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पिता करते हैं राजमिस्त्री का काम, बेटी अब संभालेगी हॉकी टीम की कमान

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Published : Apr 3, 2023, 6:51 PM IST

Updated : Apr 3, 2023, 10:52 PM IST

junior women hockey team captain preeti from sonipat hocky player success story
हरियाणा की बेटी जूनियर महिला हॉकी टीम की हैं कप्तान

सोनीपत के गरीब परिवार में पली बड़ी प्रीति ने अपने संघर्ष से दूसरों के लिए भी प्रेरणा का संदेश दिया है. प्रीति के परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण भी प्रीति ने कभी हार नहीं मानी. गरीब परिवार की इस बेटी ने अपने संघर्ष से सफलता हासिल की है.

जूनियर महिला हॉकी टीम की कप्तान बनने पर कोच को प्रीति पर गर्व.

सोनीपत: हरियाणा के खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रहे हैं, कुश्ती में रवि दहिया बजरंग पुनिया तो जेवलिन थ्रो में नीरज चोपड़ा और अन्य खेलों में हरियाणा के खिलाड़ी विदेशी धरती पर तिरंगे की आन-बान-शान के लिए दिन रात मेहनत कर रहे हैं. हम आपको हरियाणा के सोनीपत जिले की रहने वाली एक ऐसी खिलाड़ी से मिलवाने जा रहे हैं, जिसकी कहानी सुनकर आपकी आंखों से आंसू आ जाएंगे. आप इस बेटी पर गर्व करेंगे.

जूनियर हॉकी टीम की कप्तान प्रीति का सफरनामा: सोनीपत की रहने वाली बेटी और महिला जूनियर हॉकी टीम की कप्तान प्रीति के संघर्ष की कहानी जबरदस्त जुनून से भरी है. महिला जूनियर हॉकी टीम की कप्तान प्रीति का संघर्ष वाकई काबिल-ए-तारीफ है. प्रीति अपने माता पिता की इकलौती बेटी है और उसके घर की आर्थिक स्थिति की बात करें, तो प्रीति के पिता शमशेर राजमिस्त्री का काम करते हैं. मां ने भी किसानों के खेतों में मजदूरी की है. प्रीति के परिवार के हालात आर्थिक तौर पर भले ही कमजोर हों, लेकिन प्रीति के हौसले उतने ही दमदार हैं.

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महिला जूनियर हॉकी टीम की कप्तान प्रीति.

उधार पर हॉकी स्टिक लेकर सपने की ओर पहला कदम: दरअसल, प्रीति जब 10 साल की हुई तो उसके पड़ोस की रहने वाली लड़कियां सोनीपत के ओल्ड इंडस्ट्रियल एरिया में बने हॉकी ग्राउंड में खेलने जाती थीं. वहीं, से प्रीति को हॉकी में दिलचस्पी बढ़ गई. उसने परिवार को बिन बताए आपने हाथों में उधार ली गई हॉकी स्टिक थाम ली. जिसके बाद कभी भी प्रीति ने हाथ से हॉकी स्टिक नीचे नहीं रखी. आज प्रीति देश की महिला जूनियर हॉकी टीम की कप्तान है और उसके संघर्ष की कहानी बाकि युवा पीढ़ी के लिए मिसाल बन रही है.

मुश्किलों के आगे बिखेरे सफलता के रंग: प्रीति के पिता शमशेर सिंह बताते हैं कि, वह नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी खेलने के लिए बाहर जाए. लेकिन, प्रीति छुपकर भी बाहर खेलने गई है. वह घर वापस आकर ही बताती थी कि वह ग्राउंड पर खेलने के लिए गई थी. लेकिन, जिस समय प्रीति ने खेलना शुरू किया, तब उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी. जिसके कारण वह प्रीति के खानपान का भी अच्छे से ध्यान नहीं रख पाते थे. लेकिन, प्रीति में हिम्मत नहीं हारी और आज उनकी मेहनत रंग लाई. उनके परिवार के लिए गर्व की बात है कि आज उसका चयन जूनियर महिला हॉकी टीम की कप्तान के रूप में हुआ है.

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उधार पर हॉकी स्टिक लेकर की थी हॉकी की शुरुआत.

कोच को प्रीति पर गर्व: प्रीति की कोच व पूर्व महिला हॉकी टीम की कप्तान प्रीतम सिवाच का कहना है कि, हमारे ग्राउंड की बेटियां जब अच्छा खेलते हुए टीम में सेलेक्ट होती हैं. तो हमें बहुत खुशी होती है. वहीं, ग्राउंड की तीन खिलाड़ियों का चयन जूनियर हॉकी टीम में हुआ है. जिनमें से प्रीति जूनियर हॉकी टीम की कप्तान बनी है. वह भी इसी ग्राउंड पर खेलती हुई हॉकी में सेलेक्ट हुई हैं.

मेहनत के आगे बेबस कठिनाइयां: अगर बात मेहनत की हो तो लड़कियां यहां पर बहुत ज्यादा मेहनत करती हैं. 2 से 3 घंटे सुबह और 2 से 3 घंटे शाम को मेहनत करवाई जाती है. प्रीति महज 10 से 12 साल की आयु में ही खेलना शुरू किया था. जब वह आई तो उसके घर के हालात इतने ज्यादा ठीक नहीं थे. लेकिन, उसने हिम्मत नहीं हारी और वह लगातार खेलती रही. प्रीति की मेहनत का नतीजा है कि आज उसका चयन जूनियर हॉकी टीम में बतौर कप्तान हुआ है.

मां ने बाहर जाने से मना किया तो बोला झूठ: जूनियर महिला हॉकी टीम की कप्तान प्रीति अपने जीवन के संघर्ष की कहानी बताते हुए कहती हैं, 'बचपन में मां नहीं चाहती थीं, कि वह खेलने के लिए बाहर जाए. क्योंकि वह अक्सर कहती थीं कि बेटियां घर पर ही रहे तो अच्छा है. लेकिन अपने मां-पापा से झूठ बोलकर मैं ग्राउंड पर खेलने के लिए जाती थी. मुझे बचपन से ही खेलने का शौक था.'

बुलंद हौसलों से हार गई आर्थिक तंगी: जब उसके आस-पड़ोस के बच्चे ग्राउंड पर खेलने के लिए जाते थे, तो वह भी उनके साथ छुपकर खेलने आ जाती थी. वहीं, प्रीति बताती हैं कि जिस समय वह खेलने ग्राउंड पर आती थी. उस समय घर के हालात बहुत माली थे. खाने तक के पैसे नहीं थे. जब खाने तक के पैसे घर पर नहीं होते थे तो खेलने में प्रयोग होने वाली चीजें जैसे जूते, हॉकी स्टिक और ड्रेस का मैनेजमेंट कैसे होता होगा ये बड़ा सवाल है. तो प्रीति ने कहा कि उसकी कोच ने उसका बहुत ज्यादा साथ दिया है और उसके परिवार की हिम्मत से उसे खेलने का हौसला मिलता था.

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आगे भी संघर्ष जारी: प्रीति के परिवार ने दिन रात मेहनत की और आज परिवार की मेहनत की वजह से आज इतनी आगे पहुंची है. प्रीती अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता और अपनी कोच प्रीतम सिवाच को देती हैं. प्रीति का सपना है कि वो देश के लिए ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतकर देश का नाम विदेश की धरती पर चमकाना चाहती हैं. इसके लिए प्रीति का अथक प्रयास भी लगातार जारी है. प्रीति का कहना है कि वो आगे भी खेलने के लिए अभ्यास करती रहेंगी और अभी वो जूनियर टीम में हैं और ज्यादा मेहनत करके वो सीनियर टीम में भी खेलेंगी और देश का नाम रोशन करेगी.

Last Updated :Apr 3, 2023, 10:52 PM IST
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