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किसी की हां, किसी की न में सुखविंदर सरकार ने फिर बोतल से बाहर निकाला प्रशासनिक ट्रिब्यूनल का जिन्न, क्या सफल होगा ये मूव

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Nov 27, 2023, 1:49 PM IST

Sukhvinder Govt Start HP State Administrative Tribunal
सुखविंदर सरकार ने किया राज्य प्रशासनिक ट्रिब्यूनल शुरू

Sukhvinder Govt Start HP State Administrative Tribunal: सरकारी कर्मचारियों के सर्विस मैटर्स का निपटारा करने के लिए एक बार फिर कांग्रेस सरकार एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल शुरू कर रही है. वहीं, इसका विरोध भी शुरू हो गया है. हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने प्रशासनिक ट्रिब्यूनल शुरू करने पर कड़ी आपत्ति जताई है.

शिमला: सरकारी कर्मचारियों के सर्विस मैटर्स का निपटारा करने के लिए हिमाचल में राज्य प्रशासनिक ट्रिब्यूनल की व्यवस्था रही है. हिमाचल में कभी इस ट्रिब्यूनल को बंद किया जाता है तो कभी फिर से शुरू करने का फैसला लिया जाता रहा है. मौजूदा सुखविंदर सिंह सरकार ने इस ट्रिब्यूनल को फिर से फंक्शनल करने की पहलकदमी की है. हाल ही में कैबिनेट मीटिंग में सुखविंदर सरकार ने हिमाचल प्रदेश राज्य प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के लिए एक चेयरमैन सहित 5 नियुक्तियों का फैसला लिया है.

बार एसोसिएशन ने जताई आपत्ति: वहीं, सरकार के इस फैसले के बाद हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू से मिलकर प्रशासनिक ट्रिब्यूनल को फिर से शुरू करने को लेकर विरोध जताया है. बार एसोसिएशन का तर्क है कि प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के बंद होने से ही हाई कोर्ट में न्यायाधीशों की संख्या बढ़ी थी. इस कारण ही हाई कोर्ट में सरकारी कर्मचारियों के सर्विस मैटर्स के मामले तेजी से निपट रहे थे. इसके अलावा कुछ सरकारी कर्मचारी इसका विरोध कर रहे हैं तो कुछ इसे सरकार का सही कदम बता रहे हैं. आखिर क्या है प्रशासनिक ट्रिब्यूनल की व्यवस्था और इसका क्या प्रभाव है.

1986 में शुरू हुई व्यवस्था: हिमाचल प्रदेश में रोजगार का बड़ा सेक्टर सरकारी ही रहा है. यहां सरकारी कर्मचारियों की संख्या छोटे राज्य के हिसाब से उल्लेखनीय है. सरकारी कर्मचारियों के सर्विस मैटर्स सुलझाने के लिए पहली बार साल 1986 में राज्य प्रशासनिक प्राधिकरण की व्यवस्था शुरू की गई. प्रशासनिक प्राधिकरण यानी एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल शुरू होने के बाद कर्मचारियों के सर्विस मैटर्स निपटारे के लिए हाई कोर्ट की बजाय यहां पर आने लगे. फिर वर्ष 2008 में प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली सरकार के समय में ट्रिब्यूनल को बंद कर दिया गया. जो मामले निपटारे के लिए ट्रिब्यूनल में थे, उन्हें हाई कोर्ट स्थानांतरित कर दिया गया. ये व्यवस्था सात साल तक चलती रही.

2019 में जयराम सरकार ने किया बंद: साल 2015 में 28 फरवरी को तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार ने इस प्राधिकरण का फिर से गठन कर दिया. पूर्व की जयराम सरकार वर्ष 2017 में सत्ता में आई. जयराम सरकार ने 3 जुलाई 2019 में कैबिनेट मीटिंग में फिर से ट्रिब्यूनल को बंद कर दिया. इस प्रकार देखा जाए तो कांग्रेस सरकार ट्रिब्यूनल की पक्षधर कही जा सकती है. कांग्रेस सरकार के समय में ही वर्ष 1986 में ये व्यवस्था पहली बार शुरू की गई थी. फिर दो बार भाजपा सरकारों ने ट्रिब्यूनल को बंद किया और दो ही बार कांग्रेस सरकारों ने इसे शुरू किया. साल 2015 में वीरभद्र सिंह सरकार ने और अब 2023 में सुखविंदर सिंह सरकार ने बंद किए गए प्राधिकरण को पुनः खोला है.

ट्रिब्यूनल में दर्ज सर्विस मैटर्स: साल 2015 में बहाल हुआ ट्रिब्यूनल जयराम सरकार ने 2019 में फिर से बंद किया था. आंकड़ों पर गौर करें तो 2015 में फिर से पुनर्गठन के बाद 30 जून 2019 तक ट्रिब्यूनल ने सर्विस मैटर्स के 23,125 मामले निपटाए. इस अवधि में ट्रिब्यूनल के पास 34,111 मामले आए थे. जयराम सरकार ने जिस समय इसे बंद किया तो करीब 11 हजार पेंडिंग मामलों का बोझ हाई कोर्ट पर आ गया. ट्रिब्यूनल का 2015 में नए सिरे से गठन हुआ तो सरकारी कर्मचारियों के 6,485 मामले हाई कोर्ट में निपटारे के लिए चल रहे थे. हाई कोर्ट से फिर ये मामले ट्रिब्यूनल के पास आ गए थे. साल 2015 से 2019 के बीच ट्रिब्यूनल ने इनमें से भी 1739 का निपटारा किया. पूर्व में प्रेम कुमार धूमल सरकार ने साल 2008 में सर्विस मैटर निपटारे में देरी का तर्क देकर ट्रिब्यूनल बंद किया था, जिसे बाद में वीरभद्र सिंह सरकार ने 2015 में खोला था.

ट्रिब्यूनल ने किए हैं कई सख्त फैसले: वीरभद्र सिंह सरकार ने 2015 में ट्रिब्यूनल को फिर से शुरू किया. उसके बाद अगस्त 2016 में कांग्रेस के बिलासपुर से प्रभावशाली नेता और पूर्व विधायक ने एक शिक्षक का तबादला करवाने के लिए पांच बार सिफारिश की. शिक्षा विभाग ने तबादला कर दिया. प्रभावित शिक्षक ने प्रशासनिक ट्रिब्यूनल में आवेदन कर तबादले को चुनौती दी. ट्रिब्यूनल ने तत्कालीन विधायक की सिफारिश पर किए गए तबादले को रद्द कर दिया. ट्रिब्यूनल में एक हैरतअंगेज मामला उसी साल यानी 2016 में दुर्गम जिला चंबा के किलाड़ का आया था. वहां लोक निर्माण विभाग के क्लास फोर कर्मचारियों से अफसर घरेलू काम ले रहे थे. तब बेलदारों ने इसकी शिकायत रेजिडेंट कमिश्नर से की तो उनका दूरदराज तबादला कर दिया गया. प्रभावित क्लास फोर कर्मचारियों ने ट्रिब्यूनल में इसकी शिकायत की और उन्हें न्याय मिला.

ट्रिब्यूनल के खिलाफ विरोध: हिमाचल प्रदेश कर्मचारी मंच पर अजय नेगी नामक यूजर ने लिखा है कि ट्रिब्यूनल की बहाली कर्मचारियों के हित में नहीं है. इसमें सभी ने प्राधिकरण शुरू करने को गलत बताया है. समानांतर अराजपत्रित कर्मचारी सेवाएं महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष विनोद कुमार ने भी ट्रिब्यूनल का विरोध करते हुए कहा कि इसे कर्मचारियों पर न थोपा जाए. कर्मचारियों के एक वर्ग का मानना है कि प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के शुरू होने से जल्द न्याय मिलेगा. वहीं, एक वर्ग का मानना है कि ट्रिब्यूनल खोलना सही नहीं है. हिमाचल हाई कोर्ट में न्यायाधीशों की संख्या बढ़ने से मामले जल्द निपट रहे हैं. ऐसा भी देखा गया है कि ट्रिब्यूनल के फैसलों को भी बाद में हाई कोर्ट में चुनौती दी जाती रही है. बार एसोसिएशन ऑफ हिमाचल हाई कोर्ट तो ट्रिब्यूनल खोलने की बिल्कुल पक्षधर नहीं है और उसका विरोध कर रही है. फिलहाल, राज्य सरकार ने कैबिनेट में फैसला ले लिया है. जल्द ही ट्रिब्यूनल बहाल हो जाएगा.

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