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दिवाली 2023: बदलते दौर के साथ शिक्षित कुम्हार परिवार ने बदला काम करने का पैटर्न, विदेशों में भी है मिट्टी के बर्तनों की मांग

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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Nov 7, 2023, 9:56 AM IST

Diwali 2023 Panipat बदलते समय के साथ अगर काम करने के तरीके में कुछ बदलाव किया जाए तो परिणाम भी बेहतर आता है. इसे पानीपत के कुम्हार ने सच साबित कर दिया है. पानीपत में पढ़ा-लिखा कुम्हार परिवार ग्राहकों की डिमांड के अनुसार मिट्टी के दीये और बर्तन तैयार कर रहा है. विदेशों में भी मिट्टी के बर्तनों की भारी मांग है.

Panipat Educated kumhar family Diwali 2023 Panipat
पानीपत में शिक्षित कुम्हार परिवार

पानीपत में शिक्षित कुम्हार परिवार के दीये और बर्तनों की भारी मांग.

पानीपत: दिवाली का त्योहार आने के साथ लोग घर को रंग-बिरंगी लाइट से सजाना शुरू कर देते हैं. आज के समय में कई प्रकार के सजावटी सामान और रंग बिरंगी लाइटों की चकाचौंध ने मिट्टी के दीये चमक भले ही कुछ कम कर दी हो, लेकिन इन दिनों कुम्हार भी अपने इस कला को ग्राहकों के मुताबिक ढाल रहे हैं. फैंसी लाइटों के रोजाना मॉडल देखते हुए अब कुम्हार भी उसी तरह से ही मिट्टी के बर्तन और चकाचौंध करने वाले दीये बनाने लगे हैं. इस काम में पानीपत के शिक्षित कुम्हार परिवार को महारत हासिल है.

पानीपत का पढ़ा-लिखा कुम्हार परिवार, एक से बढ़कर एक कलाकार: कहते हैं आवश्यकता आविष्कार की जननी है. पानीपत के मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार पिरवार ने इस कहावत को सच कर दिखाया है. मिट्टी के बर्तन बनाने वाले यह परिवार कई पुश्तों से यही काम करता आ रहा है. इतना ही नहीं इस परिवार द्वारा बनाए गए मिट्टी के बर्तन और अनेकों प्रकार की आइटम विदेश में भी एक्सपोर्ट हो रही है. पहले अन्य कुम्हारों की तरह यह परिवार भी मिट्टी के दीये और मटके आदि बनाया करता था. धीरे-धीरे इनका चलन कम होता गया और उनका कार्य लुप्त होने की कगार पर आ गया. बावजूद इसके पढ़े-लिखे कर्मचंद ने हार नहीं मानी और धीरे-धीरे कस्टमर की मांग के अनुसार अपने काम को ढलते चले गए. कर्मचंद और उनके परिवार सदस्यों ने हर दिन नई-नई कला से सब का मन मोह लिया.

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पानीपत में शिक्षित कुम्हार परिवार ने बदला काम करने का पैटर्न.

परिवार को कई बार किया जा चुका है सम्मानित: फाइन आर्ट को लेकर राज्य सरकार द्वारा इस परिवार को 24 बार सम्मानित किया जा चुका है. वहीं, केंद्र सरकार द्वारा भी नेशनल अवार्ड से 2 बार नवाजा जा चुका है. इस परिवार का हर एक छोटा बड़ा सदस्य मिट्टी की कला में निपुण है.

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परिवार का हर एक सदस्य मिट्टी की कला में निपुण.

ऐसे मिली शोहरत: कर्मचंद कहते हैं 'पहले अपने पारंपरिक कार्य मिट्टी के बर्तन और दीये बनाने का ही कार्य करते थे. धीरे-धीरे काम खत्म होने लगा. फैंसी लाइटों ने दिये की चमक को फीका कर दिया लेकिन ग्राहक ने ही हमें बताया कि उनकी क्या पसंद है और वह क्या चाहते हैं. ग्राहक की डिमांड को घर आकर एक कागज पर डिजाइन कर देखता था. अगले दिन फिर उस डिजाइन को मिट्टी से बनाने की कोशिश करते धीरे-धीरे काम में महारत हासिल होती चली गई. पूरे देश भर में हमारे फैंसी आइटम को पसंद किया जाने लगा. रसोई के हर बर्तन से लेकर फैंसी दीये, फाउंटेन और विदेशों में जाने वाले बर्तन बनाते हैं. पिछली बार एक कंपनी से ऑर्डर मिला था, जिसमें हज पर जाने वाले लोगों के लिए मिट्टी का बर्तन तैयार करना था, जिसमें वह पवित्र जल भरकर ला सकें.'

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विदेशों में भी है मिट्टी के बर्तनों की मांग.

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कर्मचंद के साथ कार्य करते हैं 25-30 लोग: कर्मचंद ने बताया कि उनके पिता को भी एक मानक डिग्री से हरियाणा सरकार सम्मानित कर चुकी है. उनके पास इस वक्त लगभग 25 से 30 लोग कार्य करते हैं. कर्मचंद ने बताया कि उनका छोटा भाई धान की पराली से भी पेंटिंग बनाने का कार्य करता है. उसे भी हरियाणा सरकार फाइन आर्ट्स पुरस्कार से सम्मानित कर चुकी है. कर्मचंद ने शोभा पोर्ट्री के नाम से अपनी एक फॉर्म बनाई है, जिसका एमएसएमई के तहत रजिस्ट्रेशन करवाया है.

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एक से बढ़कर एक दीये बनाते हैं कर्मचंद.

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