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आग में जल रहे हिमाचल के जंगल, आखिर जिम्मेदार कौन?

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Published : Apr 24, 2022, 11:02 PM IST

Fire broke out in Shimla forests
शिमला के जंगलों में लगी आग.

हिमाचल प्रदेश में गर्मियों का मौसम शुरू होते ही आग लगने की घटनाएं सामने आती हैं, अमूमन वनों में लगने वाली आग को फॉरेस्ट फायर सीजन से जोड़ा जाता है. गर्मियों में हिमाचल में हर साल हजारों हेक्टेयर जंगल आग (himachal forest fire case) लगने से सुलगते हैं और करोड़ों की वन संपदा राख हो जाती हैं. इस साल भी गर्मी बढ़ते ही हिमाचल प्रदेश में जंगलों में आग लगने के मामले भी बढ़ने लगे हैं. शिमला के विभिन्न क्षेत्रों में जंगलों में आग लगने (Fire in Shimla Taradevi forest) से अब तक कोरोड़ों की वन संपदा जलकर राख हो चुकी हैं.

शिमला: हिमाचल प्रदेश में हर साल वनों में आग लगने की डेढ़ हजार से अधिक घटनाएं पेश आती हैं. गर्मी बढ़ते ही प्रदेश में जंगलों में आग लगने के मामले भी बढ़ने लगे हैं. राजधानी शिमला के आसपास के जंगलों की बात करें तो यहां भी आग लगने के मामले सामने आ रहे हैं. आग से धधक रहे हैं. शिमला के तारा देवी में (Fire In Tara Devi Forest) जंगल और अनाडेल के जंगल में भी (Fire In Annadale Forest) आग लगने का मामला सामने आया है. आग पर काबू पाने के लिए दमकल विभाग की टीमें मुस्तैद हैं, लेकिन कई ऐसी भी जगह हैं जहां दमकल विभाग की गाड़ियां नहीं पहुंच पाती. जिस वजह से विभागीय टीम को आग पर काबू पाना मुश्किल हो जाता है.

हालांकि दमकल विभाग के साथ-साथ स्थानीय लोग भी आग बुझाने का प्रयास (Fire in Shimla Taradevi forest) कर रहे हैं, लेकिन जिस तरह से जंगलों में आग लगी है. ये नाकाफी है. दरअसल गर्मियां बढ़ते ही हिमाचल प्रदेश के जंगलों में आग लगने का सिलसिला शुरू हो गया है. प्रदेश में आए दिन जंगलों में आग लगने की घटनाएं सामने आ रही हैं. वहीं, अग्निशमन विभाग द्वारा भी लोगों को जंगलों में आग लगने के कारणों के बारे में जागरूक किया जा रहा है, बावजूद इसके लोगों की लापरवाही के कारण जंगलों में आग लग रही है. ताजा मामले में राजधानी शिमला के समरहिल के जंगल में आग (Fire incident In shimla) लगी है.

शिमला के जंगलों में लगी आग. (वीडियो)

हर साल फॉरेस्ट फायर सीजन में छुट्टियां होती हैं रद्द: हिमाचल प्रदेश में वन विभाग (Forest Department in Himachal Pradesh) अलग-अलग स्तरों पर कार्य करता है. वन विभाग, वन्य प्राणी विंग के अलावा वनों की देखभाल के लिए अगल-अलग सैक्शन काम करते हैं. हिमाचल प्रदेश में कुल 2095 वन बीट हैं. इनमें से 339 बीट अत्यंत संवेदनशील हैं. हर साल फॉरेस्ट फायर सीजन में डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर यानी डीएफओ से लेकर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी तक की छुट्टियां 15 अप्रैल से 15 जून तक कैंसल की जाती हैं.


इस दौरान स्थान विशेष पर तैनात वन कर्मी किसी आपात स्थिति के अलावा अवकाश नहीं ले सकते. इस बार फॉरेस्ट फायर सीजन एक पखवाड़ा शुरू हो गया. जिसके कारण वन विभाग ने 4000 कर्मचारियों की छुट्टियां रद्द कर दी हैं. जिन कर्मचारियों की छुट्टियां रद्द हुई हैं उनमें से अधिकांश कर्मी अति संवेदनशील बीटों पर तैनात हैं. विभाग ने छुट्टियों पर फैसला लेने से पूर्व इन बीटों की छंटनी कर दी है.

प्रदेश भर में लगभग 50 फीसदी बीटें ऐसी हैं, जहां वनों में आग लगने की घटनाएं करीब हर साल होती रहीं हैं. इन बीटों पर तैनात डीएफओ से चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की छुट्टियां रद्द कर दी गई हैं. हिमाचल प्रदेश में वन विभाग के तहत विभिन्न स्तरों पर करीब 2095 फॉरेस्ट बीट हैं. इनमें से 182 बीट वाइल्ड लाइफ की हैं, जबकि 1913 बीटें वन विभाग के पास हैं. इन सभी बीटों को 585 ब्लॉक में बांटा गया है. इनमें 515 ब्लॉक वन विभाग के पास हैं, जबकि 70 ब्लॉक वाइल्ड लाइफ के पास हैं.

नई घास की लालच में स्थानीय लोग लगा देते हैं आग: आम तौर पर देखा गया है कि वनों में नेचुरल फॉरेस्ट फायर की घटनाएं कम होती हैं, लेकिन अधिकांश घटनाएं लोगों द्वारा अनजाने व जानबूझ कर आग लगा देते हैं. स्थानीय लोग नई घास के लालच में जंगलों में जानबूझ कर आग लगा देते हैं. इसके अलावा अवैध कटान के बाद सुबूत मिटाने के लिए पेड़ों के ठूंठ जलाने के लिए अपराधी वनों को आग के हवाले कर देते हैं. कुछ लोग गुच्छी का उत्पादन बढ़ाने के लिए खरपतवार व घास जलाने के लिए और कई बार वन्य प्राणियों को पकड़ने या शिकार के लिए भी वनों को आग के हवाले कर देते हैं.

हिमाचल में जगलों में आग लगने से हार साल लाखों का नुकसान: हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2015-16 में वनों में आग लगने की 672 घटनाएं सामने आई थी, जिसके कारण 1.34 करोड़ का नुकसान हुआ. हालांकि आग लगने के कारण वन्य प्राणी भी मौत का शिकार होते हैं. इसके अलावा जैव विविधता को भी नुकसान होता है. इस तरह नुकसान को मापने का कोई खास पैमाना तय नहीं किया जा सकता. फिर भी हर साल करोड़ों रुपए की वन संपदा नष्ट होना अच्छी बात नहीं है. इसी तरह वर्ष 2016-17 में वनों में आग लगने के 1832 मामले सामने आए, जिसके कारण 3.50 करोड़ की वन संपदा नष्ट हो गई.

वर्ष 2017-18 में वनों में आग लगने के 1164 मामले सामने आए, इससे करीब 2 करोड़ का नुकसान आंका गया. वर्ष 2018-19 में जंगलों में आग लगने के 2544 मामले सामने आए, जिसके कारण 3.25 करोड़ रुपए का नुकसान आंक गया. वहीं वर्ष 2019-20 में वनों में आग लगने के 1445 मामले सामने आए, जिससे 1.67 करोड़ रुपए का नुकसान आंका गया है. इस तरह देखने में आया है कि हिमाचल में वनों की आग के सबसे अधिक मामले 2018-19 में सामने आए हैं.

कोरोना संकट के बाद समय पर बारिश होने के कारण फॉरेस्ट फायर की घटनाएं कम हुई हैं. इस सीजन में भी यदि बारिश होती है तो इस आग से बचा जा सकता है. हिमाचल प्रदेश में पिछले फॉरेस्ट सीजन में मई व जून महीने में जंगल की आग की 883 घटनाएं हुई थीं, जिससे 1.76 करोड़ रुपए का नुकसान आंका गया है. वर्ष 2021 में फायर सीजन के दौरान समय-समय पर बारिश होती रही. इस कारण आग से नुकसान कम हुआ. कुल आग लगने के मामले 883 सामने आए. इस साल अभी फॉरेस्ट फायर की कोई बड़ी घटना नहीं हुई हैं.

हिमाचल प्रदेश में आग की घटनाओं से नुकसान
वर्षघटनाएंनुकसान
2015-16672करीब 1.34 करोड़
2016-171832करीब 3.50 करोड़
2017-181164करीब 2 करोड़
2018-192544करीब 3.25 करोड़
2019-201445करीब 1.67 करोड़
2020-21883करीब 1.76 करोड़

वन हिमाचल प्रदेश की शान: हिमाचल प्रदेश फॉरेस्टियर वेल्फेयर एसोशिएशन (Himachal Pradesh Forestier Welfare Association) के पदाधिकारी दिनेश कुमार का कहना है कि वन हिमाचल प्रदेश की शान है और वन कर्मी जंगलों को बचाने की शपथ लेता है. हर साल फॉरेस्ट फायर सीजन में वन कर्मियों की छुट्टियां रद्द की जाती हैं. ताकि इस दौरान कर्मचारियों की कमी महसूस नहीं हो. उनका कहना है कि प्रदेश में फील्ड स्टाफ कुछ कमी है और हिमाचल की भौगोलिक परिस्थितियां भी कठिन हैं ऐसे में वनों की आग पर काबू पाना कठिन रहता है.


इस वजह से जंगलों में लगती है आग: वहीं, पूर्व आईएफएस अधिकारी डॉ. केएस तंवर ने कहा कि जंगलों में आग लगने का सबसे मुख्य कारण चीड़ की पत्तियां होती हैं. दरअसल कई बार घासनियों की सफाई के दौरान भी लोग कांटों और झाड़ियों में आग लगाते हैं. यहीं आग कई बार विकराल रूप धारण कर लेती है. इसके अलावा कई बार कुछ असामाजिक तत्व भी जंगलों में बैठकर धूम्रपान करते हैं सुलगती तिल्ली या बीड़ी, सिगरेट आदि फेंक देते हैं, जिससे जंगलों में आग लग जाती है और करोड़ों की संपदा जलकर राख हो जाती है. ऐसे में लोगों को सावधानी और जागरूकता बरतना जरूरी है. इसके अलावा सरकार को इसके वैज्ञानिक प्रबंधन और वनों को स्थान विशेष के पर्यावरण के अनुकूल बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए. क्योंकि वन है तो कल है.

क्या कहते हैं वन मंत्री: वन मंत्री राकेश पठानिया (Forest Minister Rakesh Pathania on Forest Fire) ने कहा कि इस बार मौसम के रुख को देखते हुए फॉरेस्ट सीजन पहली अप्रैल से ही शुरू कर दिया है. वन मंत्री ने कहा कि विभाग का लक्ष्य इस फायर सीजन में कम से कम नुकसान हो. इसके अलावा आग लगने की सूचना मिलते ही वन विभाग एक्टिव हो और समय पर आग बुझाने का प्रयास किया जाए इसके लिए वन प्रबंधन कमेटियों को भी साथ जोड़ा गया है. हिमाचल की भौगोलिक परिस्थितियां भी कठिन हैं, ऐसे में वनों की आग पर काबू पाना कठिन रहता है, लेकिन अगर लोग भी सहयोग करें तो हिमाचल की सुंदरता को बेवजह आग की भेंट चढ़ने से बचाया जा सकता है.

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