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Minjar Fair 2022: धूमधाम से हुआ ऐतिहासिक मिंजर मेले का आगाज

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Published : Jul 24, 2022, 7:09 PM IST

ऐतिहासिक मिंजर मेले का आगाज धूमधाम से (Minjar Fair 2022 In Chamba) हुआ. मेले का शुभारंभ राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने किया. नगर परिषद चंबा के कार्यालय से ढोल की थाप पर भव्य शोभायात्रा निकाली गई. जिसेके बाद चंबा के ऐतिहासिक लक्ष्मीनारायण मंदिर और भगवान रघुवीर मंदिर में मिर्जा परिवार की ओर से मिंजर अर्पित की गई.

Minjar Fair 2022 In Chamba
मिंजर मेले का आगाज

चंबा: राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ (Governor Rajendra Vishwanath Arlekar) द्वारा चंबा के ऐतिहासिक चौगान मैदान में ध्वजारोहण के साथ ही अंतरराष्ट्रीय मिंजर मेले का आगाज किया. यह मेला 31 जुलाई तक चलेगा. इससे पहले रविवार सुबह नगर परिषद कार्यालय से एक शोभायात्रा निकली जो लक्ष्मी नारायण मंदिर से होती हुई अखंड चंडी महल पहुंची. इस बीच सबसे पहले मिर्जा परिवार द्वारा बनाई गई जरी के गोटे की मिंजर को भगवान लक्ष्मी नारायण को अर्पित किया गया.

उसके बाद सदर विधायक व अन्य गणमान्य लोगों ने मिलकर अखंड चंडी महल में भगवान रघुवीर को मिंजर अर्पित की. इसके पश्चात शोभा यात्रा ऐतिहासिक चंबा चौगान में पहुंची जहां पर राज्यपाल द्वारा ध्वजारोहण किया गया. स्थानीय विधायक द्वारा राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर को हिमाचली टोपी और शॉल पहनाकर सम्मानित किया गया. मिंजर मेले के दौरान विभिन्न विभागों द्वारा लगाई गई प्रदर्शनियों का भी विधिवत उद्घाटन राज्यपाल द्वारा किया गया. साथ ही खेलकूद प्रतियोगिताओं का भी आगाज किया गया.

ऐतिहासिक मिंजर मेले का आगाज

आपसी प्रेम भाव को दर्शाता है मिंजर मेला: बता दें कि अनेकता में एकता का प्रतीक है चंबा का मिंजर मेला. कहने को तो भाई-बहन के अटूट प्रेम की निशानी भी है मिंजर मेला, लेकिन मुस्लिम परिवार द्वारा सुच्चे गोटे से आकर्षक मिंजर तैयार कर भगवान लक्ष्मीनाथ और रघुवीर भगवान को चढ़ाई जाती है. कुल मिला कर मिंजर मेला भाई-बहन के प्यार के साथ-साथ आपसी प्रेम भाव को भी दर्शाता है.

श्रावण में उत्तरी भारत में नदी के किनारे और झूलों की बहार में मेले लगते हैं. हिमाचल राज्य के पूर्वोत्तर और हिमालय की पश्चिमोत्तर सीमावर्ती भीतरी तराई में स्थित रावी घाटी प्राकृतिक सौंदर्य से रसा-बसा स्थान है और यहां कबिलयाई मूल का चबयाली समुदाय निवास करता है. इस क्षेत्र में आज भी प्रागैतिहासिक कालीन सांस्कृतिक एवं सामाजिक मान्याताओं के दर्शन होते हैं.

श्रावण में चंबा का मिंजर मेला अति महत्वपूर्ण है. यह चंबा की सांस्कृतिक विरासत में शामिल है. सदियों से मनाया जाने वाला मिंजर मेला यहां के जनमानस में रच-बस गया है. रावी नदी के वैभव से जुटने वाला उत्सव श्रावण के रविवार को यह मेला आरंभ होता है, और अगले रविवार को मिंजर का रावी में विसर्जन के साथ ही ये मेला समाप्त हो जाता है.यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था. कुछ विद्वानों का मत है कि मिंजर का कोई धार्मिक स्वरूप नहीं है, बल्कि मिंजर वरूण देवता को अच्छी वर्षा एवं अच्छी फसल के लिए और रावी अथवा इरावती नदी के उफान को शांत करने के लिए ही नदी में मक्की की मिंजर का निर्माण कर प्रवाहित करते हैं. चंबा के अंतर्राष्ट्रीय मिंजर मेले ने जहां हमारे पारंपरिक रीति-रिवाजों को संजोए रखा है. वहीं, हमारी संस्कृति से भी हमें अवगत करवाता है.

Governor Rajendra Vishwanath Arlekar
राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर

अंतर्राष्ट्रीय मिंजर मेला 24 जुलाई से शरू और 31 जुलाई को शाम के समय रावी नदी में मिंजर विसर्जन के बाद खत्म हो जाएगा. समापन अवसर पर मुख्य तौर पर प्रदेश के मुख्यमंत्री शामिल होंगे. मिंजर मेले के दौरान आठ दिन तक रात्रि के समय सांस्कृतिक सन्ध्याओं का भी आयोजन किया जाएगा. दिन के समय चौगान मैदान में खेलकूद प्रतियोगिताओं का भी आयोजन होगा. मिंजर मेले में अलग-अलग विभागों द्वारा प्रदर्शनियां भी लगाई गई हैं.

1200 वर्ष पूर्व राजा साहिल वर्मन के द्वारा चलाए गए मिंजर मेले को अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर की ख्याति प्राप्त है. चंबा का यह सांस्कृतिक मिंजर मेला एक त्योहार की तरह भी मनाया जाता है. इस मेले में सबसे बड़ी बात एक ओर देखने को यह मिलती है कि इस मेले के दौरान बहनें अपने भाईयों को राखी की तरह मिंजर को कमीज के बटन के साथ टांग अपने प्यार का इजहार करती है और अंतिम रविवार को वह मिंजर भाई अपनी कमीज से उतार कर रावी नदी में प्रवाहित कर आने वाले नव वर्ष की शुभ कामनाएं देता है.

क्या कहते हैं मिर्जा परिवार के सदस्य: अंतर्राष्ट्रीय मिंजर मेले की विशेषता यहां ये भी है कि लक्ष्मीनारायण मंदिर और रघुनाथ जी के मंदिर में चढ़ाई जाने वाली पहली मिंजर को मुस्लिम परिवार द्वारा ही तैयार किया जाता है. कश्मीरी मोहल्ला निवासी ऐजाज मिर्जा ने बताया कि उनके पूर्वज मिर्जा शफी बेग जरी (गोटे) के कुशल कारीगर थे. मिर्जा शफी बेग ने अपनी सूझबूझ का परिचय देते हुए धान की असली मिंजर का प्रारूप के रूप में जरी और सोने की तारों से आकर्षक मिंजर तैयार कर राजा पृथ्वी सिंह को भेंट की थी. जिसे देखकर राजा बहुत प्रसन्न हुए. उनके द्वारा बनाई गई सुच्चे गोटे की पहली जरी मिंजर भगवान लक्ष्मीनाथ और रघुवीर भगवान को चढ़ाई गई. तब से लेकर आज तक यह पर परम्परा कायम है.

क्या कहते हैं सदर विधायक पवन नैय्यर: वहीं, स्थानीय विधायक ने जानकारी देते हुए कहा कि आज से 31 जुलाई तक अंतरराष्ट्रीय मिंजर मेले का शुभारंभ हो चुका है. उन्होंने कहा कि रात को सांस्कृतिक संध्याओं का आयोजन होगा और दिन में खेलकूद प्रतियोगिताएं भी होंगी. उन्होंने कहा कि मिंजर मेले का आगाज हमेशा से ही मिर्जा परिवार द्वारा बनाई गई मिंजर को भगवान लक्ष्मी नारायण व भगवान रघुवीर को अर्पित कर होती है.

क्या कहते हैं राज्यपाल: वहीं, राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने (Governor Rajendra Vishwanath Arlekar) लोगों को मिंजर मेले की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि वह एक दिन पहले ही चंबा में पहुंचे हैं और यहां पर कई लोगों से मिले हैं. उन्होंने कहा कि चंबा की एक अपनी अलग ही पहचान है. यहां का खानपान ,रीति रिवाज और यहां की संस्कृति पूरी दुनिया में अपने में अलग ही पहचान बनाए हुए हैं. उन्होंने कहा कि चंबा का रुमाल, चंबा चप्पल जिसे अब जियो टैग भी मिलने वाला है, साथ ही यहां की और भी कलाएं हैं जो पूरी दुनिया में मशहूर हैं और इन्हें बचाकर रखने की भी जरूरत है.

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