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अब दागी सेब भी रखेगा बागवानों की जेब का 'ख्याल', रसोई में लगेगा एप्पल सिरके का तड़का

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Published : Nov 30, 2020, 6:12 PM IST

लंबे शोध के बाद वाईएस परमार विश्विद्यालय नौणी ने कम गुणवत्ता वाले और दागी सेब से एप्पल साइडर विनेगर बनाने की आधुनिक तकनीक विकसित की है. जुब्बल के नंदपुर में स्थित हिली फूडस ने नौणी विवि की तकनीक का इस्तेमाल करके सिरके का उत्पादन भी शुरू कर दिया है. हिली फूडस की ओर से तैयार इस उत्पाद को हाल ही में नौणी विश्वविद्यालय परिसर में कुलपति डॉ. परविंदर कौशल ने लॉन्च किया था.

नौणी विश्विद्यालय, एप्पल सिरका
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सोलन: नौणी विश्विद्यालय एक बार फिर हिमाचल प्रदेश के बागवानों के लिए खुशखबरी लेकर आया है. हिमाचल प्रदेश में अक्सर उपरी हिमाचल में सेब का सीजन शुरू होते ही बागवानों को ओलावृष्टि का सामना करना पड़ता है, जिससे हर सेब सीजन में बागवानों को लाखों का नुकसान होता है.

ओले गिरने से सेब में दाग हो जाते हैं. दाग लगने से सेब खराब होना शुरू हो जाता है. मंडियों ये दागी सेब बिक भी नहीं पाते. ऐसे में दागी सेब को बागवान ओने-पोने दाम में बेचते हैं या फिर फेंक देते हैं, लेकिन अब दागी सेब भी बागवानों और छोटे उद्यमियों की आर्थिकी को मजबूत करेगा.

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लंबे शोध के बाद वाईएस परमार विश्वविद्यालय नौणी ने कम गुणवत्ता वाले और दागी सेब से एप्पल साइडर विनेगर बनाने की आधुनिक तकनीक विकसित की है. अक्सर परंपरागत तरीके अच्छी क्वालिटी का सिरका तैयार नहीं करते हैं. ऐसे में इसे बाजार में बेचने में परेशानी आती है, लेकिन नौणी विश्विद्यालय की तकनीक से अब बागवानों को काफी मदद मिलेगी.

जुब्बल में हिली फूड्स ने शुरू किया सिरके का उत्पादन

जुब्बल के नंदपुर में स्थित हिली फूडस ने नौणी विवि की तकनीक का इस्तेमाल करके सिरके का उत्पादन भी शुरू कर दिया है. हिली फूडस की ओर से तैयार इस उत्पाद को हाल ही में नौणी विश्वविद्यालय परिसर में कुलपति डॉ. परविंदर कौशल ने लॉन्च किया था.

नौणी विवि में खाद्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के विज्ञानी डा. राकेश शर्मा और डा. वीके जोशी ने यह तकनीक विकसित की है. वर्ष 2018 में हिली फूडस ने विश्वविद्यालय के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए और इस तकनीक को हस्तांतरित किया गया.

आजीविका कर सकते हैं दोगुनी

हिली फूडस के संचालक बीएस रावत का कहना है कि हर साल सीजन शुरू होते ही सेब में रोग लगने से खराब हो रहे थे, लेकिन अब सेब से सिरका बनाने की तकनीक को अपनाकर वह खराब सेब से भी आजीविका कमा रहे हैं. उन्होंने अन्य बागवानों से भी अपील की है कि वे लोग भी नौनी विश्वविद्यालय कि इस तकनीक को अपनाकर अपनी आजीविका दोगुनी कर सकते हैं

पांच साल की मेहनत लाई रंग

नौणी विश्विद्यालय के खाद्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के विज्ञानी डॉ. राकेश शर्मा का कहना है कि सेब का सिरका बनाने के परंपरागत तरीके धीमे और खराब गुणवत्ता वाला सिरका देते हैं. इसके विपरीत विश्वविद्यालय में नई तकनीक से इन समस्याओं को दूर किया है,. करीब पांच साल शोध के बाद सिरके और बेस वाइन के उत्पादन में आने वाली समस्याओं का समाधान किया है. व्यापक शोध कार्य के बाद एक संशोधित प्रक्रिया विकसित की गई. एप्पल साइडर विनेगर के उत्पादन के लिए एक संशोधित पायलट सिरका उत्पादन संयंत्र भी विकसित किया गया है.

सेब बागवानों की आर्थिकी में आएगी क्रांति

डॉ. वाईएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्विद्यालय नौणी के कुलपति डॉ. परविंदर कौशल ने वैज्ञानिकों के प्रयास की सराहना करते हुए कहा कि इस प्रौद्योगिकी से सेब बागवानों की आर्थिकी में क्रांति आएगी. यह तकनीक सिरके के उत्पादन में मददगार होगी. इससे सबे उत्पादकों की आजीविका में सुधार लाने का एक बेहतर विकल्प भी तैयार होगा.

मशहूर है एप्पल साइडर विनेगर

दुनिया भर में सिरके का उपयोग स्वाद और खाद्य संरक्षण के लिए किया जाता है. विभिन्न प्रकार के नॉन सिंथेटिक सिरकों में सेब का सिरका भी शामिल है. कई देशों में इसका इस्तेमाल होता है. ये औषधीय गुणों और गठिया, अस्थमा, खांसी, उच्च ब्लड शूगर, उच्च कोलेस्ट्रॉल आदि बीमारियों में बेहद लाभदायक है. इसी कारण सेब के सिरके की मांग में लगातार वृद्धि हो रही है.

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