लिया और एक शानदार भाषण भी दिया. पूर्वी लद्दाख में भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच जारी तनाव की पृष्ठभूमि में यह यात्रा कई कारणों से महत्वपूर्ण मानी जा रही है.

संघर्ष के बीचोबीच प्रधानमंत्री की यात्रा इस बात को रेखांकित करती है कि सरकार मौजूदा संकट की गंभीरता को लेकर पूरी तरह जीवंत है. ऐसे माना जा रहा था कि सैन्य-स्तर की वार्ता के परिणामस्वरूप किसी समझौते तक पहुंचा जा सकता है. यह मामला सरकार द्वारा शायद, कमतर आंका जा रहा था. 15 जून को गलवान में हुई हिंसक झड़प से यह उम्मीद टूट गई.

मुझे लगता है कि अब एक स्पष्ट समझ बन चुकी है कि वर्तमान चीनी कार्रवाइयां पिछले हुए तनावों से पूरी तरह से अलग हैं, जो दोनों पक्षों की आपसी समझ और संतुष्टि से शांतिपूर्वक तरीकों से हल हो गई थीं. पिछले दो महीनों से, चीनी विदेश मंत्रालय जल्द से जल्द तनाव को खत्म करने और अमन और शांति को बहाल करने की बात कर रहा है. हालांकि, वे गलवान घाटी पर निराधार दावे करने से नहीं हिचकिचाए हैं और उन क्षेत्रों में अपनी सैन्य स्थिति मजबूत करने में व्यस्त हैं, जिन्हें भारत अपना क्षेत्र मानता आया है.

लद्दाख यात्रा इस बात का संकेत है कि जारी वार्ताओं में किसी भी तरह की प्रगति की कमी भारतीय पक्ष को स्वीकार्य नहीं है. प्रधानमंत्री इस बात से पूरी तरह अवगत थे कि उनकी यात्रा पर चीनी सरकार की तरफ से प्रतिक्रिया दी जाएगी और वास्तव में ऐसा ही हुआ. चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, 'किसी भी पक्ष को किसी भी ऐसी कार्रवाई में उलझना नहीं चाहिए जो मौजूदा हालात को और ज्यादा बिगाड़ सकती है.' इस यात्रा को करके यह स्पष्ट रूप से संकेत दिया गया है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तनाव के स्तर को कुछ बढ़ाना तटस्थ रहने से बेहतर है.

प्रधानमंत्री का भाषण प्रत्यक्ष और कठोर था. चीन के विस्तारवाद का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा, 'इतिहास गवाह है कि विस्तारवादी ताकतें या तो हार गई हैं या उन्हें वापस जाने के लिए मजबूर होना पड़ा है.' यह बताते हुए कि 'जो कमजोर हैं वे कभी शांति की पहल नहीं कर सकते हैं.' यह एक संकेत था कि भारत कमजोर स्थिति से बातचीत नहीं करेगा.

प्रधानमंत्री देश में उनकी ओर देखती हुई जनता के प्रति भी सचेत थे. चीनी सैनिकों द्वारा भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ नहीं की जाने वाली उनकी टिप्पणी पर हुई आलोचनाओं के बाद, उन्होंने नागरिकों को आश्वस्त करने की कोशिश की है कि भारत अपने क्षेत्र में चीनियों द्वारा विस्तार के प्रयासों का दृढ़ता से जवाब देगा. यह विभिन्न बुनियादी ढांचों से जुड़ी परियोजनाओं, बिजली और आईटी उद्योगों में चीनी कंपनियों की भागीदारी की समीक्षा करने के हालिया सरकारी फैसलों से भी परिलक्षित होता है.

भारत के इरादों को पूरी तरह से जगज़ाहिर कर दिया गया है, लेकिन अभी भी यह डगर आसान नहीं है. दुर्भाग्य से, टेलीविजन मीडिया के वर्गों में सबसे अधिक सनसनीखेज सुर्खियां बनाकर बेचने की यह होड़ लगी हुई है कि हम चीन को पराजित कर एक बड़ी जीत हासिल कर चुके हैं. इससे हमारी शालीनता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.

मुश्किल तथ्य यह है कि चीनी सैनिक भारतीय क्षेत्र पर डेरा डाले बैठे हैं और प्रधानमंत्री ने अब यह अपने वक्तव्य से जाहिर कर दिया है कि हम इसका खुलकर जवाब देंगे. हम उत्कटता की सीढ़ी पर सिर्फ एक कदम चढ़े हैं और हर कदम पर जोखिम मौजूद है. संघर्ष एकतरफा प्रतियोगिता नहीं है और प्रतिद्वंद्वी भी जवाबी कार्यवाही कर सकता है. इसलिए, हमें वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनियों द्वारा अपनाये जाने वाले अनम्य रुख से लेकर चीन से व्यापर करने पर हमारी नीतियों को लेकर प्रतिशोध तक या फिर सीमित सैन्य संघर्ष जैसी किसी प्रतिक्रिया के लिए तैयार रहना होगा.

हम एक लंबे संघर्ष में हैं, जिसमें एक शक्तिशाली और मुखर पड़ोसी से निपटने के लिए ठोस तैयारी और सरकार के संपूर्ण दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी. हमें बयानबाजी से आगे बढ़कर हमारे द्वारा लिए जाने वाले नीतिगत फैसलों और भविष्य में की जाने वाली कार्यवाहियों पर एक पैनी नज़र रखते हुए उनका मूल्यांकन करना होगा.

जबकि भारत अपनी आकस्मिकताओं की तैयारी कर रहा है, चीनी नेतृत्व को भी अपने व्यवहार के परिणामों का गहराई से आत्मनिरीक्षण करना चाहिए. रणनीतिक सोच में सबसे बड़ी गलतियों में से एक है मामूली लड़ाई में हासिल की हुई जीत की बराबरी युद्ध को जीतने से करना. कैथल जे नोलन ने अपनी पुस्तक द एल्योर ऑफ बैटल में लिखा है:

'युद्ध में एक दिन की लड़ाई को जीतना पर्याप्त नहीं है. आपको पूरा अभियान जीतना होता है, फिर वर्ष, फिर दशक. विजय को राजनीतिक स्थायित्व की शुरुआत करनी होगी. यदि ऐसा नहीं होता है, तो इसे ठीक करने और फिर से हथियारबंद होने के लिए युद्ध जारी रहेगा.'

चीनी सेना को लग सकता है कि उन्होंने पैंगोंग त्सो के उत्तरी किनारे पर फिंगर की लड़ाई जीत ली है, लेकिन उन्होंने भारत-चीन शत्रुता के एक युग की शुरुआत की है, जिसका महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक प्रभाव पूरे क्षेत्र में महसूस किया जायेगा. भविष्य में यह कैसे खेला जाएगा यह कहना अभी मुश्किल है, लेकिन यह दोनों पक्षों के लिए बड़ी मूर्खता होगी अगर दोनों में से एक समय से पहले जीत की घोषणा अपने पक्ष में कर देंगे.

(रिटा. ले.ज. डीएस हुड्डा)

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.