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सरकार को झुकाना चाहती हैं धार्मिक संस्थाएं, दान में मिली जमीन से हजारों बीघा के मालिक बने डेरे

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Published : May 27, 2021, 8:02 PM IST

पहाड़ी राज्य हिमाचल में बाहरी राज्य का कोई भी व्यक्ति जमीन नहीं खरीद सकता है. प्रदेश में लैंड सीलिंग एक्ट लागू है. इस एक्ट के तहत व्यक्ति या संस्था 150 बीघा से अधिक जमीन की मालिक नहीं हो सकती है. सरकार ने धार्मिक डेरों और चाय बागानों को इस एक्ट से बाहर रखा है. ऐसे में इस छूट का लाभ उठाकर धार्मिक डेरे अपने पास मौजूद सरप्लस जमीनों को बेचने की सरकार से इजाजत मांग रहे हैं, लेकिन जनता के दबाव कोई भी सरकार हिमाचल में जमीन से संबंधित धारा-118 व लैंड सीलिंग एक्ट को छेड़ने की जुर्रत नहीं करती है.

फोटो.
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शिमला: देवभूमि हिमाचल में धार्मिक डेरे खूब ताकत रखते हैं. ये ताकत बेशकीमती जमीन के रूप में है. छोटे से पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में वैसे भी जमीन की उपलब्धता कम है, परंतु धार्मिक संस्थाओं के पास हजारों बीघा जमीन है. इस जमीन की कीमत अरबों रुपए हैं. ये धार्मिक संस्थाएं इतनी ताकतवर हैं कि सरकार को भी झुकाने की कोशिश करती हैं. कारण ये है कि इन संस्थाओं के हिमाचल में लाखों श्रद्धालु हैं. ये बड़ा वोट बैंक है. हरियाणा व पंजाब में धार्मिक डेरों से होने वाली वोट अपील के बारे में सब जानते हैं. हिमाचल में भी ये धार्मिक संस्थाएं प्रभावशाली हैं. हिमाचल में इनके इंट्रस्ट और हैं. ये इंट्रस्ट यहां की बेशकीमती जमीन के लालच का है.

दरअसल, हिमाचल प्रदेश में बाहर का कोई भी व्यक्ति जमीन नहीं खरीद सकता. डेरों को ये जमीन दान में मिली हैं. हिमाचल प्रदेश में लैंड सीलिंग एक्ट मौजूद है. इस एक्ट में ये प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति अथवा संस्था 150 बीघा से अधिक जमीन की मालिक नहीं हो सकती. लेकिन इस एक्ट में राधास्वामी सत्संग ब्यास व चाय बागानों को छूट मिली हुई है. इसी छूट का लाभ उठाकर राधास्वामी सत्संग ब्यास अपने पास मौजूद सरप्लस जमीन को बेचने की अनुमति चाहता है. ये अनुमति सरकार को देनी है, लेकिन संवेदनशील मामला होने के कारण कोई भी सरकार अपने हाथ नहीं जलाना चाहती. ये अलग बात है कि समय-समय पर डेरों के दबाव में सरकार कुछ न कुछ प्रयास शुरू करती है, लेकिन ऐन मौके पर जनता के दबाव और डर से पीछे हट जाती है. हाल ही में भी कैबिनेट मीटिंग में एक प्रस्ताव आया था. ये सरप्लस जमीन से जुड़ा था, परंतु कैबिनेट में कुछ मंत्रियों के विरोध के कारण मुहिम सिरे नहीं चढ़ी.

पहले भी मचा है शोर

कुछ समय पहले जयराम सरकार के कार्यकाल में ही राधास्वामी सतसंग ब्यास ने अपनी होल्डिंग की सरप्लस जमीन बेचने की अनुमति मांगी थी. तब उस घटनाक्रम को लेकर हिमाचल में सियासत गर्म हो गई थी. कांग्रेस विधायक विक्रमादित्य सिंह ने चेताया था कि कांग्रेस ऐसे किसी भी कदम का विरोध करेगी. उनके बयान पर तब भाजपा ने पलटवार किया था और कहा है कि ऐसा कहने से पहले विक्रमादित्य सिंह को कांग्रेस का इतिहास देखना चाहिए. खैर, ये सियासत के खेल हैं, परंतु इस खेल में ग्राउंड हिमाचल की बेशकीमती जमीन बनती है. मामला समझने के लिए आगे दर्ज किए जा रहे तथ्यों पर गौर करना पड़ेगा.

बात वर्ष 2017 की है. राधास्वामी सतसंग ब्यास ने वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन हिमाचल सरकार को आवेदन कर कहा कि उनके पास जरूरत से अधिक जमीन हो गई है, लिहाजा उन्हें जमीन बेचने की अनुमति दी जाए. भू-सुधार कानूनों में छूट लेकर दान में मिली और नाममात्र दाम चुका कर खरीदी गई जमीन को राधास्वामी सतसंग ब्यास का प्रबंधन बेचने की जुगत कर रहा था. उसके बाद एक अन्य धार्मिक संस्था निरंकारी सतसंग को भी लगा कि वो भी बहती गंगा में हाथ धो ले. उसी दौरान निरंकारी मिशन प्रबंधन ने भी हिमाचल सरकार ने किसान का दर्जा मांग लिया.

निरंकारी मिशन ने सरकार से मांगा था कृषक का दर्जा

निरंकारी मिशन ने कहा है कि राधास्वामी सतसंग ब्यास की तरह उसे भी हिमाचल में कृषक का दर्जा दिया जाए. यदि मिशन को किसान का दर्जा मिलता है तो वो हिमाचल में जितनी चाहे, उतनी जमीन खरीदने का हकदार हो जाएगा. हालांकि ये दर्जा हासिल करने के लिए मिशन को कैबिनेट की मंजूरी चाहिए थी. हिमाचल में फिलहाल कृषक का दर्जा हासिल करने वाले अधिकतम 150 बीघा जमीन रख सकते हैं. लेकिन धार्मिक संस्थाओं व लोकसेवा के काम करने वाले चैरिटेबल ट्रस्ट 150 बीघा की लैंड सीलिंग एक्ट से बाहर हैं.

धारा-118 से छेड़छाड़ करने से बचती है सरकार

हिमाचल में राधास्वामी सतसंग ब्यास को भी लैंड सीलिंग एक्ट से बाहर किया हुआ है. ऐसे में ब्यास डेरा राज्य में जितनी चाहे उतनी जमीन खरीद सकता है. इसी को देखते हुए निरंकारी मिशन भी पहले किसान का दर्जा चाहता है और फिर वो भी प्रदेश में जितनी चाहे उतनी जमीन खरीद सकेगा. कृषक का दर्जा हासिल करने के बाद मिशन भूमि सुधार कानून की धारा-118 से मुक्त हो जाएगा और जमीन खरीद का रास्ता खुल जाएगा. किसान का ये स्टेट्स मिलने से निरंकारी मिशन भी राधास्वामी सतसंग ब्यास की तरह टैनेंसी एंड लैंड रिफार्म एक्ट की धारा 118 से मुक्त हो जाएगा. हालांकि अभी निरंकारी मिशन की ये कवायद सिरे नहीं चढ़ी है. कारण ये है कि कोई भी सरकार हिमाचल में जमीन से संबंधित धारा-118 व लैंड सीलिंग एक्ट को छेड़ने की जुर्रत करने से पहले सौ बार सोचती है.

बेशकीमती जमीन का लालच, धर्मगुरू बने किसान

हिमाचल की बेशकीमती जमीन के लालच में धर्मगुरू किसान बन गए हैं. धार्मिक संस्थाओं को सरकार ने कृषक कैटेगरी में डाला है. इसी का फायदा उठाकर धार्मिक संस्थाएं हजारों बीघा जमीन दान में लेती आई हैं. प्रदेश में इस समय दस हजार बीघा जमीन पर धार्मिक गुरुओं की संस्थाओं का कब्जा है, यानी वे दस हजार बीघा जमीन के मालिक हैं. अकेले राधास्वामी सतसंग ब्यास के पास छह हजार बीघा जमीन है.

पहले धूमल सरकार ने की थी डेरा ब्यास पर मेहरबानी

हिमाचल में जब प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री थे, तब डेरा ब्यास पर मेहरबानी की गई. तत्कालीन सरकार ने लैंड सीलिंग एक्ट 1972 में सशर्त संशोधन किया था. उस संशोधन के जरिए राधास्वामी सतसंग ब्यास को लैंड सीलिंग एक्ट से बाहर कर दिया था. लैंड सीलिंग एक्ट का प्रावधान है कि उसके तहत किसी के पास भी 150 बीघा से अधिक जमीन नहीं हो सकती. लैंड सीलिंग एक्ट से इस समय हिमाचल में दो कैटेगरी बाहर हैं. एक चाय बागान व दूसरे राधास्वामी सतसंग ब्यास. डेरा ब्यास से लैंड सीलिंग एक्ट के हटते ही उसके पास अधिकतम जमीन की कोई सीमा नहीं रही. उसके बाद से डेरा ब्यास हिमाचल में छह हजार बीघा से अधिक जमीन का मालिक है.

पहले भाजपा और फिर कांग्रेस सरकार की बारी

डेरा ब्यास पर पहले भाजपा सरकार ने लैंड सीलिंग एक्ट से उन्हें बाहर करने की मेहरबानी दिखाई. बाद में 2017 में कांग्रेस भी यही मेहरबानी करने वाली थी. हैरानी की बात है कि कांग्रेस ये मेहरबानी उस समय कर रही थी, जब हिमाचल में 2017 में विधानसभा चुनाव नजदीक थे.

बेनामी भू-सौदों की जांच के लिए बने आयोग में भी की थी सख्त टिप्पणी

हिमाचल में पूर्व धूमल सरकार के समय हाईकोर्ट के सेवानिवृत जज न्यायमूर्ति डीपी सूद की अगुवाई में आयोग का गठन किया गया, जिसे बेनामी भू-सौदों की जांच का जिम्मा सौंपा गया. आयोग की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि प्रदेश में दस हजार बीघा जमीन बाबाओं के डेरों की मल्कीयत है. अकेले 6 हजार बीघा जमीन राधास्वामी सतसंग ब्यास के पास है.

डीपी सूद की अध्यक्षता वाले आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि भूमि सुधार कानून 1953 व लैंड सीलिंग एक्ट 1972 के जरिए हिमाचल में जमींदारी प्रथा को खत्म किया गया था, लेकिन धर्मगुरुओं को इनसे बाहर करने पर वे नए किस्म के जमींदार बन गए हैं. आयोग की रिपोर्ट अप्रैल 2012 में आई थी. हिमाचल में कुछ धार्मिक संस्थाएं कृषक की कैटेगरी में डाली गई हैं. राधास्वामी सतसंग ब्यास सहित अन्य संस्थाएं इस श्रेणी में हैं. चूंकि ये कृषक की श्रेणी में हैं, लिहाजा इन्हें हिमाचल में जमीन लेने के लिए धारा-118 के तहत सरकार के पास आवेदन नहीं करना पड़ता.

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भूमि सुधार कानून में हैं कई सख्त प्रावधान

हिमाचल में भू- सुधार कानून की धारा 118 में गैर कृषक हिमाचल में जमीन या प्रॉपर्टी का सौदा नहीं कर सकते. इसके लिए कैबिनेट से मंजूरी लेनी होती है. निरंकारी मिशन को यदि कृषक का दर्जा दे दिया जाता तो ये प्रदेश में कहीं भी जमीन बिना कैबिनेट की अनुमति के खरीद सकते हैं. हिमाचल में धार्मिक और चैरिटेबल संस्थाएं पहले ही लैंड सिलिंग एक्ट के दायरे से बाहर हैं तो ये जितनी चाहे उतनी जमीन अपने पास रख सकते हैं. वहीं, राज्य का आम आदमी इस एक्ट के कारण 150 बीघा से अधिक जमीन का मालिक नहीं हो सकता. संत निरंकारी मिशन के पास शिमला के बैमलोई व मंडी के डडौर इलाके सहित प्रदेश में कई स्थानों पर डेरे हैं. लेकिन धारा-118 से बाहर न होने के कारण इनकी लैंड होल्डिंग राधास्वामी सत्संग ब्यास से काफी कम है.

बताया जाता है कि 2017 में डेरा ब्यास प्रबंधन जमीन के एक टुकड़े का सौदा करने का इरादा रखता था. ये जमीन डेरा ब्यास को दान में मिली है अथवा उसने स्थानीय लोगों से काफी कम कीमत पर खरीदी है. इसके अलावा बाबा रामदेव को मामूली रकम पर बेशकीमती जमीन लीज पर देने का विवाद भी खासा चर्चित रहा है. बाबा रामदेव को सोलन जिला के साधुपुल में भाजपा सरकार के समय बेहद कम दाम पर लीज पर जमीन दी गई थी. कांग्रेस सरकार ने आकर उस लीज डीड को रद्द कर दिया था. लेकिन बाद में वीरभद्र सिंह सरकार ने बाबा को फिर से लीज पर जमीन देने की तैयारी शुरू कर दी थी. हिमाचल में बेनामी भू सौदों को लेकर गठित जस्टिस डीडी सूद आयोग की रिपोर्ट में ऐसी संस्थाओं को जमीन देने को लेकर तल्ख टिप्पणी की गई है.

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जयराम सरकार का बड़ा फैसला, बैक डोर एंट्री बंद

हाल ही में जयराम सरकार ने एक बड़ा फैसला लेकर लैंड सीलिंग एक्ट से जुड़ी बैक डोर एंट्री बंद की है. लैंड सीलिंग एक्ट से बाहर चाय बागान अब पिछले दरवाजे से भूमि का सौदा नहीं कर पाएंगे. इसी हफ्ते में कैबिनेट मीटिंग में सरकार ने लैंड सीलिंग एक्ट 1972 के सेक्शन 6-ए व सेक्शन 7-ए को निरस्त कर दिया है. एक्ट में सेक्शन 6-ए के तहत चेंज इन यूज ऑफ लैंड अंडर टी एस्टेट का प्रावधान था. सरकार ने अब सेक्शन 6-ए व 7-ए को संशोधित कर निरस्त करने को मंजूरी दी. अब ये मामला विधानसभा के अगले सत्र में लाया जाएगा और फिर सदन की मंजूरी के बाद केंद्र सरकार को भेजा जाएगा. एक्ट में हिमाचल में ये संशोधन वर्ष 2000 में हुआ था.

दरअसल, हिमाचल प्रदेश में लैंड सीलिंग एक्ट के तहत कोई भी व्यक्ति 150 बीघा से अधिक जमीन नहीं रख सकता. यदि इस सीलिंग से अधिक जमीन हो तो वो सरकार में वेस्ट यानी निहित हो जाती है. चाय बागानों व धार्मिक संस्था राधास्वामी सत्संग ब्यास को इस सीलिंग से छूट मिली हुई है. सरकार ने हिमाचल प्रदेश लैंड सीलिंग एक्ट 1972 में वर्ष 2000 में धूमल सरकार के समय किए गए संशोधन को निरस्त करने की मंजूरी दी.

डेरा ब्यास के बाद 10 हजार बीघा जमीन

हिमाचल में वर्ष 2000 में प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार थी. धूमल सरकार ने चाय बागानों को लेकर एक्ट में सेक्शन 6-ए व सेक्शन 7-ए संशोधन के जरिए जोड़ा था. इसके अनुसार चाय बागानों को बैक डोर से बेचने का एक रास्ता बन गया था. पूर्व में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के समय में डेरा ब्यास को सरप्लस जमीन बेचने की अनुमति देने का मामला कैबिनेट में आ गया था, लेकिन मंजूर नहीं हुआ. डेरा ब्यास के पास इस समय करीब 10 हजार बीघा जमीन है और वो सरप्लस जमीन बेचना चाहता है. आलम ये है कि पहले तो उक्त धार्मिक संस्था को लैंड सीलिंग एक्ट से बाहर किया गया, यानी वे 150 बीघा से अधिक जमीन रख सकते हैं, लेकिन शर्त ये थी कि उसका उपयोग सामाजिक कार्य में ही होगा. बाद में संस्था उसका कमर्शियल यूज करने का दबाव बना रही थी. फिलहाल, ये मामला भी अब टल गया है.

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