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चुनावी साल में '7.5 लाख' पर है भाजपा की नजर, कर्मचारियों की नाराजगी को काउंटर करने के लिए ये है तैयारी

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Published : Mar 24, 2022, 9:23 PM IST

यपी सहित चार राज्यों खासकर उत्तराखंड में भाजपा सरकार रिपीट होने से हिमाचल में भी पार्टी नए जोश में(Himachal BJP mission repeat preparation) है. 2017 में सत्ता में आने के बाद अब फिर से मिशन रिपीट का नारा दिया गया, इस बार नारा ही नहीं संकल्प भी है कि हर हाल में फिर से सत्ता में वापसी करनी है. यहां भाजपा की निगाह साढ़े सात लाख की एक खास संख्या पर(Himachal BJP focus on special vote bank) है.

कर्मचारियों की नाराजगी को काउंटर करने के लिए ये है तैयारी
Himachal BJP mission repeat preparation

शिमला: यूपी सहित चार राज्यों खासकर उत्तराखंड में भाजपा सरकार रिपीट होने से हिमाचल में भी पार्टी नए जोश में(Himachal BJP mission repeat preparation) है. हिमाचल में भाजपा 2007 के विधानसभा चुनाव में विजयी हुई थी तो प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में सरकार बनी थी. उसके बाद पार्टी ने 2012 में मिशन रिपीट का नारा दिया, लेकिन सफल नहीं हुआ.

2017 में सत्ता में आने के बाद अब फिर से मिशन रिपीट का नारा दिया गया, इस बार नारा ही नहीं संकल्प भी है कि हर हाल में फिर से सत्ता में वापसी करनी है. यहां भाजपा की निगाह साढ़े सात लाख की एक खास संख्या पर(Himachal BJP focus on special vote bank) है. ये संख्या क्या है, इसका खुलासा करने से पहले एक दिलचस्प घटना की स्मृति करना जरूरी है.

दरअसल, 2017 में विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान तत्कालीन पार्टी मुखिया अमित शाह हिमाचल आए थे. मंडी के जंजैहली में जयराम ठाकुर के पक्ष में रैली करने के दौरान उन्होंने कहा था कि भारतीय जनता पार्टी अब महज एक ही चुनाव जीत कर चैन से नहीं बैठने वाली.पार्टी का लक्ष्य कम से कम एक राज्य में पंद्रह साल तक सरकार चलाने का है, ताकि विकास को गति मिल सके.

चुनाव में भाजपा जीत गई और संयोग देखिए कि जयराम ठाकुर के पक्ष में प्रचार करने आए अमित शाह फिर चुनावी फतह के बाद उन्हीं जयराम ठाकुर के शपथ ग्रहण समारोह में मौजूद थे. अब न केवल संगठन ,बल्कि जयराम सरकार पर भी मिशन रिपीट का दबाव बढ़ा है. सरकार रिपीट करने के लिए क्या है जयराम सरकार व संगठन का फार्मूला, इस पर बात करते हैं.

हिमाचल की राजनीति को नजदीक से परखने वाले जानते हैं कि यहां कर्मचारी सबसे बड़े वोट बैंक के तौर पर हैं. प्रदेश में दो लाख से अधिक कर्मचारी हैं. इसके अलावा पौने दो लाख के करीब पेंशनर्स हैं. सरकार के बजट का बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के वेतन और पेंशनर्स की पेंशन पर खर्च हो जाता है.इधर, चुनावी साल में कर्मचारी सरकार से नाराज चल रहे हैं.

पहले कर्मचारियों की मांग थी कि पंजाब ने नए वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू कर दिया है, अब हिमाचल प्रदेश भी इसे लागू किया जाए. सरकार ने सिफारिशों को लागू किया तो कर्मचारी राइडर जैसी मांगों पर अड़ गए. फिर न्यू पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ ने ओल्ड पेंशन स्कीम बहाल करने की मांग उठा दी. एक जोरदार आंदोलन हुआ, लेकिन प्रदर्शनकारियों के रवैये से नाराज सरकार हठ पर उतर आई कि ऐसे माहौल में बात नहीं होगी.

इस तरह कर्मचारी वर्ग सरकार से नाराज हो गया,यहां तक कि सोशल मीडिया पर भाजपा को चुनाव में सबक सिखाने की बात हो रही है. ऐसी परिस्थितियों में मिशन रिपीट की राह कैसे आसान हो, इस पर भाजपा ने सरकार व संगठन के स्तर पर मंथन किया है. कर्मचारियों की नाराजगी को एक दूसरे वोट बैंक से काउंटर करने की कोशिश की गई.

बजट में इसकी झलक मिल गई. सरकार ने सामाजिक सुरक्षा पेंशन पर खास फोकस किया. यही नहीं, समाज के ऐसे वर्ग के मानदेय में उल्लेखनीय बढ़ोतरी की गई है, जो हर बार उपेक्षित रह जाता था.हालांकि, दैनिक दिहाड़ी और जन प्रतिनिधियों सहित सिलाई अध्यापिकाओं आदि के मानदेय में हर सरकार के समय कुछ न कुछ बढ़ोतरी होती आई है, लेकिन इस बजट में भाजपा सरकार ने खास रणनीति के तहत उनके मानदेय बढ़ाया.

इससे भी बढक़र काम सामाजिक सुरक्षा पेंशन के क्षेत्र में किया गया. जयराम सरकार के पास फीडबैक था कि सत्ता संभालते ही वृद्धावस्था पेंशन की आयु सीमा अस्सी साल से घटाकर सत्तर साल की गई है तो उसका बहुत पॉजिटिव रुझान समाज के हर तबके से आया है.फिर पिछले बजट में सरकार ने महिलाओं के लिए 65 से 69 साल की आयु में पेंशन लागू करने का ऐलान किया. इस बजट में सरकार ने सबको चौंकाते हुए वृद्धावस्था पेंशन की आयु सीमा साठ साल कर दी.

ये एक ऐसा कदम है, जिससे ग्रामीण वोटर्स सीधे तौर पर जुड़े हैं. अब हिमाचल में सामाजिक सुरक्षा पेंशन पाने वालों की संख्या साढ़े सात लाख हो गई. यही वो संख्या है, जिसके बूते जयराम सरकार कर्मचारियों का रोष काउंटर करने की रणनीति पर चल रही है. वरिष्ठ मीडियाकर्मी धनंजय शर्मा का कहना है कि ग्रामीण इलाकों के वोटर्स को साधने का ये अच्छा कदम है. ग्रामीण क्षेत्र के बुजुर्ग, जिनके पास खुद की आय का कोई खास साधन नहीं है, उन्हें महीने में एक निश्चित रकम मिलने से उनका जीवन सुगम हुआ है. हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले बुजुर्ग स्वभाव से संवेदनशील और भावुक होते हैं.

उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार ने हमारी सुध ली. इसका सकारात्मक असर चुनाव के दौरान देखने को मिलेगा. समाज शास्त्री विनोद भारद्वाज का कहना है कि राजनीति में जनमानस के साथ भावनात्मक लगाव दर्शाना कारगर साबित होता है. गांव की जिस बुजुर्ग महिला को किसी जरूरत के लिए पति और बच्चों के सामने हाथ फैलाना पड़ता था, उन्हें अब एक माकूल रकम मिल रही है.

पोस्ट ऑफिस में वे पेंशन निकालने के लिए जाती हैं तो उनके चेहरे पर एक संतोष की भावना होती है. जाहिर है, इसका असर चुनाव में देखने को मिलेगा. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप का कहना है कि राज्य सरकार ने सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में शानदार काम किया है. सत्ता संभालने के बाद पहली ही कैबिनेट मीटिंग में पेंशन की आयु सीमा अस्सी साल से घटाकर सत्तर साल की गई. फिर इस बजट में पेंशन की आयु सीमा साठ साल कर दी गई.

मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के अनुसार हिमाचल में उनकी सरकार के सत्ता में आने से पहले सामाजिक सुरक्षा पेंशन पर महज 450 करोड़ रुपए खर्च होते थे. अब 2022-23 में ये खर्च बढक़र 1300 करोड़ हो जाएगा. प्रदेश में विभिन्न प्रकार की पेंशन पाने वाले लोगों की संख्या साढ़े सात लाख हो जाएगी. इनमें बुजुर्ग, एकल नारी, विधवा नारी, परित्यक्ता नारी, कुष्ठ रोगी, शारीरिक रूप से अक्षम लोग शामिल हैं.

हिमाचल में कहा जाता है कि कर्मचारी सरकार बदलने में अहम भूमिका निभाते हैं. इस बार भाजपा ने कर्मचारियों की नाराजगी को काउंटर करने के लिए दूसरी जगह फोकस किया है. सामाजिक सुरक्षा पेंशन को लेकर मिले फीडबैक के बाद ही इस बजट में खास फोकस किया गया है. सरकार व संगठन के स्तर पर निर्देश जारी किए गए कि चुनावी बेला में सरकार की सामाजिक सुरक्षा पेंशन वाली रणनीति को गांव-गांव तक चर्चा का विषय बनाया जाए. खासकर मतदाताओं को ये अहसास दिलाया जाए कि सरकार वंचित वर्ग के साथ है. अब देखना है कि मिशन रिपीट में ये साढ़े सात लाख की संख्या क्या वोट के रूप में भी रिस्पांस करती है या नहीं?

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