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ये 5 देवता नहीं आते ढालपुर मैदान, ब्यास नदी के पार से लेते हैं कुल्लू दशहरा उत्सव में भाग

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Published : Oct 9, 2022, 5:16 PM IST

Updated : Oct 9, 2022, 5:42 PM IST

जिला कुल्लू की घाटी के पांच ऐसे देवता भी हैं जो दशहरा उत्सव के लिए अपने मंदिर से ढालपुर की (International Kullu Dussehra) ओर तो रवाना होते हैं, लेकिन हर साल ब्यास नदी के दूसरे छोर पर वह 7 दिनों तक दशहरा उत्सव मनाते हैं. आइए जानतें हैं कि कौन है ये देवता और क्या है इसके पीछे की कहानी....

International Kullu Dussehra
अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव

कुल्लू: जिला कुल्लू के मुख्यालय ढालपुर मैदान में जहां अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव (International Kullu Dussehra) धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है. तो वहीं, 300 से अधिक देवी-देवता ढालपुर मैदान में दशहरा उत्सव की शान बढ़ा रहे हैं. ढालपुर मैदान में सालों पुरानी देव परंपरा का भी निर्वहन किया जा रहा है. यह परंपरा देवता के हारियानों द्वारा निभाई जा रही है और इस परंपरा को देखने के लिए देश-विदेश से भी सैलानी ढालपुर मैदान पहुंच रहे हैं.

ऐसे में जिला कुल्लू की घाटी के पांच ऐसे देवता भी हैं जो दशहरा उत्सव के लिए अपने मंदिर से ढालपुर की ओर तो रवाना होते हैं, लेकिन हर साल ब्यास नदी के दूसरे छोर पर वह 7 दिनों तक दशहरा उत्सव मनाते हैं. ब्यास नदी के दूसरे छोर पर अंगुली नामक स्थान पर देवता आजीवन नारायण सोयल, सरवन नाग सौर, शुकेली नाग तांदला, जीव नारायण जाना और मलाणा के जमदग्नि ऋषि देवता शामिल हैं. देवता, ब्यास नदी के दूसरी ओर से ही दशहरा उत्सव की सभी परंपराओं का पालन कर रहे हैं.

वीडियो.

मिली जानकारी के अनुसार दशहरा उत्सव में (Specialties of Kullu Dussehra) देवता को नदी पार करके जाना पड़ता है. लेकिन यह देवता नदी पार नहीं करते हैं. ऐसे में देवता के साथ आए लोग दोपहर के समय दशहरा उत्सव देखने जाते हैं और शाम को दशहरा उत्सव देखकर वापस आते हैं. देवता आजीमल नारायण के कारदार केहर सिंह का कहना है कि वह बचपन से इसी परंपरा को निभाते आए हैं. देवता हर साल यहीं से दशहरा मनाते हैं और बाकी सभी परंपराओं का भी पालन किया जाता है. यहां पर देवताओं के सिर्फ निशान लाए जाते हैं और देवता का रथ यहां पर नहीं आता है. जब तक दशहरा समाप्त नहीं होता तब तक यहां पर पांचों देवता विराजमान रहते हैं और श्रद्धालुओं को आशीर्वाद प्रदान करते हैं.

International Kullu Dussehra
फोटो.

वहीं, जिला कुल्लू के लोक संस्कृति लेखक एवं साहित्यकार डॉ. सूरत राम ठाकुर का कहना है कि पुराने समय में नदी पर पुल की व्यवस्था नहीं होती थी. ऐसे में देवता के रथ के साथ हरियानो को नदी पार करने में भी परेशानी आती थी. क्योंकि देवता दरिया पार नहीं करते हैं और मेले में भी कई प्रकार की अशुद्धियां होती हैं. देवताओं को फिर मंदिर जाकर वापस शुद्ध करने की प्रक्रिया को पूरा करना पड़ता है. जिसके चलते यह देवता दशहरा उत्सव के लिए ढालपुर मैदान नहीं पहुंचते हैं और अपने निशान के साथ ही यह ब्यास नदी के दूसरे किनारे पर बैठे रहते हैं. दशहरा उत्सव के छठे दिन देवताओं के फूल को भगवान रघुनाथ के पास हाजरी के लिए लाया जाता है.

International Kullu Dussehra
फोटो.

भगवान रघुनाथ के छड़ी बरदार महेश्वर सिंह का कहना है कि यह परंपरा कई सालों पुरानी है. पहले मलाणा के लोग नदी के दूसरे किनारे खाना भी नहीं खा सकते थे. अब परंपरा में थोड़ा बदलाव हुआ है. लेकिन दशहरा उत्सव के दौरान यह देवता ब्यास नदी के दूसरे किनारे पर ही रहते हैं और वहीं से ही सभी परंपराओं का निर्वाह किया जाता है. देवता के पुजारी चमन लाल का कहना है कि देवता दशहरा उत्सव की सभी परंपराओं का पालन यहीं से करते हैं और यहां पर श्रद्धालुओं की समस्या का भी देवता के द्वारा निपटारा किया जाता है. देवता के दर्शन को हिमाचल प्रदेश के कोने-कोने से लोग यहां पर पहुंचते हैं.

पुजारी कुबेर गौड़ का कहना है कि यहां पर देवता के साथ आए हरियान व श्रद्धालुओं के खाने-पीने की व्यवस्था भी पुरोहित परिवारों के द्वारा की जाती है. यहां पर 7 दिनों तक श्रद्धालु देवता के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं और सालों पुरानी परंपरा का पालन आज भी किया जा रहा है. वहीं, देवता के दर्शनों को पहुंचे श्रद्धालु सावित्री, मोनू का कहना है कि वह देवता के दर्शनों के लिए ब्यास नदी के दूसरे किनारे पर पहुंचते हैं और दोपहर के समय दशहरा उत्सव का भी मजा लेते हैं. देवता की सभी रीति-रिवाजों का पालन ब्यास नदी के दूसरे किनारे पर ही किया जाता है और सालों से यह परंपरा निभाई जा रही है.

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Last Updated :Oct 9, 2022, 5:42 PM IST
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