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सेब के लिए मशहूर है हिमाचल का मड़ावग, जानिए कैसे बना एशिया का सबसे अमीर गांव

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Published : May 27, 2019, 2:57 PM IST

Updated : May 27, 2019, 3:23 PM IST

राजधानी एशिया का सबसे अमीर गांव बन गया है. इससे पहले 1982 में एशिया के सबसे अमीर गांव का श्रेय हिमाचल के शिमला जिला को छोटे से गांव क्यारी के पास था.

प्रदेश का गांव मड़ावग

शिमला: प्रदेश का गांव मड़ावग सेब की खेती के लिए एशिया का सबसे अमीर गांव बन गया है. प्रति व्यक्ति आय में इस गांव ने गुजरात के माधवपुर गांव का भी रिकॉर्ड तोड़ दिया है.

बता दें कि 1982 में एशिया के सबसे अमीर गांव का श्रेय भी हिमाचल के शिमला जिला को छोटे से गांव क्यारी के पास था. क्यारी गांव के बाद अब मड़ावग गांव एशिया का सबसे अमीर गांव है.

दरअसल प्रदेश के गांव मड़ावग में साल 1954 में किसान चैइंयां राम मेहता अपने खेत में उपजाए आलू की फसल खच्चर पर लादकर कोटखाई के रास्ते शिमला में बेचने के लिए जा रहे थे. वापसी में लौटने पर वे कोटखाई से सेब के पौधे लेकर आए. मड़ावग पहुंचे और उन्होंने ग्रामीणों को सेब के पौधों के बारे में बताया. चैइंयां राम की बात सुनकर ग्रामीणों ने आलू की जगह सेब उगाने का प्रबल विरोध किया.

ग्रामीणों के विरोध के बाद भी धुन के पक्के चैइंयां राम अपनी बात पर अड़े रहे. उन्होंने कुछ जमीन पर सेब के पौधे लगा दिए. वहीं, कोटखाई के बागवान उस समय तक सेब उत्पादन में पहचान बना चुके थे. चैइंयां राम कोटखाई जाकर सेब के पौधों की देखभाल के बारे में सीखते रहे. बारह साल बाद 1966 में जब पौधों में पहली बार फल लगे और चैइंयां राम उन्हें बेचने मंडी गए तो वापसी में उनकी जेब में आठ हजार रुपये की रकम थी. सौ-सौ के नोट देखकर ग्रामीणों भी हैरान रह गए. इसके बाद धीरे-धीरे ग्रामीणों ने भी सेब के पौधे लगाने शुरू किए और नतीजा ये निकला कि लक्ष्मी अब साक्षात इस गांव में बसती है.

चैइंयां राम की पहल की वजह की वजह से आज मड़ावग गांव एशिया का सबसे अमीर गांव बन गया है. इलाके में दो हजार से अधिक की आबादी है. आलीशान मकान, हर मकान के आगे महंगी गाड़ियां और हर साल सेब के दस लाख बॉक्स का उत्पादन यहां होता है. यहां एक साल में 150 करोड़ रुपये का सेब पैदा किया जाता है.

युवाओं ने संभाली बुजुर्गों की विरासत
मड़ावग गांव के बुजुर्गों ने सेब उत्पादन के जो बीज बोए थे, युवाओं ने उसे मेहनत और लगन का खाद-पानी दिया. गांव के प्रगतिशील युवाओं ने सरकारी नौकरी की बजाय सेब उत्पादन में महारत हासिल करने पर ध्यान दिया. बागवानों का कहना है कि इस समय गांव में विदेशी किस्मों के सेब सफलता से उगाए जा रहे हैं. चीन, अमेरिका, न्यूजीलैंड और इटली को टक्कर देने में यहां बागवान सक्षम हैं. नई तकनीक और इंटरनेट की जानकारी से लैस मड़ावग गांव के युवा अपने बागीचों की देखभाल आधुनिक जरियों से करते हैं. यहां पैदा हुए सेब की देश की बड़ी मंडियों जैसे मुंबई, अहमदाबाद, कोलकाता में भारी मांग है.

विदेशों को भी यहां के सेब का निर्यात किया जाता है. बताया जाता है कि ट्रॉपिकाना कंपनी के एप्पल जूस में मड़ावग की कुछ सेब किस्मों को प्रेफर किया जाता है. बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एसपी भारद्वाज के अनुसार मड़ावग गांव के बागवानों ने अपनी लगन से ये मुकाम हासिल किया है. पहले भी शिमला जिला के क्यारी गांव का नाम एशिया के सबसे अमीर गांवों में आ चुका है.

संपन्नता की मिसाल
मड़ावग में करीब चार सौ परिवार रहते हैं. दो हजार से कुछ अधिक की आबादी वाले इस गांव की भूमि सेब उत्पादन के लिए माकूल है. यहां सालाना डेढ़ सौ करोड़ रुपये के सेब होते हैं. प्रति परिवार आय सालाना 75 लाख के करीब है. आज ये गांव संपन्नता की मिसाल है. बागवान इतने जागरुक हैं कि हर साल सेब का ऑन इयर होता है. ऑन इयर एक तकनीकी शब्द है, जिसके अनुसार हर साल सेब का उत्पादन होता है. अमूमन ऐसा होता है कि एक बार ऑन इयर और एक बार ऑफ इयर ऑफ प्रोडक्शन होता है, लेकिन मड़ावग के बागवान अपने बागीचों को इस तरह मैंटेन करते हैं कि यहां हर साल ऑन इयर ऑफ प्रोडक्शन होता है.

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एक गांव ऐसा, जहां बसती है साक्षात लक्ष्मी
जानिए, कैसे एक छोटा सा पहाड़ी गांव मड़ावग बना एशिया का सबसे अमीर गांव
शिमला। वर्ष 1954 की बात है। हिमाचल के छोटे से गांव मड़ावग के श्रमशील
किसान चैइंयां राम मेहता अपने खेत में उपजाए आलू की फसल खच्चर पर लादकर
कोटखाई के रास्ते शिमला में बेचने के लिए जा रहे थे। वापिसी में लौटे तो
कोटखाई से सेब के पौधे लेकर आए। मड़ावग पहुंचे और ग्रामीणों को सेब के
पौधों के बारे में बताया। चैइंयां राम की बात सुनकर ग्रामीणों ने आलू की
जगह सेब उगाने का प्रबल विरोध किया। धुन के पक्के चैइंयां राम नहीं माने।
उन्होंने कुछ जमीन पर सेब के पौधे लगा दिए। कोटखाई के बागवान उस समय तक
सेब उत्पादन में पहचान बना चुके थे। चैइंयां राम कोटखाई जाकर सेब पौधों
की देखभाल के बारे में सीखते। बारह साल बाद 1966 में जब पौधों में पहली
बार फल लगे और चैइंयां राम उन्हें बेचने मंडी में गए तो वापिसी में उनकी
जेब में आठ हजार रुपए की रकम थी। सौ-सौ के नोट देखकर ग्रामीणों की आंखें
फटी की फटी रह गई। धीरे-धीरे ग्रामीणों ने भी सेब के पौधे लगाने शुरू किए
और नतीजा यह निकला कि लक्ष्मी अब साक्षात इस गांव में बसती है। चैइंयां
राम ने उस समय संपन्नता का जो बीज बोया वो आजकल घना पेड़ बन चुका है। घना
पेड़ ऐसा कि इन दिनों मड़ावग एशिया का सबसे अमीर गांव है। इलाके में दो
हजार से अधिक की आबादी है। आलीशान मकान, हर मकान के आगे महंगी गाडिय़ां और
हर साल सेब के दस लाख बॉक्स का उत्पादन। यहां एक साल में 150 करोड़ रुपए
का सेब पैदा किया जाता है। प्रति व्यक्ति आय में इस गांव ने गुजरात के
माधवपर गांव का रिकार्ड तोड़ दिया। यहां बता दें कि 1982 में एशिया के
सबसे अमीर गांव का श्रेय भी हिमाचल के शिमला जिला को छोटे से गांव क्यारी
के पास था।
बॉक्स
बुजुर्गों की विरासत को संभाला युवाओं ने
मड़ावग गांव के बुजुर्गों ने सेब उत्पादन के जो बीज बोए थे, युवाओं ने
उसे मेहनत व लगन का खाद-पानी दिया। गांव के प्रगतिशील युवाओं ने सरकारी
नौकरी की बजाय सेब उत्पादन में महारत हासिल करने पर ध्यान दिया। बागवान
दीपक ब्रागटा, अश्विनी मेहता, राहुल मेहता, अक्षय ब्रागटा, चंद्रमोहन
डोगरा, अमित डोगरा, भूपेंद्र डोगरा आदि का कहना है कि इस समय गांव में
विदेशी किस्मों के सेब सफलता से उगाए जा रहे हैं। चीन, अमेरिका,
न्यूजीलैंड व इटली को टक्कर देने में यहां बागवान सक्षम हैं। नई तकनीक व
इंटरनेट की जानकारी से लैस मड़ावग गांव के युवा अपने बागीचों की देखभाल
आधुनिक जरियों से करते हैं। यहां पैदा हुए सेब की देश की बड़ी मंडियों
जैसे मुंबई, अहमदाबाद, कोलकाता में भारी मांग है। विदेशों को भी यहां के
सेब का निर्यात किया जाता है। बताया जाता है कि ट्रापिकाना कंपनी के
एप्पल जूस में मड़ावग की कुछ सेब किस्मों को प्रेफर किया जाता है।
बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एसपी भारद्वाज के अनुसार मड़ावग गांव के बागवानों
ने अपनी लगन से यह मुकाम हासिल किया है। पहले भी शिमला जिला के क्यारी
गांव का नाम एशिया के सबसे अमीर गांवों में आ चुका है।
बॉक्स
चार सौ परिवार, दस लाख पेटी सेब
मड़ावग में करीब चार सौ परिवार रहते हैं। दो हजार से कुछ अधिक की आबादी
वाले इस गांव की भूमि सेब उत्पादन के लिए माकूल है। यहां सालाना डेढ़ सौ
करोड़ रुपए के सेब होते हैं। प्रति परिवार आय सालाना 75 लाख के करीब है।
आज ये गांव संपन्नता की मिसाल है। बागवान इतने जागरुक हैं कि हर साल सेब
का ऑन इयर होता है। ऑन इयर एक तकनीकी शब्द है, जिसके अनुसार हर साल सेब
का उत्पादन होता है। अमूमन ऐसा होता है कि एक बार ऑन इयर व एक बार ऑफ इयर
ऑफ प्रोडक्शन होता है। लेकिन मड़ावग के बागवान अपने बागीचों को इस तरह
मैंटेन करते हैं कि यहां हर साल ऑन इयर ऑफ प्रोडक्शन होता है। यूं तो
हिमाचल प्रदेश का शिमला जिला राज्य का सबसे बड़ा सेब उत्पादक जिला है,
लेकिन मड़ावग गांव के युवाओं ने अपनी अलग ही पहचान बनाई है। चौपाल के
एसडीएम अनिल चौहान के अनुसार मड़ावग गांव को सेब उत्पादन के कारण आई
समृद्धि के कारण एशिया के सबसे अमीर गांव होने का गौरव हासिल है। यहां की
प्रति व्यक्ति आय लाखों में है। प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से रिचेस्ट
विलेज का ऐलान होता है। मड़ावग ने यह उपलब्धि हासिल की है। इससे पहले
गुजरात के गांव माधवपर के नाम यह रिकार्ड रहा है। हिमाचल को इस बात का
गौरव हासिल है कि यहां दूसरी बार कोई गांव एशिया का सबसे अमीर गांव बना
है। इससे पहले यह उपलब्धि क्यारी गांव को मिली थी। प्रति व्यक्ति आय
घटती-बढ़ती रहती है। उसी के अनुसार यह तय किया जाता है कि कौन सा गांव
सबसे अमीर है। इसके लिए बैंक खातों में जमा रकम व अन्य मापंदड होते हैं।
जिला प्रशासन के आंकड़ों को भी कंसीडर किया जाता है।


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With Warm Regards
Rajneesh Sharma
91-9418451002 (M)
Last Updated : May 27, 2019, 3:23 PM IST
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