शिमला: हिमाचल की पहचान सेब उत्पादक राज्य के तौर पर भी होती है. सेब की खेती से करीब 5 हजार करोड़ की आर्थिकी हिमाचल को मिलती है, लेकिन हिमाचल में बागवान अब प्लम जैसे स्टोन फ्रूट को भी विकल्प के तौर पर देखने लगे हैं. ऐसा इसलिए भी क्योंकि प्लम की खेती सेब की तुलना में आसान हैं. वहीं सेब के पुराने बगीचों में फिर से सेब लगाना मुश्किल हो रहा है. यही वजह है कि बागवान प्लम की खेती क्रॉप रोटेशन के तौर पर भी कई जगह करने लगे हैं.
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दिल्ली में बिक रही ₹3000 तक प्लम की पेटी: सेब के बागीचों में प्लम के पौधे भी लगाकर एक अतिरिक्त कमाई का जरिया लोगों को मिल रहा है. हिमाचल में तैयार होने वाले रेड ब्यूट और ब्लैक एंबर जैसे किस्में सेब को भी मात दे रही हैं. इन किस्मों के लिए सेब बागवानों को बेहतर दाम मिल रहे हैं. इन दिनों ब्लेक एंबर की पेटी 3000 रुपए तक में दिल्ली में बिक रही है.
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स्टोन फ्रूट की ओर बढ़ा बागवानों का रुझान: सेब उत्पादन में अपनी पहचान बना चुके हिमाचल में अब बागवानों का रुझान स्टोन फ्रूट की ओर बढ़ने लगा है. सेब के निचले व मध्यम इलाकों के बागवान प्लम जैसे स्टोन फ्रूट की की खेती करने लगे हैं. यही नहीं इनके बागवानों को बेहतर दाम भी मिल रहे हैं. कई बागवानों ने इसके पूरे बागीचे तैयार कर लिए हैं. वहीं, अन्य बागवान भी थोड़ी संख्या में प्लम के पौधे लगा रहे हैं. अधिकतर बागवान सेब के बगीचों के बाहरी हिस्सों में प्लम लगा रहे हैं. जबकि जागरूक बागवान सेब वाले बागीचों में ही प्लम के पौधे लगा रहा हैं. वे सेब की तरह ही प्लम को तवज्जो दे रहे हैं. बागवान प्लम का पूरा का पूरा बगीचा तैयार करने लगे हैं.
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सेब बगीचों में क्रॉप रोटेशन के लिए प्लम: दरअसल बहुत से बागवानों के सेब के बगीचे पुराने हो गए हैं. इन बागीचों में बागवान सेब के पौधे लगा तो रहे हैं, लेकिन इसमें वे सफल नहीं हो रहे. यही वजह है कि बागवान अब क्रॉप रोटेशन का प्रयोग करते हुए इन जगहों पर प्लम के बागीचे तैयार कर रहे हैं. जिसमें बागवानों को कामयाबी तो मिल ही रही है, साथ ही प्लम उनको मालामाल भी कर रहा है.
सेब की तुलना में प्लम की खेती आसान: सेब की तुलना में प्लम का बागीचा की देखरेख करना आसान है. सेब के लिए जहां बड़ी मात्रा में स्प्रे और उर्वरकों का इस्तेमाल करना जरूरी है. वहीं प्लम के बागीचे में इनकी कम जरूरत रहती है. इस तरह प्लम की लागत सेब की तुलना में काफी कम है. यही वजह है कि सेब बागवान प्लम की खेती को लाभदायक मान रहे हैं.
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सेब से पहले प्लम की फसल तैयार: प्लम की खासियत यह भी है कि यह उस समय मार्केट में पहुंचता है, जब सेब तैयार नहीं होता. प्लम के मई अंत तक तैयार हो जाता है, जबकि सेब की फसल निचले इलाकों में जुलाई के पहले हफ्ते में ही शुरू होती है. यही नहीं इसकी अलग-अलग किस्में इसके बाद सितंबर-अक्टूबर तक फसलें देती हैं. इस तरह अलग-अलग किस्म के प्लम लगातार बागवान तीन से चार माह में समय-समय पर इनको बेच सकते हैं.
हर साल 15 हजार मीट्रिक टन प्लम: हिमाचल में बागवान प्लम की खेती बड़े स्तर पर करने लगे हैं. प्रदेश में 14 से 15 हजार मीट्रिक टन प्लम का उत्पादन हर साल होता है. हिमाचल में कुल्लू, सिरमौर, सोलन, शिमला और मंडी जिला राज्य का अधिकांश प्लम तैयार करते हैं. मौजूदा समय में कुल्लू जिला सबसे ज्यादा प्लम का उत्पादन कर रहा है. यहां करीब 6300 मीट्रिक टन प्लम हो रहा है.
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कुल्लू के बाद सिरमौर दूसरा बड़ा प्लम उत्पादक: कुल्लू के बाद दूसरे स्थान पर सिरमौर जिला है. यहां करीब 4 हजार मीट्रिक टन प्लम, सोलन जिला में करीब 1400 मीट्रिक टन और मंडी जिला में करीब 900 मीट्रिक टन प्लम तैयार हो रहा है. शिमला जिला में करीब 1050 मीट्रिक टन प्लम की पैदावार हो रही है. यहां कोटखाई और कोटगढ़ इलाके में प्लम की खेती की जा रही है. प्रदेश के अन्य जिलों में बहुत कम प्लम होता है.
नई किस्म के प्लम की शेल्फ लाइफ ज्यादा: प्लम की पुरानी किस्में कम बेहद कम शेल्फ लाइफ वाली होती है, लेकिन नई ब्लेक एंबर, फार्चून और फ्रायर जैसे किस्मों की शेल्फ लाइफ ज्यादा है. रेड ब्यूट प्लम की शेल्फ लाइफ करीब 5 दिन की रहती है. इतने समय में आसानी से इसको दिल्ली की मार्केट तक भी पहुंचाया जा सकता है. ब्लैक एंबर प्लम की शेल्फ लाइफ 20 दिन से ज्यादा हैं. कोल्ड स्टोर में इन किस्मों के प्लम को लंबे समय तक रखा जा सकता है. ऐसे में दूर दराज के इलाकों से भी नई किस्म के प्लम को आसानी से मार्केट में पहुंचाया जा सकता है.
कई राज्यों में प्लम की काफी डिमांड: इन दिनों निचले इलाकों से ब्लैक अंबर भी तैयार होकर दिल्ली जा रहा है. शिमला जिला के करीब चार हजार फुट की ऊंचाई पर इसकी फसल तैयार हो कर बागवान शिमला भेज रहे हैं. इनमें एक पेटी के 2800 रुपए से लेकर 3000 रुपए तक के दाम मिल रहे हैं.
5 हजार तक में बिक रही रेड ब्यूट प्लम की पेटी: कुमारसेन के चीया गांव के युवा बागवान सन्नी बाली के रेड ब्यूट प्लम की पेटियां दिल्ली के आजादपुर मंडी में हाल ही में 5 हजार रुपए के हिसाब से बिक चुकी है. सन्नी बाली का कहना है कि उनके पास सेब का पुराना बगीचा था, इसके पेड़ खराब होने के बाद इनकी जगह सेब के नए पौधे लगाए, लेकिन वे तैयार नहीं हो पाए. इसके चलते करीब आठ साल पहले उन्होंने प्रयोग के तौर पर प्लम के पौधे लगाने शुरू किए. उन्होंने रेड ब्यूट प्लम के कुछ पौधे लगाए थे जो कि अब फसल देने लगे हैं.
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प्लम की कई वैरायटी की खेती: सन्नी ने करीब 4500 फुट की ऊंचाई पर अपने बागीचे में पलम की कई किस्में रेड ब्यूट, ब्लैक एंबर, फ्रायर, अर्ली क्वीन, ब्लैक स्प्लेंडर, सेंटारोजा, प्रून, सतलुज पर्पल व फॉर्चून लगा रखी हैं. सन्नी बाली लोगों को भी प्लम की खेती को लेकर जागरूक कर रहे हैं. उनका कहना है कि जब प्लम के बेहतर दाम मिल रहे हैं तो, सेब के पीछे भागने की कोई जरूरत नहीं है. वहीं सेब का रखरखाव पर ज्यादा खर्च करना पड़ता है, जिससे उनकी लागत बढ़ जाती है. जबकि प्लम की लागत सेब की तुलना में काफी कम है. सन्नी प्लम की नई किस्मों की नर्सरी भी तैयार कर रहे हैं.
स्टोन फ्रूट को लेकर बागवान में जागरूकता: हिमाचल प्रदेश स्टोन फ्रूट एसोसिएशन के संस्थापक एवं संयोजक दीपक सिंघा कहते हैं कि पुराने बागीचों में सेब के पौधों के खराब होने पर इनकी जगह स्ट्रोन फ्रूट लगाना ज्यादा बेहतर है. बागवानों की यह सबसे बड़ी समस्या है कि पुराने सेब के बागीचों में नए सेब के पौधे तैयार नहीं हो पा रहे. ऐसे में क्रॉप रोटेशन के तौर पर इन बागीचों में स्टोन फ्रूट लगाना बेहतर है. उनका कहना है कि वे बागवानों को स्टोन फ्रूट के बारे में जागरूक भी कर रहे हैं. बागवान भी अब स्टोन फ्रूट की खेती को अपनाने की ओर ज्यादा बढ़ रहे हैं.
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