Positive Bharat Podcast: पेड़ों को बचाने के लिए कुल्हाड़ी के सामने खड़ी हो गई थी गौरा देवी...
पर्यावरण, जंगल या पेड़ बचाने की बातें तो हर कोई करता है, लेकिन उत्तराखंड के चमोली जिले के रैणी गांव की गौरा देवी ने एक अलग अंदाज 'चिपको आंदोलन' के जरिए पर्यावरण और पेड़ों का संरक्षण किया था. दरअसल 1970 के दशक में उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में जंगलों की अंधाधुंध कटाई का सिलसिला जारी था. लगातार हरे-भरे पेड़ों पर अवैध कुल्हाड़ी चल रही थी. तब रैणी गांव की गौरा देवी ने अपने जंगल, अपने पेड़ों को बचाने की ठानी और जंगलों की इस अवैध कटाई को रोकने के लिए चिपको आंदोलन चलाया. गौरा देवी की अगुवाई में इस आंदोलन को देखकर पेड़ काटने वालों को कदम पीछे खींचने पड़े और इस चिपको आंदोलन की धमक दिल्ली तक भी पहुंच गई और केंद्र सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम बनाया था. आज ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन दुनिया की सबसे बड़ी चिंता में शुमार है. दुनियाभर के देश इस मुश्किल से पार पाने के लिए अरबों रुपये पानी की तरह बहा रहे हैं. दावे और वादे किए जाते हैं, लेकिन महज 5वीं पास गौरा देवी और उनके साथियों जैसा जज्बा कहीं नहीं दिखता. पर्यावरण के प्रति उनका लगाव और जंगल बचाने के लिए उनका जज्बा बहुत कुछ सिखाता है...गौरा देवी का रैणी गांव आज भी अपने जंगल बचाने के लिए उसी जोश और जुनून के साथ डटा हुआ है और पर्यावरण बचाने के लिए इसी की जरूरत है.