शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने पंडोह और बरोट बांध (dam in Himachal) से हाइड्रो पॉलिसी के अनुरूप 15 प्रतिशत पानी न छोड़ने पर मुख्य सचिव को नोटिस जारी (High Court notice to the Chief Secretary ) किया है. देव भूमि पर्यावरण मंच के अध्यक्ष की ओर से मुख्य न्यायाधीश के नाम लिखे पत्र पर हाई कोर्ट ने कड़ा संज्ञान लेते हुए पत्र को जनहित याचिका में तब्दील किया है. खंडपीठ ने इस मामले में प्रधान सचिव पर्यावरण, राज्य प्रदूषण बोर्ड और डीसी मंडी से भी जवाब तलब किया है.
पत्र के माध्यम से आरोप लगाया है कि पंडोह और बरोट बांध से हाइड्रो पॉलिसी के प्रावधानों के तहत जरूरी मात्रा में पानी नहीं छोड़ा जा रहा है, जिससे पेय स्त्रोत, सिंचाई स्त्रोत, झीले, झरने इत्यादि सूखने की कगार पर है, जबकि हाइड्रो पॉलिसी और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशों के तहत हिमाचल प्रदेश में स्थापित सभी हाइड्रो प्रोजेक्ट/बांधों से 15 से 20 फीसदी पानी छोड़ा जाना अनिवार्य है.
पत्र के माध्यम से दलील दी गई है कि हिमाचल प्रदेश की जनता पहले ही सूखे की मार को झेल रही है और ऐसे में पंडोह और बरोट बांध से हाइड्रो पॉलिसी और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशों के तहत 15 से 20 प्रतिशत पानी नहीं छोड़ा जा रहा है. आरोप लगाया गया है कि बांध अथॉरिटी की ओर से राज्य सरकार को यह कहकर गुमराह किया जा रहा है कि बांध से हाइड्रो पॉलिसी और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशों तहत जरूरी मात्रा में पानी छोड़ा जा रहा है.
उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश में 655 ऐसे हाइड्रो प्रोजेक्ट है जो पांच मेगावाट तक की बिजली का उत्पादन करते है और कई ऐसे प्रोजेक्ट है जिनका बिजली उत्पादन कई मेगावाट में है. हिमाचल सरकार ने इन बांधों और प्रोजेक्टों से 15 प्रतिशत पानी छोड़ने बारे जरूरी प्रावधान रखा गया है. हालांकि केन्द्रीय सरकार ने बांधों से पानी छोड़ने की प्रतिशतता को 20-30 फीसदी बढ़ाने का सुझाव दिया है ताकि जल स्त्रोत न सूखे. प्रार्थी ने अदालत से गुहार लगाई है कि राज्य सरकार को आदेश दिए जाए कि वह सुनिश्चित करे कि पंडोह और बरोट बांध से 15-20 प्रतिशत पानी ब्यास और उहल नदी में छोड़े. मामले की सुनवाई 31 मई को निर्धारित की गई है.
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