शिमला: जहां कोरोना की वजह से हर व्यक्ति का नुकसान हुआ है. वहीं, कोरोना महामारी की वजह से त्योहारों का रंग भी फीका पड़ गया है. शनिवार को पूरे भारत में ईद उल अजहा का त्योहार मनाया जा रहा है. वहीं, इस मुबारक अवसर को प्रदेश में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने बड़ी ही सादगी से अपने घरों में मनाया.
कोविड-19 की वजह से पहली बार मस्जिदों और ईदगाह में लोगों ने एक साथ नमाज अदा की है. नियमों का पालन करते हुए और सोशल डिस्टेंसिंग को ध्यान में रखते हुए ही शिमला में इस ईद के पर्व को सादगी से मनाया गया. इस दौरान मुस्लिम समुदाय के लोगों ने घरों में ही नमाज अदा करते हुए प्रदेश के लिए शांति और अमन की दुआ मांगी और इसके साथ ही अल्लाह से यह दुआ की गई कि कोरोना महामारी जल्द से जल्द समाप्त हो जाए.
वैसे जहां इस पर्व पर शिमला शहर में ईदगाह, जामा मस्जिद सहित छोटा शिमला, कुतुब मस्जिद संजौली में मुस्लिम समुदाय के हजारों लोग एक साथ ईद की नमाज अता करते थे. वहीं, इस बार कोरोना के कारण लोग मस्जिद में इकट्ठा नमाज नहीं पढ़ी बल्कि घरों में रहकर नमाज अदा की है. ईद उल अजहा के पावन मौके पर जहां मुस्लिम समुदाय के लोगों ने एक दूसरे को मुबारकबाद दी. वहीं, भाइचारे की एकता को कायम करने के लिए अल्लाह से दुआ भी मांगी.
जामा मस्जिद के इमाम कारी मुहम्मद इस्लाम ने कहा कि आज ईद का त्योहार है और हजारों लोगों ने ईद की नमाज अदा की लेकिन यह नमाज अपने-अपने घरों पर ही अदा की गई. नमाज के दौरान कोरोना महामारी को खत्म करने. देश और प्रदेश में अमन शांति के लिए खास दुआएं मांगी गई. उन्होंने कहा कि इस बार कोविड-19 की वजह से सभी लोगों को अपने घर में नमाज अता करने को कहा गया था.
मुहम्मद इस्लाम ने कहा कि महामारी से बचने के लिए यह आवश्यक है कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जाए जिससे कोरोना संक्रमण से बचाव हो सके. इसी को देखते हुए ईदगाहों ओर मस्जिदों में ईद की नमाज अदा करने के लिए लोग नहीं आए. उन्होंने बताया कि अल्लाह को खुश करने के लिए ईद पर कुर्बानी दी जाती है और ईद पर लोग सभी गिले-शिकवे भुला कर एक दूसरे से मिलते हैं और लोगों को एक साथ मिलजुल कर रहने का संदेश देते हैं.
बकरों की कुर्बानी नहीं अल्लाह को खुश करना है मकसद
बकरीद का त्योहार केवल बकरों की कुर्बानी देने का ही नाम नहीं हैं बल्कि कुर्बानी का मकसद है. अल्लाह को राजी करने के लिए अपनी सबसे प्यारी चीज का त्याग करना होता है. इस दिन लोग गिले-शिकवे भुला कर एक दूसरे के गले लगते हैं. इसी दिन दुनिया भर के मुसलमान अरब पहुंच कर हज करते थे. हज की वजह से भी इस पवित्र त्योहार की अहमियत बढ़ जाती है.
क्यों दी जाती है कुर्बानी
पैगंबर इब्राहीम अलैही सलाम को ख्वाब में अल्लाह का हुक्म हुआ कि वह अपनी सबसे प्यारी चीज को अल्लाह की राह में कुर्बान कर दे. अल्लाह को राजी करने के लिए इब्राहीम ने बकरे से लेकर ऊंट तक की कुर्बानी दी, लेकिन अल्लाह ने हर बार ख्वाब में सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करने का हुक्म दिया. अंत में इब्राहीम को लगा कि उसका बेटा इस्माईल ही सबसे प्यारा है. अल्लाह उसकी ही कुर्बानी मांग रहे हैं. यह इब्राहीम अलैही सलाम के लिए एक इम्तिहान था, जिसमें एक तरफ था अपने बेटे से मोहब्बत और एक तरफ था अल्लाह का हुक्म.
इब्राहीम अलैही सलाम ने अल्लाह के हुक्म को पूरा करने के लिए अपने बेटे इस्माईल नबी की कुर्बानी देने को तैयार हो गए. जैसे ही इब्राहीम अलैही सलाम अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर छुरी से अपने बेटे को कुर्बान करने लगे, वैसे ही अल्लाह ने फरिश्तों के सरदार जिब्रील अमीन को जमीन पर भेजकर इस्माईल को छुरी के नीचे से हटाकर उनकी जगह एक मेमने को रख दिया.
इस तरह इब्राहीम अलैही सलाम के हाथों मेमना कुर्बान हो गया. जैसे ही इब्राहीम ने अपनी आंखें खोली तो वहां इस्माईल की जगह भेड़ का बच्चा कटा हुआ था तो फरिश्ता जिब्रील अमीन ने इब्राहीम को खुशखबरी सुनाई की अल्लाह ने आपकी कुर्बानी कुबूल कर ली है. तब से ही सभी इस्लाम के मानने वाले मालदारों पर हर साल कुर्बानी करना जरूरी कर दिया. तभी से अल्लाह को राजी करने के लिए बकरा या अन्य पशुओं की कुर्बानी ईद पर दी जाती है.
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