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एडवांस स्टडी ने 54 वर्षों बाद मनाया अपना पहला स्थापना दिवस, जानें इतिहास

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Published : Oct 20, 2019, 7:13 PM IST

54 साल पहले ऐतिहासिक भवन का भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के रूप में उद्घाटन पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने किया था. भवन के इतिहास की बात की जाए तो ब्रिटिशकाल में जब ब्रिटिश हुक्मरां गर्मियों के दिन बिताने के लिए किसी पहाड़ी स्टेशन की तलाश में थे तो उनकी ये तलाश शिमला में पूरी हुई.

भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान

शिमला: भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान ने अपने स्थापना के 54 वर्षों बाद रविवार को पहली बार अपना स्थापना दिवस मनाया. इस अवसर पर संस्थान में तीन दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें अलग-अलग विभूतियां शामिल होंगी.

54 साल पहले ऐतिहासिक भवन का भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के रूप में उद्घाटन पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने किया था. भवन के इतिहास की बात की जाए तो ब्रिटिशकाल में जब ब्रिटिश हुक्मरां गर्मियों के दिन बिताने के लिए किसी पहाड़ी स्टेशन की तलाश में थे तो उनकी ये तलाश शिमला में पूरी हुई.

ब्रिटिश वायसरॉय लार्ड डफरिन ने शिमला को भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का फैसला लिया. इसके लिए शिमला के चौड़ा मैदान में वर्ष 1884 में वायसरीगल लॉज का निर्माण शुरू हुआ. उस समय कुल 38 लाख रुपये की लागत से वर्ष 1888 में ये इमारत बनकर तैयार हुई.

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इस भवन में देश की आजादी तक कुल 13 वायसरॉय रहे, जिसमें लॉर्ड माउंटबेटन अंतिम वायसरॉय थे. आजादी के बाद इस भवन को राष्ट्रपति निवास बनाया गया और उसके बाद 20 अक्टूबर 1965 में इस भवन को पूर्व राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन ने भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान बनाया.

इमारत का इतिहास बेहद रोचक है. ये भवन देश की आजादी ओर विभाजन की एक-एक हलचल की गवाह रही है. इसी इमारत में वर्ष 1945 में शिमला कॉन्फ्रेंस हुई थी. उसके बाद वर्ष 1946 में कैबिनेट मिशन की मीटिंग हुई, जिसमें देश की आजादी के ड्राफ्ट पर चर्चा हुई.

भवन स्काटिश बेरोनियल शैली का है, जिसमें कुल 120 कमरे हैं. इमारत की आंतरिक साज सज्जा बर्मा से मंगवाई गई टीक की लकड़ी से हुई है. संस्थान के निदेशक प्रो. मकरंद आर.परांजपे ने कहा कि स्थापना दिवस के उपलक्ष्य पर संस्थान की ओर से तीन दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन करवाया जा रहा है.

Intro:शिमला में स्थित भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान ने स्थापना के 54 वर्षों में पहली बार अपना स्थापना दिवस मनाया। रविवार को इस ऐतिहासिक संस्थान का 54 वां स्थापना दिवस मनाया गया। इस उपलक्ष पर संस्थान में तीन दिवसीय आयोजन किया जा रहा है जिसमें अलग-अलग विभूतियां शामिल होंगी। यह पहली मर्तबा ही स्थापना दिवस पर इस तरह का आयोजन यहां इस ऐतिहासिक भवन में किया गया है। आज से 54 साल पहले ब्रिटिशकालीन समय में बने इस ऐतिहासिक भवन का भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के रूप में उद्घाटन पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने किया था। यह उन्ही कि सोच तक कि इस भवन को ऐसे कार्य के लिए इस्तेमाल किया जाए जहां प्रतिदिन नए आयाम स्थपित हो।


Body:इस भवन के इतिहास की बात की जाए तो ब्रिटिशकाल में जब ब्रिटिश हुक्मरां गर्मियों के दिन बिताने के लिए किसी पहाड़ी स्टेशन की तलाश में थे। उनकी यह तलाश शिमला में पूरी हुई और तत्कालीन ब्रिटिश वायसरॉय लार्ड डफरिन ने शिमला को भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का फ़ैसला लिया । इसके लिए शिमला में एक इमारत बनाने के लिए शिमला के चौड़ा मैदान में इस जगह पर वर्ष 1884 में वायसरीगल लॉज का निर्माण शुरू हुआ। उस समय कुल 38 लाख रुपए की लागत से वर्ष 1888वमे यह इमारत बनकर तैयार हुई। इस इमारत में देश की आजादी तक कुल 13 वायसरॉय रहे जिसमें लॉर्ड माउंटबेटन अंतिम वायसरॉय थे। आजादी के बाद इस भवन को राष्ट्रपति निवास बनाया गया और उसके बाद 20 अक्टूबर 1965 में इस भवन को पूर्व राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन ने भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान बनाया। इस इमारत का इतिहास बेहद रोचक है । यह भवन देश की आजादी ओर विभाजन की एक-एक हलचल की गवाह रही है। इस इमारत में वर्ष 1945 में शिमला कांफ्रेंस हुई थी। उसके बाद वर्ष 1946 में कैबिनेट मिशन की मीटिंग हुई,जिसमें देश के आजादी के ड्राफ्ट पर चर्चा हुई। इस इमारत की शैली की बात की जाए तो स्काटिश बेरोनियल शैली की है। इमारत में कुल 120 कमरे है। इमारत की आंतरिक साज सज्जा बर्मा से मंगवाई गई टीक की लकड़ी से हुई है।


Conclusion:संस्थान के निदेशक प्रो. मकरंद आर.परांजपे ने कहा कि स्थापना दिवस के उपलक्ष्य पर संस्थान की ओर से तीन दिवसीय जो आयोजन करवाया गया है उसमें पहले दिन व्याख्यान में विधानसभा स्पीकर राजीव बिंदल, दूसरे दिन सोमवार को डॉ.अयोन महाराज, प्रो.सितांशु चक्रवर्ती व्याख्यान देंगे। वहीं 22 अक्टूबर को डॉ सोनल मानसिंह अपना व्याख्यान देंगी।

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1 साल में 17 पुस्तकों को छापने के साथ ही छापे पांच जनरल

भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान ने एक वर्ष में 17 पुस्तकें छापने के साथ ही 5 जनर्ल्स 331 मोनोग्राफ छापने के साथ ही क़ई रेयर बुक्स भी छापी है। नीति शास्त्र पर ही संस्थान के पास 5 से 6 ऐसी किताबें है जो दुर्लभ किताबों में शामिल है।
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