औरंगाबादः बिहार के औरंगाबाद में प्लास्टिक बेबी ने जन्म लिया (Plastic Baby Born in Aurangabad) है. बच्चे का जन्म औरंगाबाद सदर अस्पताल में हुआ है. बच्चे का इलाज विशेष नवजात शिशु इकाई में किया जा रहा है. बच्चे को लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर विशेष जेली लगाकर आइसोलेशन में रखा गया है. बता दें कि प्लास्टिक बेबी को कोलोडियन बेबी भी कहते हैं. जन्म लेने वाले 11 लाख बच्चों में से एक कोलोडियन बेबी का जन्म होता है. यह एक जेनेटिक डिसऑर्डर है. यह अपने आप में एक दुर्लभ किस्म का अजब-गजब बच्चा होता है.
बताया जा रहा है कि जन्म के बाद जच्चा-बच्चा दोनों सुरक्षित हैं. मगर चिकित्सकों का कहना है कि यह कब तक जिंदा रह पाएगा, यह नहीं कहा जा सकता है. विशेष नवजात शिशु इकाई (एसएनसीयू) औरंगाबाद के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. दिनेश दुबे ने बताया कि कोलोडियन बेबी का जन्म विश्व की दुर्लभतम बीमारियों में से एक है.
इस बारे में एसएनसीयू औरंगाबाद के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. दिनेश दुबे ने कहा कि कोलोडियन बेबी प्लास्टिक का नहीं होता बल्कि उसके शरीर की खाल प्लास्टिक की तरह होती है जो एक झिल्ली की तरह होती है. कह सकते हैं कि इस रोग में बच्चे के पूरे शरीर पर प्लास्टिक नुमा परत चढ़ी होती है. बच्चे के रोने से अथवा किसी अन्य प्रकार की हलचल से धीरे-धीरे यह परत फटने लगती है. बच्चे को असहनीय दर्द होता है. यदि संक्रमण बढ़ाता है तो बच्चे का जीवन बचा पाना मुश्किल होता है.
बच्चों में यह बीमारी जेनेटिक डिसऑर्डर की वजह से होती है. ऐसा तब होता है जब गर्भ में शिशु का संपूर्ण विकास नहीं हो पाता. डॉ. दिनेश दुबे ने बताया कि बच्चे के पिता के शुक्राणु में दोष (Abnormality in Fathers Sperm) के कारण ऐसे बच्चे का जन्म होता है. यदि किसी को ऐसा बच्चा पहला होता है तो दूसरी बार भी कोलोडियन बेबी होने की संभावना 25 फीसदी तक रहती है. दोबारा गर्भवती होने के तीन महीने बाद जांच करा लें, ताकि कोलोडियन बच्चा पैदा न हो सके. इलाज से शुक्राणु के दोष को दूर किया जा सकता है. विशेषज्ञों के अनुसार यदि गर्भस्थ में ऐसी दिक्कत होती है. माता-पिता को गर्भपात कराने की सलाह दी जाती है.
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