नाको झील की खूबसूरती में छिपा है गहरा 'रहस्य', तांत्रिक गुरु पद्म संभव से जुड़ा है इतिहास

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Published : Jul 28, 2019, 11:27 AM IST

Updated : Jul 28, 2019, 12:23 PM IST

झील का इतिहास हजारों साल पहले गुरु पद्म संभव से जुड़ा हुआ है. गुरु पद्म संभव जो नालंदा विश्वविद्यालय में तांत्रिक विद्या के अध्यापन का कार्य करते थे, जब नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगी तो पद्म संभव ने आग की लपटों से कुछ एक बोद्ध धर्म की बची हुई पुस्तकों को वहां से सही सलामत निकाला था.

किन्नौर: ईटीवी भारत की सीरीज 'रहस्य' में आज हम अपनी कड़ी की तीसरी कहानी लेकर हाजिर हैं. आज हम आपको हिमाचल प्रदेश के दुर-दराज जिला किन्नौर की नाके झील के बारे में बताएंगे. जिला के हंगरांग वैली के नाको गांव में स्थित नाको झील जितनी खूबसूरत है उतना ही अपनी गहराई में कई रहस्य छुपाए हुए है.

नाको गांव समुद्र तल से 3,661 मीटर की ऊंचाई पर जो कि भारत-चीन सीमा पर स्थित है. यहां हर साल हजारों पर्यटक घूमने पहुंचते हैं. इस गांव की सुंदरता देखते ही बनती है. गांव के बीचों-बीच एक प्राकृतिक झील है जो इस गांव की सुंदरता में चार चांद लगाने का काम करती है.

ये झील अपने अंदर कई रहस्य भी समाए हुए है. बुजुर्गों का कहना है कि ये झील प्राकृतिक है और इसका निर्माण हजारों साल पहले हुआ था.

गुरु पद्म संभव व देवता पुर्ग्युल से जुड़ा है झील का इतिहास
इस झील का इतिहास हजारों साल पहले गुरु पद्म संभव से जुड़ा हुआ है. गुरु पद्म संभव जो नालंदा विश्वविद्यालय में तांत्रिक विद्या के अध्यापन का कार्य करते थे, जब नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगी तो पद्म संभव ने आग की लपटों से कुछ एक बोद्ध धर्म की बची हुई पुस्तकों को वहां से सही सलामत निकाला था.

बताते चलें कि पद्म संभव तांत्रिक विद्या में निपुण थे और बोद्ध धर्म की पुस्तकों के कुछ अस्तित्व उन्होंने बचा लिए थे. कहा जाता है कि जब पद्म संभव के बारे में तिब्बत के राजा ठी को पता चला तो उन्होंने उनको तिब्बत बुलाया, क्योंकि उस दौरान तिब्बत में भूत प्रेतों का आतंक काफी बढ़ गया था.

जब पद्म संभव को यह बात पता चली तो वे बोद्ध पुस्तकों को लेकर वायु वेग से किन्नौर आये और नाको के समीप अपनी थकावट मिटाने के लिए रुके और कुछ देर अपने ध्यान में लगे रहे. जब उनकी आंख खुली तो गांव के मध्य अचानक एक झील का निर्माण हो चुका था.

इस झील के प्राकृतिक निर्माण गांव में सूखे जैसी कई परेशानियों का अंत हुआ. ये झील काफी बड़ी है. इस झील से पानी निकलने का कोई रास्ता नहीं है. इसलिए ये रहस्य का विषय है कि झील का पानी आखिर जाता कहां है.

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यहां थकान मिटाने के बाद गुरु संभव ने जब यहां से उड़ान भरी थी तो उन्होंने झील के समीप एक पत्थर पर कदम रखा था, जिससे उनके पैर के निशान उस पत्थर पर रह गए. जिसे ग्रामीणों ने एक मंदिर के अंदर गुरु पद्म संभव की मूर्ति के साथ स्थापित किया हुआ है.

नाको गांव के जानकार दोरजे नेगी बताते हैं कि हजारों वर्ष पूर्व इस झील पर परियां स्थानीय देवता पुर्ग्युल के साथ फुलाइच नामक मेला मनाने आती थी. जिन्हें बुजुर्गों ने आधी रात उन्हें झील पर कई बार देखा था. वहीं, जब देवता पुर्ग्युल इस झील किनारे फुलाइच मेला मनाने आते हैं तो उन्होंने भी अपने हाथों के निशान एक पत्थर पर छोड़े हैं.

देवता पुर्ग्युल के हाथों के निशान वाले पत्थर को भी उसी मंदिर में एक साथ रखा गया है. इस मंदिर में हर रोज बोद्ध लामाओं द्वारा पूजा की जाती है. वहीं, गुरु पद्म संभव के ध्यान लगाने के बाद यहां जगह-जगह पहाड़ियों पर लामाओं ने दुग्युर व स्तुपों का भी निर्माण किया है जिन्हें नाकों में पवित्र माना जाता है.

नाको झील की सुंदरता के साथ इसका इतिहास भी बहुत पवित्र है. माना जाता है कि इस झील के चारों तरफ चक्कर मात्र काटने से इंसान पाप मुक्त हो जाता है. वहीं, ग्रामीणों का मानना है कि नाको झील की गहराई मापना भी बहुत मुश्किल है.

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Special story on Nako Lake Kinnaur


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Last Updated :Jul 28, 2019, 12:23 PM IST
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