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जब प्रदेश प्रभारी नरेंद्र मोदी के न चाहते हुए भी बदल गया था शिमला शहरी विधानसभा का टिकट

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Published : Aug 24, 2022, 8:42 PM IST

देश और प्रदेश में चाहे चुनाव जिस भी स्तर की हो, लेकिन चुनावी दौर में टिकट को लेकर राजनीतिक पार्टियों में गुटबाजी हमेशा दिखाई देती है. चुनावी साल में टिकट की आस में नेता खूब पसीना बहाते नजर आते हैं. वहीं, साल 1998 में हिमाचल विधानसभा चुनाव के दौरान हिमाचल के तत्कालीन भाजपा प्रभारी नरेंद्र मोदी के न चाहते हुए भी पार्टी ने सुरेश भारद्वाज का टिकट काटकर नरेंद्र बरागटा को मैदान में उतारने का फैसला लिया था. आज जानेंगे कि आखिर ऐसा क्यों किया गया था...

shimla assembly constituency
नरेंद्र मोदी की इच्छा के विपरीत शिमला शहरी का टिकट बदला.

शिमला: हिमाचल प्रदेश में कुछ ही दिनों में विधानसभा चुनावों की घोषणा (Himachal Assembly Elections 2022) होने वाली है. चुनाव लड़ने की हसरत पाले नेताओं ने अपने टिकट पक्की करने की जुगाड़ में खूब पसीना बहा रहे हैं. कोई पार्टी के उच्च पदों पर तैनात नेताओं से पुराने रिश्ते की दुहाई दे रहा है तो कोई वर्षों से साइडलाइन किये जाने का दुखड़ा लेकर दिल्ली दरबार पहुंच रहा है. खैर टिकट किसे मिलता है यह तो वक्त ही बताएगा. ऐसे ही टिकट कटने के एक किस्से को हम आपसे साझा करेंगे.

आज हम बात करेंगे साल 1998 के विधानसभा चुनावों (Himachal assembly elections ) की, जिन चुनावों में भाजपा सत्ता में आई प्रो. प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में सरकार (Himachal Former CM Prem Kumar Dhumal) बनी. इसी सरकार में बागवानी मंत्री बने थे पहली बार विधायक बने और शिमला शहरी से चुनाव जितकर विधानसभा आए नरेंद्र बरागटा. शिमला शहरी से उस वक्त पूर्व विधायक सुरेश भारद्वाज का टिकट काटकर नरेंद्र बरागटा को दे दिया गया था. ऐसा हुआ कैसे और तत्कालीन भाजपा प्रभारी नरेंद्र मोदी के न चाहते हुए भी क्यों सुरेश भारद्वाज का टिकट काट दिया गया. चर्चा इसी किस्से की होगी.

शांता कुमार के नजदीकी भी थे नरेंद्र बरागटा: दरअसल स्व. नरेंद्र बरागटा उस वक्त भाजपा किसान मोर्चा के बड़े नेता थे और राष्ट्रीय स्तर पर किसान मोर्चा में रहे नेताओं से उनकी खूब नजदीकी भी थी. इसके अलावा प्रदेश में तत्कालीन भाजपा के सर्वेसर्वा पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार (Former Himachal CM Shanta Kumar) के नजदीकी भी थे. उन दिनों आजकल की तरह राजनीतिक दलों में सर्वे का कोई चलन नहीं था, लेकिन पार्टी की तरफ से कुछ वरिष्ठ लोगों की टीम बनाई जाती थी. प्रत्येक विधानसभा सीट के लिए अलग टीम का गठन होता था. यह टीम पूरे विधानसभा क्षेत्र का दौरा करती थी और उसके बाद अपनी रिपोर्ट देती थी, लेकिन इस टीम में कौन-कौन लोग शामिल होंगे इसका निर्णय प्रदेश नेतृत्व ही करता था.

ऐसे में टीम के पक्षपाती होने की आशंका और बढ़ जाती थी. कई मौकों पर ऐसा हुआ भी और स्थानीय नेताओं ने इसपर सवाल भी उठाए, लेकिन सवाल और आवाज आधिकांश समय तक ना तो पार्लियामेंट्री बोर्ड तक पहुंचने दी गई ना ही जनता तक. खैर शिमला शहरी के लिए भी टिकट आवंटन (shimla assembly constituency) से पहले इसी प्रकार की टीम बनाई गई सर्वे हुआ और सर्वे रिपोर्ट में किसी के नाम पर स्पष्टता नहीं दिखाई गई.

शिमला शहरी विधानसभा सीट पर टिकट को लेकर बैठक: इसके बाद हिमाचल के त्तकालीन भाजपा प्रभारी नरेंद्र मोदी (Former Himachal BJP in-charge Narendra Modi) ने पूर्व विधायक सुरेश भारद्वाज के नाम पर सहमति जताते हुए पार्लियामेंट्री बोर्ड के लिए दो नाम भेज दिए पहला सुरेश भारद्वाज और नाम था नरेंद्र बरागटा का. जब भाजपा पार्लियामेंट्री बोर्ड में शिमला सीट पर चर्चा हो रही थी तो केवल 5 लोगों को ही बैठक में जाने की अनुमति दी गई. जिनमें अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, प्रमोद महाजन, प्रदेश प्रभारी नरेंद्र मोदी और शांता कुमार शामिल थे.

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टिकट को लेकर इन नेताओं के बीच हुई थी बैठक.

बैठक में जिक्र हुआ किसान मोर्चा का और किसान मोर्चा के एक बड़े नेता द्वारा अटल बिहारी वाजपेयी तक पहुंचाए संदेश का, जिसपर शांता कुमार ने तुरंत हामी भर दी और शिमला शहरी से नरेंद्र बरागटा का टिकट फाइनल हो गया. अपने समर्थकों संग दिल्ली पहुंचे सुरेश भारद्वाज चुपचाप वापस शिमला पहुंच गए. नरेंद्र बरागटा ने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. जिसके बाद उन्हें प्रदेश का बागवानी मंत्री बनाया गया.

1998 में नरेंद्र बरागटा रहे विजयी: स्व. नरेंद्र बरागटा ने पहली बार शिमला शहरी विधानसभा क्षेत्र से 1998 में चुनाव लड़ा और विधायक बने और तत्कालीन धूमल सरकार में उन्हें बागवानी मंत्री भी बनाया गया. हालांकि उसके बाद नरेंद्र बरागटा ने जुब्बल कोटखाई विधानसभा क्षेत्र (Jubbal Kotkhai Assembly constituency) से चुनाव लड़े वह 2007 में फिर से विधायक बने तथा तत्कालीन धूमल सरकार में बागवानी एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री रहे.

शिमला शहरी विधानसभा सीट पर अब तक विजयी उम्मीदवार: विधानसभा चुनाव में शिमला शहरी विधानसभा सीट पर बीजेपी का दबदबा रहा है. साल 1990 से लेकर 2017 तक इस सीट पर 5 बार भाजपा, दो बार कांग्रेस और एक बार सीपीआई(एम) प्रत्याशी ने जीत हासिल की है. साल 2017 में भाजपा से प्रत्याशी सुरेश भारद्वाज ने जीत हासिल की. वहीं, 2012 में इस सीट से भाजपा उम्मीदवार सुरेश भारद्वाज विजयी रहे. साल 2007 में भाजपा से सुरेश भारद्वाज ने इस सीट पर जीत हासिल की. वहीं, साल 2003 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस उम्मीदवार हरभजन सिंह भज्जी ने इस सीट पर जीत हासिल की.

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शिमला शहरी विधानसभा सीट पर अब तक विजयी उम्मीदवार.

साल 1998 में शिमला शहरी विधानसभा सीट पर तत्काली भाजपा प्रदेश प्रभारी नरेंद्र मोदी की इच्छा के विपरीत सुरेश भारद्वाज का टिकट काटकर यहां से भापजा ने नरेंद्र बरागटा के चुनावी मैदान में उतारा. इस चुनाव में नरेंद्र बरागटा विजयी रहे. वहीं, साल 1996 में उपचुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस उम्मीदवार आदर्श कुमार ने जीत हासिल की. साल 1993 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के राकेश सिंघा ने जीत हासिल की. वहीं, साल 1990 में भाजपा से सुरेश भारद्वाज ने इस सीट पर जीत हासिल की.

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