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कानून के विपरीत दुष्कर्म पीड़िता की जांच पर हाई कोर्ट सख्त, दोषी डॉक्टर्स पर 5 लाख हर्जाना

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jan 14, 2024, 8:45 PM IST

Himachal High Court: हिमाचल हाई कोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग को एक दुष्कर्म पीड़िता के लिए मुआवजे के तौर पर 5 लाख रुपये की राशि का भुगतान करने के आदेश जारी किए. क्या है सारा मामला ये जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर...

Himachal High Court News
हिमाचल हाई कोर्ट (फाइल फोटो).

शिमला: हिमाचल हाई कोर्ट ने एक दुष्कर्म पीड़िता की चिकित्सा जांच कानून के विपरीत किए जाने पर दोषी डॉक्टर्स के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. साथ ही अदालत ने सिविल हॉस्पिटल पालमपुर के डॉक्टरों पर पांच लाख रुपए का हर्जाना लगाया है. हाईकोर्ट ने इस राशि का भुगतान प्राथमिक तौर पर राज्य सरकार द्वारा पीड़िता को अदा करने के आदेश जारी किए हैं. इसके पश्चात इसकी भरपाई दोषी डॉक्टर से किए जाने के आदेश पारित किए गए है. हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खण्डपीठ ने अपने निर्णय में कहा कि दुष्कर्म एक महिला के व्यक्तित्व और अंतर्निहित गरिमा पर मानसिक हमला है. यह एक महिला की पवित्रता और समाज की आत्मा के खिलाफ अपराध है. किसी का शारीरिक ढांचा ही उसका मंदिर होता है और उस पर अतिक्रमण का अधिकार किसी को नहीं है.

केंद्र सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार टू-फिंगर टेस्ट, जिसे चिकित्सा शब्द के अनुसार, प्रति-योनि परीक्षा को सख्ती से प्रतिबंधित किया गया है . यह दिशानिर्देश हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा भी अपनाए गए हैं और इस कारण यह दिशानिर्देश पूरे प्रदेश में स्वास्थ्य पेशेवरों पर लागू होते हैं. चूंकि टू-फिंगर टेस्ट दुष्कर्म पीड़िताओं की निजता, शारीरिक व मानसिक अखंडता और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है. इस कारण इन दिशा निर्देशों की अवहेलना होने पर प्रदेश हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग को दुष्कर्म पीड़िता के लिए मुआवजे के तौर पर 5 लाख रुपये की राशि का भुगतान करने के आदेश जारी किए.

सिविल अस्पताल पालमपुर में डॉक्टरों के हाथों हुए आघात, शर्मिंदगी, अपमान और उत्पीड़न के लिए, भुगतान प्राथमिक तौर पर राज्य सरकार द्वारा किया जाना है और उसके बाद जांच करने के बाद दोषी डॉक्टरों से वसूल किया जाएगा. उन सभी डॉक्टरों के खिलाफ जांच की जाएगी, जिन्होंने चिकित्सा सम्बन्धी प्रोफार्मा तैयार किया था और उसके बाद जिम्मेदारी तय की जाएगी. उन पर वित्तीय दायित्व तय किया जाएगा. जिन्होंने पीड़िता की चिकित्सकीय जांच की और संबंधित एमएलसी जारी की. केवल यह तथ्य कि डॉक्टर सेवानिवृत्त हो गए हैं, आड़े नहीं आएगा. कोर्ट ने टिप्पणी की कि दुर्भाग्य से विशेष न्यायाधीश और उस मामले के लिए तैनात जिला अटॉर्नी भी मामले के संचालन में पर्याप्त संवेदनशील नहीं रहे हैं. मामले पर सुनवाई 27.2.2024 को निर्धारित की गई है. उस दिन राज्य सरकार को जांच की रिपोर्ट के साथ-साथ पीड़िता को 5 लाख रुपये के भुगतान की पुष्टि करने वाली रसीद कोर्ट के समक्ष पेश करनी होगी.

ये भी पढ़ें- तत्तापानी में जिला स्तरीय मकर संक्रांति मेला सम्पन्न, हजारों श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी

शिमला: हिमाचल हाई कोर्ट ने एक दुष्कर्म पीड़िता की चिकित्सा जांच कानून के विपरीत किए जाने पर दोषी डॉक्टर्स के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. साथ ही अदालत ने सिविल हॉस्पिटल पालमपुर के डॉक्टरों पर पांच लाख रुपए का हर्जाना लगाया है. हाईकोर्ट ने इस राशि का भुगतान प्राथमिक तौर पर राज्य सरकार द्वारा पीड़िता को अदा करने के आदेश जारी किए हैं. इसके पश्चात इसकी भरपाई दोषी डॉक्टर से किए जाने के आदेश पारित किए गए है. हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खण्डपीठ ने अपने निर्णय में कहा कि दुष्कर्म एक महिला के व्यक्तित्व और अंतर्निहित गरिमा पर मानसिक हमला है. यह एक महिला की पवित्रता और समाज की आत्मा के खिलाफ अपराध है. किसी का शारीरिक ढांचा ही उसका मंदिर होता है और उस पर अतिक्रमण का अधिकार किसी को नहीं है.

केंद्र सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार टू-फिंगर टेस्ट, जिसे चिकित्सा शब्द के अनुसार, प्रति-योनि परीक्षा को सख्ती से प्रतिबंधित किया गया है . यह दिशानिर्देश हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा भी अपनाए गए हैं और इस कारण यह दिशानिर्देश पूरे प्रदेश में स्वास्थ्य पेशेवरों पर लागू होते हैं. चूंकि टू-फिंगर टेस्ट दुष्कर्म पीड़िताओं की निजता, शारीरिक व मानसिक अखंडता और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है. इस कारण इन दिशा निर्देशों की अवहेलना होने पर प्रदेश हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग को दुष्कर्म पीड़िता के लिए मुआवजे के तौर पर 5 लाख रुपये की राशि का भुगतान करने के आदेश जारी किए.

सिविल अस्पताल पालमपुर में डॉक्टरों के हाथों हुए आघात, शर्मिंदगी, अपमान और उत्पीड़न के लिए, भुगतान प्राथमिक तौर पर राज्य सरकार द्वारा किया जाना है और उसके बाद जांच करने के बाद दोषी डॉक्टरों से वसूल किया जाएगा. उन सभी डॉक्टरों के खिलाफ जांच की जाएगी, जिन्होंने चिकित्सा सम्बन्धी प्रोफार्मा तैयार किया था और उसके बाद जिम्मेदारी तय की जाएगी. उन पर वित्तीय दायित्व तय किया जाएगा. जिन्होंने पीड़िता की चिकित्सकीय जांच की और संबंधित एमएलसी जारी की. केवल यह तथ्य कि डॉक्टर सेवानिवृत्त हो गए हैं, आड़े नहीं आएगा. कोर्ट ने टिप्पणी की कि दुर्भाग्य से विशेष न्यायाधीश और उस मामले के लिए तैनात जिला अटॉर्नी भी मामले के संचालन में पर्याप्त संवेदनशील नहीं रहे हैं. मामले पर सुनवाई 27.2.2024 को निर्धारित की गई है. उस दिन राज्य सरकार को जांच की रिपोर्ट के साथ-साथ पीड़िता को 5 लाख रुपये के भुगतान की पुष्टि करने वाली रसीद कोर्ट के समक्ष पेश करनी होगी.

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