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HC ने टाउन हॉल शिमला में फूड कोर्ट संचालन पर लगाई रोक, कोर्ट ने कहा- इस विरासत को संरक्षित करना होगा

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jan 10, 2024, 6:22 PM IST

Himachal High Court: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने टाउन हॉल शिमला में फूड कोर्ट के संचालन पर रोक लगा दी है. मामले में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा इस विरासत को संरक्षित करना होगा. मामले में अगली सुनवाई 14 मार्च को निर्धारित की गई है. पढ़िए पूरी खबर...

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शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने टाउन हॉल शिमला में फूड कोर्ट के संचालन पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने फूड कोर्ट संचालक देवयानी इंटरनेशनल कंपनी को आदेश दिए कि वह अगली सुनवाई तक टाउन हॉल में फूड कोर्ट का संचालन न करे. मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने कहा कि टाउन हॉल शिमला शहर का बहुत प्रतिष्ठित ऐतिहासिक स्थल रहा है. इसे हाल ही में एशियन विकास बैंक के सहयोग से भारी खर्च कर पुनर्निर्मित किया गया.

कोर्ट ने कहा कि विरासत स्थल हमेशा अनमोल होते हैं. प्राचीन युग की साक्षी रही हेरिटेज बिल्डिंग एक खजाना है, इसलिए इसे सार्वजनिक ट्रस्ट में माना जा सकता है. इस विरासत को संरक्षित करना होगा. प्रतिष्ठित इमारत में फूड कोर्ट चलाने से इस संपत्ति पर लगातार दबाव बढ़ेगा, जो इसके विरासत मूल्य को खतरा पैदा करेगा. कोर्ट ने इस मामले में जनहित को निजी हित से ऊपर बताया.

हाई कोर्ट ने कहा कि फूड कोर्ट चलाने से बिल्डिंग को अपूरणीय क्षति पहुंचेगी. कोर्ट ने नगर निगम शिमला के कमिश्नर को आदेश दिए कि वह इस आदेश का तत्काल अनुपालन सुनिश्चित करें. कोर्ट ने खेद जताते हुए कहा कि मामले को दो दिनों तक लगातार सुनने के पश्चात अनेकों महत्वपूर्ण प्रश्न उत्पन्न हुए, लेकिन आधिकारिक उत्तरदाताओं चाहे वे राज्य सरकार हो या नगर निगम हो या एचपी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट बैंक, किसी ने भी उन प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया. कोर्ट ने महाधिवक्ता कार्यालय के माध्यम से राज्य विरासत सलाहकार समिति को इस मामले के सभी पहलुओं पर गौर करने का आदेश भी दिया और अगली तारीख तक एक रिपोर्ट सौंपने को कहा है.

मामले पर सुनवाई 14 मार्च को निर्धारित की गई है. हाईकोर्ट ने अधिवक्ता अभिमन्यु राठौर द्वारा दायर जनहित याचिका में अंतरिम राहत से जुड़े आवेदन का निपटारा करते हुए उपरोक्त आदेश पारित किए. याचिका में आरोप लगाया गया है कि नगर निगम शिमला ने प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम 1958, टीसीपी अधिनियम का उल्लंघन करते हुए इस विरासत संपत्ति को हाई-एंड कैफे में बदलने की अनुमति दी है. इसमें फूड कोर्ट चलाने से बिल्डिंग को भारी नुकसान पहुंचेगा. कोर्ट ने कभी भी इस बिल्डिंग में फूड कोर्ट जैसी गतिविधियां चलाने की अनुमति नहीं दी थी. निविदाएं भी हाई एंड कैफे चलाने के मांगी गई थी न कि फूड कोर्ट के लिए.

याचिका में आरोप लगाया गया है कि निजी संचालक/ठेकेदार हेरिटेज बिल्डिंग में हाई एंड कैफे के स्थान पर फूड कोर्ट बना कर हेरिटेज बिल्डिंग मानदंडों का उल्लंघन कर रहा है. याचिकाकर्ता ने कोर्ट से सरकार को विरासत भवन को कानून के अनुसार उसके मूल स्वरूप और आकार में बहाल करने और सबसे उपयुक्त तरीके से इसका उपयोग करने का निर्देश देने का आग्रह किया है. प्रार्थी ने कोर्ट से राज्य सरकार को दोषी अधिकारियों के खिलाफ उचित विभागीय कार्यवाही शुरू करने का निर्देश देने का आग्रह भी किया है, जो अनधिकृत आंतरिक निर्माण और संशोधन की निगरानी और सत्यापन करने में विफल रहे, जिससे विरासत भवन की प्रकृति बदल गई.

ये भी पढ़ें: मंडी फॉरेक्स ट्रेडिंग मामला, 5 आरोपियों को हिमाचल हाईकोर्ट से मिली जमानत

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने टाउन हॉल शिमला में फूड कोर्ट के संचालन पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने फूड कोर्ट संचालक देवयानी इंटरनेशनल कंपनी को आदेश दिए कि वह अगली सुनवाई तक टाउन हॉल में फूड कोर्ट का संचालन न करे. मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने कहा कि टाउन हॉल शिमला शहर का बहुत प्रतिष्ठित ऐतिहासिक स्थल रहा है. इसे हाल ही में एशियन विकास बैंक के सहयोग से भारी खर्च कर पुनर्निर्मित किया गया.

कोर्ट ने कहा कि विरासत स्थल हमेशा अनमोल होते हैं. प्राचीन युग की साक्षी रही हेरिटेज बिल्डिंग एक खजाना है, इसलिए इसे सार्वजनिक ट्रस्ट में माना जा सकता है. इस विरासत को संरक्षित करना होगा. प्रतिष्ठित इमारत में फूड कोर्ट चलाने से इस संपत्ति पर लगातार दबाव बढ़ेगा, जो इसके विरासत मूल्य को खतरा पैदा करेगा. कोर्ट ने इस मामले में जनहित को निजी हित से ऊपर बताया.

हाई कोर्ट ने कहा कि फूड कोर्ट चलाने से बिल्डिंग को अपूरणीय क्षति पहुंचेगी. कोर्ट ने नगर निगम शिमला के कमिश्नर को आदेश दिए कि वह इस आदेश का तत्काल अनुपालन सुनिश्चित करें. कोर्ट ने खेद जताते हुए कहा कि मामले को दो दिनों तक लगातार सुनने के पश्चात अनेकों महत्वपूर्ण प्रश्न उत्पन्न हुए, लेकिन आधिकारिक उत्तरदाताओं चाहे वे राज्य सरकार हो या नगर निगम हो या एचपी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट बैंक, किसी ने भी उन प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया. कोर्ट ने महाधिवक्ता कार्यालय के माध्यम से राज्य विरासत सलाहकार समिति को इस मामले के सभी पहलुओं पर गौर करने का आदेश भी दिया और अगली तारीख तक एक रिपोर्ट सौंपने को कहा है.

मामले पर सुनवाई 14 मार्च को निर्धारित की गई है. हाईकोर्ट ने अधिवक्ता अभिमन्यु राठौर द्वारा दायर जनहित याचिका में अंतरिम राहत से जुड़े आवेदन का निपटारा करते हुए उपरोक्त आदेश पारित किए. याचिका में आरोप लगाया गया है कि नगर निगम शिमला ने प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम 1958, टीसीपी अधिनियम का उल्लंघन करते हुए इस विरासत संपत्ति को हाई-एंड कैफे में बदलने की अनुमति दी है. इसमें फूड कोर्ट चलाने से बिल्डिंग को भारी नुकसान पहुंचेगा. कोर्ट ने कभी भी इस बिल्डिंग में फूड कोर्ट जैसी गतिविधियां चलाने की अनुमति नहीं दी थी. निविदाएं भी हाई एंड कैफे चलाने के मांगी गई थी न कि फूड कोर्ट के लिए.

याचिका में आरोप लगाया गया है कि निजी संचालक/ठेकेदार हेरिटेज बिल्डिंग में हाई एंड कैफे के स्थान पर फूड कोर्ट बना कर हेरिटेज बिल्डिंग मानदंडों का उल्लंघन कर रहा है. याचिकाकर्ता ने कोर्ट से सरकार को विरासत भवन को कानून के अनुसार उसके मूल स्वरूप और आकार में बहाल करने और सबसे उपयुक्त तरीके से इसका उपयोग करने का निर्देश देने का आग्रह किया है. प्रार्थी ने कोर्ट से राज्य सरकार को दोषी अधिकारियों के खिलाफ उचित विभागीय कार्यवाही शुरू करने का निर्देश देने का आग्रह भी किया है, जो अनधिकृत आंतरिक निर्माण और संशोधन की निगरानी और सत्यापन करने में विफल रहे, जिससे विरासत भवन की प्रकृति बदल गई.

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