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250 साल पहले अमरावती से आया था परिवार, 91 साल से बनारस में मना रहे गणपति महोत्सव

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Published : Sep 1, 2019, 11:45 PM IST

महाराष्ट्र के अमरावती से 250 साल पहले काशी पहुंचे पंडित गौरीनाथ पाठक का परिवार संस्कृत और वेद-वेदांग की परंपराओं को आज भी संजोए हुए है. काशी जैसे इस अद्भुत शहर में गणेश उत्सव के नाम पर यह मराठी परिवार एकजुटता और अखंडता का पवित्र संदेश देता है.

गणपति महोत्सव

वाराणसी: काशी जिसके कई नाम हैं. वाराणसी यानी 'वरुणा' और अस्सी के तट पर बसा शहर बनारस यानी 'बना बनाया रस' जैसा कि इस शहर के नाम से ही साफ होता है. इस शहर में संस्कृति, सभ्यता, जाति-धर्म सभी कुछ का समागम देखने को मिलता है. काशी में त्योहार खूब मनाए जाते हैं, चाहे राजस्थान का गणगौर हो या फिर महाराष्ट्र का गणेश उत्सव. गणेश उत्सव की तैयारी में इन दिनों बनारस में रह रहा मराठी परिवार जी जान से जुटा हुआ है. काशी के अगस्त्यकुंडा स्थित शारदा भवन में रहने वाला यह मराठी परिवार बीते 91 सालों से अपनी परंपरा के अनुरूप महाराष्ट्र की संस्कृति को उत्तर भारत में जीवित रखने में जुटा हुआ है.

अमरावती से आया था परिवार

महाराष्ट्र के अमरावती से 250 साल पहले काशी पहुंचे पंडित गौरीनाथ पाठक का परिवार संस्कृत और वेद-वेदांग की परंपराओं को आज भी संजोए हुए है. गुरुकुल परंपरा का निर्वहन करते हुए स्वर्गीय गौरी शंकर पाठक ने 1929 में शारदा भवन में श्री गणेश उत्सव की शुरुआत की. कर्नाटक और महाराष्ट्र के अपने छात्रों के कहने पर उन्होंने इस गणेश उत्सव को शुरू किया.

91 साल से मना रहे गणपति महोत्सव
इस उत्सव की कमान संभालने वाले विनोद राव पाठक का कहना है कि पिताजी ने गणेश उत्सव के 21 साल पूरे होने पर उन्होंने इसे बंद करने की बात कही, लेकिन उनके शिष्यों ने ऐसा नहीं करने दिया. ऐसे में इस बार इस गणेश उत्सव के 91 साल पूरे हो जाएंगे. सबसे बड़ी बात यह है कि अमरावती से बनारस आकर बसे इस परिवार ने आज भी अपने वेद-वेदांत और परंपरा को जीवित रखा है.

ये परिवार एकजुटता और अखंडता का देता है पवित्र संदेश

7 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में महिलाएं जी जान से जुटी रहती हैं. उत्तर भारत में गणेश उत्सव के नाम पर महाराष्ट्र की संस्कृति का एक अद्भुत समागम काशी के इस मराठी परिवार के रूप में देखने को मिलता है, जो यह साबित करता है कि आज भी भारत में धर्म-जाति और मजहब के नाम पर बांटने वाले लोग भले ही कितना प्रयास कर लें, लेकिन काशी जैसे इस अद्भुत शहर में गणेश उत्सव के नाम पर यह मराठी परिवार एकजुटता और अखंडता का पवित्र संदेश देता है.

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Intro:स्पेशल स्टोरी गणेश उत्सव: सुधीर सर के विशेष ध्यानार्थ...

वाराणसी: काशी जिसके कई नाम है वाराणसी यानी वरुणा और अस्सी के तट पर बसा शहर और बनारस यानी बना बनाया रस जैसा कि इस शहर के नाम से ही साफ होता है किस शहर में संस्कृति सभ्यता जाति धर्म सभी कुछ का समागम देखने को मिलता है चाहे महाराष्ट्र या गुजरात बंगाल हो या पंजाब हर राज्य की संस्कृति इस धार्मिक शहर में समाहित है भोलेनाथ के इस शहर में कोई रोजगार के लिए आता है तो कोई कर्मकांड और संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए इन सबके बीच अपनी ही संस्कृति के साथ निभाई जाती हैं परंपराएं और अपने राज्य के पर्व और त्यौहार भी चाहे राजस्थान की गणगौर हो या फिर महाराष्ट्र का गणेश उत्सव और ऐसे ही पर्व गणेश उत्सव की तैयारी में इन दिनों बनारस में रह रहा मराठी परिवार की जान से जुड़ा हुआ है. काशी के अगस्त्यकुंडा स्थित शारदा भवन में रहने वाला यह मराठी परिवार बीते 91 सालों से अपनी परंपरा के अनुरूप महाराष्ट्र की संस्कृति को उत्तर भारत में जीवित रखने में जुटा हुआ है.


Body:वीओ-01 महाराष्ट्र के अमरावती से 250 साल पहले काशी पहुंचे पंडित गौरीशंकर पाठक के परिवार ने संस्कृत और वेद वेदांग की परंपराओं को बनाए रखने के उद्देश्य से काशी में निवास किया. गुरुकुल परंपरा का निर्वहन करते हुए स्वर्गीय गौरी शंकर पाठक ने 1929 में शारदा भवन श्री गणेश उत्सव की शुरुआत की कर्नाटक और महाराष्ट्र के अपने छात्रों के कहने पर जब उन्होंने इस गणेश उत्सव को शुरू किया तो शायद किसी को यह भरोसा ही नहीं था कि लगातार 91 सालों तक यह गणेश उत्सव चलता रहेगा. अब इस उत्सव की कमान संभालने वाले विनोद राव पाठक का कहना है कि पिताजी ने जब इस को शुरू किया तो एक कई साल होने पर उन्होंने इसे बंद करने की बात कही लेकिन उनके शिष्यों ने ऐसा नहीं करने दिया जिसकी वजह से इस बार इस गणेश उत्सव के 91 साल पूरे हो जाएंगे. सबसे बड़ी बात यह है कि अमरावती से बनारस आकर बसे इस परिवार ने आज भी अपने वेद वेदांत और परंपरा को जीवित रखते हुए इस गणेश उत्सव को संचालित करते रहने का काम किया है यही वजह है कि बनारस के मराठी परिवारों का गढ़ कहे जाने वाले भोसला घाट पर स्थित घोंसला महल का लकड़ी का प्रतिरूप बप्पा के उस स्थान पर लगाया जाता है जिसके ठीक ऊपर एक छोटे से ताके में प्रथम पूजनीय गणेश जी विराजमान होते हैं. 1936 में एक पैसे प्रतिदिन का भुगतान कर मजदूरों ने जब इस महल के प्रतिरूप को तैयार किया तब से आज तक या अपने वास्तविक रूप में कायम है जो इस निजी गणेश उत्सव के आयोजन को चार चांद लगा देता है.


Conclusion:वीओ-02 वैसे तो गणेशोत्सव सार्वजनिक और निजी तौर पर बहुत जगह होते हैं लेकिन काशी में मराठा परिवार की तरफ से आयोजित होने वाला यह निजी गणेश उत्सव अपने आप में एक अलग स्थान रखता है, क्योंकि पूरा परिवार इससे मिलकर जी जान से पूरा करता है 7 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में महिलाएं जी जान से जुटी रहती हैं वफा के स्वागत के लिए लड्डू बनाने से लेकर मोदक तैयार करने और बप्पा के बैठने के स्थान के आसपास को सजाने का काम घर की महिलाएं करती हैं तो घर के पुरुष 7 दिनों तक होने वाले विभिन्न आयोजनों की रूपरेखा तैयार करते हैं. कुल मिलाकर उत्तर भारत में गणेश उत्सव के नाम पर महाराष्ट्र की संस्कृति का एक अद्भुत समागम काशी के इस मराठी परिवार के रूप में देखने को मिलता है, जो यह साबित करता है कि आज भी भारत में धर्म जाति और मजहब के नाम पर बांटने वाले लोग भले ही कितना प्रयास कर ले लेकिन काशी जैसे इस अद्भुत शहर में गणेश उत्सव के नाम पर यह मराठी परिवार एकजुटता और अखंडता का पवित्र संदेश देता है.

बाईट- विनोद राव पाठक
बाईट- स्मृता विनोद पाठक
बाईट- इंदिरा शर्मा

गोपाल मिश्र

9839809074
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