शिमला: कांग्रेस सरकार द्वारा सत्ता में आने के बाद पूर्व सरकार के समय खोले गए संस्थानों को बंद करने के मामले में हाईकोर्ट में सुनवाई टल गई है. अब हाईकोर्ट में इस मामले पर 4 अप्रैल को सुनवाई होगी. इस संदर्भ में दाखिल याचिका की सुनवाई हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सबीना व न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खंडपीठ के समक्ष हुई. अदालत ने अब सरकारी संस्थानों को बंद करने से जुड़े सभी मामलों को सुनवाई के लिए एक साथ लिस्टेड यानी सूचीबद्ध किया है.
कैबिनेट गठन के पहले फैसला: सरकारी संस्थानों को डिनोटिफाई करने से जुड़ी याचिकाओं में यह आरोप लगाया गया है कि प्रदेश सरकार ने गत 12 दिसंबर को प्रशासनिक आदेश जारी कर कई कार्यालयों को बंद कर दिया. याचिका दाखिल करने वाले प्रार्थीयों ने कहा है कि सरकार ने बिना कैबिनेट का गठन किए ही पूर्व सरकार के फैसलों को रद्द किया है. याचिकाकर्ताओं ने अदालत से गुहार लगाई है कि सरकार के इस फैसले को गैरकानूनी ठहरा कर रद्द किया जाए.
संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत काम किया: बिना कैबिनेट का गठन किए मौजूदा सरकार ने पूर्व सरकार द्वारा नए खोले गए कार्यालयों को डिनोटिफाई करने का फैसला ले लिया. याचिका में कहा गया है कि किसी भी सरकार के कैबिनेट के फैसले को केवल कैबिनेट ही रद्द करने की शक्ति रखती है. नई सरकार द्वारा जारी प्रशासनिक आदेशों से कैबिनेट के फैसले को निरस्त नहीं किया सकता. याचिकाओं में दलील दी गई है कि नई सरकार ने संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत कार्य किया है. इस तरह याचिकाओं में राज्य सरकार के 12 दिसंबर को जारी प्रशासनिक आदेश को निरस्त करने की गुहार लगाई है.
सरकार द्वेष की भावना से कार्य कर रही: प्रार्थियों का कहना है कि पूर्व सरकार ने सभी फैसले कैबिनेट के माध्यम से कानून के दायरे में रहकर लिए थे. प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने 12 दिसंबर को पूर्व सरकार के समय अप्रैल 2022 के बाद खोले गए कई संस्थानों को बंद करने के आदेश पारित किए हैं. याचिकाओं में ये भी आरोप लगाया गया है कि नई सरकार द्वेष की भावना से कार्य कर रही है. उल्लेखनीय है कि इस मामले में भाजपा अध्यक्ष सुरेश कश्यप सहित अन्य पार्टी नेताओं ने हाईकोर्ट में याचिकाएं दाखिल की हुई हैं.
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