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देश के दिल में बसता है, अंग्रेजी नामों वाला देसी शहर, जानिए रोचक कहानी

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Published : Sep 12, 2021, 12:03 AM IST

आजादी के बाद भी जबलपुर में आज भी बहुत से मोहल्ले ऐसे हैं, जो अंग्रेजों के नाम पर हैं. हालांकि कुछ के नाम बदले गए हैं, लेकिन आम बोल चाल में लोग उन्हें अंग्रेजों के नाम से बुलाने में ज्यादा सहज महसूस करते हैं. पढ़िए ईटीवी भारत की यह खास रिपोर्ट..

जबलपुर
जबलपुर

जबलपुर : अंग्रेजों के जमाने में जबलपुर को खासा महत्व दिया जाता था. अंग्रेजों ने जबलपुर को पूरे इलाके की राजधानी बना कर रखा हुआ था. शहर के केंटोनमेंट (Jabalpur Cantonment Area) इलाके को तो अंग्रेजों ने विकसित किया ही था, लेकिन शहर के रहवासी इलाके के बड़ा भूभाग भी अंग्रेजों द्वारा विकसित किया गया था. शहर के कई इलाकों के नाम बदल दिए गए हैं, लेकिन लोग इन्हें सदियों पुराने अंग्रेजों के दिए नाम से ही जानते हैं. आज भी शहर के बड़े हिस्से के चौक चौराहों के नाम सुनकर ऐसा एहसास होता है कि आप किसी इंग्लिश कंट्री के शहर में हैं. शहर के हर नाम के साथ कुछ रोचक इतिहास भी जुड़ा हुआ है. आएये शहर के इन्हीं नामों के इतिहास पर नजर डालते हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट.

लॉर्ड गंज
यह इलाका शहर का सबसे व्यस्त बाजार का इलाका कहलाता है. हालांकि, किसी जमाने में यहां बड़ा मैदान रहा होगा. 1833 के आस-पास भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक जबलपुर आए थे. उनका तंबू जहां लगाया गया था, उस जगह को बाद में लॉर्ड गंज कहा गया. इस घटना के पौने दो सौ साल के लगभग हो चुके हैं, लेकिन अभी भी इस जगह का नाम लॉर्ड गंज ही है. हालांकि, यहां पर अब अंग्रेजों से जुड़ी कोई भी चीज जिंदा नहीं है, लेकिन नाम आज भी उनका ही है.

नेपियर टॉउन
कुछ ऐसा ही किस्सा नेपियर टाउन के साथ भी जुड़ा हुआ है. मिस्टर नेपियर जबलपुर में कमिश्नर हुआ करते थे. उसी जमाने में एक बड़ी कॉलोनी इस इलाके में बनाई गई थी. इसमें ज्यादातर अंग्रेज अफसर या फिर उनकी फैक्ट्रियों में काम करने वाले कर्मचारी रहा करते थे. यह बहुत व्यवस्थित कॉलोनी थी. आज इस जगह को नेपियर टाउन के नाम से जाना जाता है.

राइट टॉउन
जबलपुर के राजा गोकुलदास की परफेक्ट पॉटरी नाम की एक फैक्ट्री थी. इसमें चीनी मिट्टी के पाइप बनाए जाते थे. इसी फैक्ट्री के मैनेजर एक अंग्रेज अफसर आर्थर राइट हुआ करते थे. उन्होंने नेपियर टॉउन के ठीक बाजू में एक दूसरी कॉलोनी विकसित की थी, जिसे राइट टॉउन का नाम दिया गया. आज भी यह क्षेत्र राइट टॉउन के नाम से ही जाना जाता है.

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विक्टोरिया हॉस्पिटल
लेडी एल्गिन हॉस्पिटल और विक्टोरिया हॉस्पिटल जबलपुर की दो महत्वपूर्ण सरकारी अस्पताल हैं. हालांकि इनके नाम बदल दिए गए हैं, लेकिन आम बोलचाल की भाषा में आज भी विक्टोरिया जबलपुर में सरकारी अस्पताल का नाम है. पहले विश्व युद्ध के बाद जबलपुर में एक महल नुमा इमारत बनाई गई थी, जिसमें स्वास्थ्य विभाग का कार्यालय शुरू किया गया था. तब से आज तक इसी इमारत से ही जबलपुर में स्वास्थ्य की सेवाएं मूर्त रूप लेती रही हैं. आज भी जबलपुर के चीफ मेडिकल ऑफिसर इसी इमारत में बैठते हैं.

ब्लूम चौक
जबलपुर में एक मिस्टर ब्लूम नाम के इंजीनियर हुआ करते थे, जिन्होंने शहर की कई सड़कों के नक्शे बनाए थे. जबलपुर का भंवरताल गार्डन भी उसी नक्शे के बाद बन पाया था. हालांकि ब्लूम चौक पर कहीं पर भी कोई साइन बोर्ड नहीं है, लेकिन शहर की आम जनता उस चौराहे को मिस्टर ब्लूम के नाम से ही जानती है.

मुकदम गंज
मिस्टर मैकढम ने जबलपुर के एक बाजार का निर्माण करवाया था, जहां लोगों को आम जरूरत की चीजें मिला करती थीं. बाद में इस जगह को मुकदम गंज के नाम से जाना जाने लगा. मिस्टर मैकढम जबलपुर के डिप्टी कमिश्नर हुआ करते थे.

इसी तरीके से निवाड गंज (Niwar Ganj), जॉन्स गंज (Johns Ganj), पेंटी नाका (Penty Naka), गोरा बाजार (Gora Bazar) और रसल चौक (Russel Chowk) जैसे कई नाम हैं, जिनका इतिहास अंग्रेजों से जुड़े हुआ है. इतिहासकार आनंद राणा बताते हैं कि जबलपुर को गांव से शहर बनाने में अंग्रेजों का बड़ा योगदान रहा है.

जबलपुर में बदले गए कई नाम
जबलपुर में इन नामों को बदलने की भी कोशिश की गई. ब्लूम चौक को शास्त्री ब्रिज के नाम से बदला गया. राइट टॉउन दयानंद सरस्वती (Dayanand Saraswati) के नाम पर, लेकिन प्रशासन की कोशिश के बाद भी लोग अंग्रेजी नामों के प्रति ज्यादा सहज महसूस करते हैं. हालांकि अंग्रेजों ने भारतीयों पर जो अत्याचार किए थे, उसके बाद उनके नामों को जिंदा रखना आजादी पर सवाल है.

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