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ओपीएस के रास्ते की बाधाओं को दूर करेगी सुखविंदर सरकार, कैबिनेट में होगी आगामी रणनीति पर चर्चा

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Published : Feb 15, 2023, 8:15 AM IST

हिमाचल में सुखविंदर सरकार की कल यानी 16 फरवरी को होने वाली दूसरी कैबिनेट बैठक में ओपीएस मामले में भी चर्चा होगी. ओपीएस को लागू करने के तौर-तरीकों और नोटिफिकेशन कैसे जारी होगी उस पर बातचीत होगी.(OPS will be discussed in cabinet meeting)

कैबिनेट में होगी आगामी रणनीति पर चर्चा
कैबिनेट में होगी आगामी रणनीति पर चर्चा

शिमला: हिमाचल में कांग्रेस को सत्ता में लाने का श्रेय ओपीएस के मुद्दे को जाता है. सुखविंदर सिंह सरकार ने सत्ता में आते ही पहली कैबिनेट मीटिंग में ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू करने का फैसला लिया. उसके बाद से सरकारी कर्मचारियों को अब ओपीएस की नोटिफिकेशन का इंतजार है. अब गुरुवार 16 फरवरी को सुखविंदर सिंह सरकार की दूसरी कैबिनेट मीटिंग में ओपीएस को लागू करने के तौर-तरीकों और हिमाचल की अपनी नोटिफिकेशन कैसे जारी होगी, उसकी रणनीति पर चर्चा होगी.

ओपीएस के रास्ते में कई बाधाएं: ओपीएस के रास्ते में अभी भी कई बाधाएं हैं. उन बाधाओं के संदर्भ में वित्त विभाग ने राज्य सरकार के कानून विभाग से राय मांगी है. कानून विभाग ओपीएस के रास्ते में आने वाली अड़चनों पर कोई ऐसा सटीक फार्मूला तलाश रहा है, जिससे निकट भविष्य में राज्य सरकार को कोई परेशानी न हो. कारण ये है कि न्यू पेंशन स्कीम का समझौता हस्ताक्षरित करते समय जो शर्तें राज्य सरकार ने मंजूर की थी, उनसे हटने को लेकर कोई रास्ता नहीं है. यानी एनपीएस के समझौते के दौरान जो दस्तावेज साइन किए गए थे, उसमें स्पष्ट था कि इससे निकलने यानी एग्जिट का प्रावधान नहीं है.

पहली कैबिनेट में ओपीएस लागू: उल्लेखनीय है कि सुखविंदर सिंह सरकार ने 13 जनवरी को अपनी पहली कैबिनेट मीटिंग में राज्य में ओपीएस लागू करने का ऐलान किया था. उसके बाद ओपीएस को लेकर मुख्य सचिव कार्यालय की तरफ से वित्त विभाग को ओएम यानी ऑफिस मेमोरेंडम जारी किया गया था. इस मेमोरेंडम के अनुसार वित्त विभाग को ओपीएस की एसओपी यानी स्टेंडर्ड ऑपरेटिव प्रोसीजर तैयार करना था और साथ ही नोटिफिकेशन भी जारी होनी है.

वित्त विभाग राय मांगी: वित्त विभाग ने सारे मामले का अध्ययन करने के बाद कुछ बिंदुओं पर कानून विभाग की राय मांगी है. उसके बाद ही वित्त विभाग ओपीएस की अधिसूचना जारी करने की स्थिति में होगा. अब 16 फरवरी को कैबिनेट की मीटिंग है. उससे पहले मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना वित्त विभाग, कानून विभाग व अन्य संबंधित विभागों के साथ बैठक करेंगे. फिर कैबिनेट मीटिंग में सीएम को सारी जानकारी देंगे.

हिमाचल में एनपीएस का इतिहास: हिमाचल प्रदेश में वीरभद्र सिंह सरकार के समय एनपीएस यानी न्यू पेंशन स्कीम को लागू करने पर सहमति बनी थी. इस संदर्भ में केंद्र सरकार के साथ 22 मार्च 2010 को एनपीएस समझौता हुआ था. तब राज्य में भाजपा की सरकार थी और केंद्र में यूपीए सत्ता में थी. एनपीएस में राज्य सरकार, केंद्र सरकार और पीएफआरडीए यानी पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी का रोल है. हिमाचल प्रदेश में बेशक न्यू पेंशन स्कीम का समझौता 2010 में हुआ, लेकिन इसे यानी एनपीएस को मई 2003 से लागू किया गया.

धूमल सरकार में समझौता: हिमाचल में 17 अगस्त 2006 को तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार ने एनपीएस से जुड़े सारे फैसले लिए गए और फिर प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में इस पर केंद्र से समझौता हुआ. यानी लागू करने का फैसला वीरभद्र सिंह ने लिया और ये स्कीम प्रेम कुमार धूमल के समय में लागू हुई. इस तरह दोनों ही सरकारों का एनपीएस लागू करने में रोल रहा. दिलचस्प तथ्य ये है कि जब प्रेम कुमार धूमल के समय में एनपीएस समझौते पर साइन हुए तो अक्षय सूद विशेष सचिव (वित्त) थे. अब अक्षय सूद हिमाचल सरकार के वित्त सचिव हैं. यानी अक्षय सूद दोनों ही घटनाओं के साक्षी हैं. हिमाचल सरकार ने एनपीएस को लेकर जो समझौता किया है उसमें केंद्र सरकार की तरफ से एनपीएस के तत्कालीन मुख्य कार्यकारी अधिकारी एनआर रायडू के साइन हैं, इसमें तत्कालीन केंद्र सरकार के दो अधिकारियों के गवाह के रूप में साइन हैं.

गले की फांस बना एनपीएस समझौते से बाहर निकलना: हिमाचल सरकार ने ओपीएस लागू करने की घोषणा तो कर दी, लेकिन इसके रास्ते में कई बाधाएं हैं. सबसे बड़ी बाधा यही है कि एनपीएस समझौते में इससे बाहर निकलने का कोई प्रावधान नहीं है. सरकारी भाषा में कहें तो एनपीएस समझौते में एग्जिट क्लॉज नहीं है. यदि समझौते का अवलोकन करें तो इसके क्लाज-03 की शब्दावली ऐसी है कि राज्य सरकार उसका तोड़ निकालने में जुटी है. विधि विभाग इसी पर अध्ययन कर रहा है.

सिविल सर्विसेज कंट्रीब्यूटरी पेंशन रूल्स-2006: दरअसल उक्त क्लॉज में कहा गया है कि हिमाचल सरकार ने एनपीएस से जुड़े सारे स्ट्रक्चर को भली-भांति समझ लिया है और वो केंद्र सरकार के इस प्रारूप से पूरी तरह सहमति जताती है. बाद में इसी आधार पर हिमाचल सरकार ने एचपी सिविल सर्विसेज कंट्रीब्यूटरी पेंशन रूल्स-2006 तैयार किए थे. यही नहीं, हिमाचल सरकार ने समझौते के दौरान यह गारंटी दी थी कि एनपीएस से जुड़े सभी वादों को पूरा किया जाएगा. फिर इस एग्रीमेंट के क्लॉज नंबर दस में व्यवस्था है कि राज्य सरकार यदि किसी प्रावधान से सहमत नहीं है तो सारा मामला पीएफआरडीए को भेजा जाएगा. किसी भी असहमति की स्थिति पैदा होने पर आर्बिट्रेटर यानी मध्यस्थ नियुक्त होगा. आर्बिट्रेशन की प्रक्रिया पूरी तरह से कानूनी होती है.चूंकि हिमाचल सरकार ने अब ओपीएस लागू करने का ऐलान कर दिया है, लिहाजा मध्यस्थता का अब कोई चांस नहीं है।

केंद्र के पास है 7800 करोड़ से अधिक का अंशदान: एनपीएस के तहत राज्य सरकार 14 फीसदी और कर्मचारी दस फीसदी अंशदान देते हैं. इसकी कुल 7800 करोड़ रुपए से अधिक की रकम केंद्र के पास है. हिमाचल सरकार ने औपचारिक रूप से इस रकम को लौटाने के लिए केंद्र से आग्रह किया तो पीएफआरडीए ने अवगत करवाया कि इसे लौटाने का कोई प्रावधान समझौते में नहीं है. यह पैसा कर्मचारी को ही मिलेगी और वो भी रिटायरमेंट पर सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू का कहना है कि ओपीएस लागू करने के लिए राज्य सरकार प्रतिबद्ध है और इसका लाभ राज्य के कर्मचारियों को हर हाल में दिया जाएगा.

विधि विभाग की सलाह: चूंकि मामला काफी पेचीदा है, इसलिए विधि विभाग की सलाह ली जा रही है, ताकि आने वाले समय में किसी प्रकार की बाधा न रहे सूत्रों के अनुसार हिमाचल में ओपीएस का सारा मामला सुखविंदर सिंह सरकार के पहले बजट में क्लियर होगा. फिलहाल कर्मचारियों के लिए अभी इंतजार का समय है.

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