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गुरनाम चढूनी ने पंजाब चुनाव में उतारे उम्मीदवार, करनाल में पदाधिकारियों ने तोड़ा नाता, जानें क्या बोले किसान

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Published : Feb 14, 2022, 7:44 PM IST

farmer reaction on Gurnam Chaduni Political Party
farmer reaction on Gurnam Chaduni Political Party

किसान आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी के राजनीति में सक्रिय होने और पंजाब चुनाव में उम्मीदवार उतारने के बाद करनाल में कई किसान यूनियन पदाधिकारियों ने इस्तीफों की झड़ी लगा दी है. जिसे लेकर ईटीवी भारत ने कई किसान नेताओं (farmer reaction on Gurnam Chaduni Political Party`) से बात की.

करनाल: हाल ही में स्थगित हुए देश के सबसे बड़े आंदोलन के बाद किसान संगठनों में दरार पड़ना शुरू हो गया है. जिसके चलते कई किसान पदाधिकारियों ने अब किसान संगठनों से नाता तोड़ना शुरू कर दिया है. दरअसल हरियाणा में किसान यूनियन का मुख्य चेहरा रहने वाले भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष गुरनाम सिंह ने किसान आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी. वहीं कई ऐसे सैकड़ों पदाधिकारी थे, जिन्होंने उनका साथ देकर किसान आंदोलन को सफल बनाया. जिसमें करनाल के किसान यूनियन के पदाधिकारियों का अहम रोल रहा है.

वहीं अब इन किसान संगठनों में दरार साफ झलकने लग गई है. जब से गुरनाम सिंह ने अपनी अलग से राजनीतिक पार्टी बनाकर पंजाब चुनाव में अपने उम्मीदवार चुनावी रण में उतारे हैं. उसके बाद से ही हरियाणा में गुरनाम सिंह का विरोध होना शुरू हो गया है. जिसकी शुरूआत सबसे पहले करनाल से भारतीय किसान यूनियन के पदाधिकारियों ने इस्तीफा देकर गुरनाम सिंह से अलग होकर की. गुरनाम सिंह का अपनी पार्टी बनाकर चुनाव लड़ने और यूनियन के पदाधिकारियों द्वारा इस्तीफा देने को लेकर ईटीवी भारत ने करनाल के किसानों (farmer reaction on Gurnam Chaduni Political Party) से बात की.

गुरनाम चढूनी ने पंजाब चुनाव में उतारे उम्मीदवार, करनाल में पदाधिकारियों ने तोड़ा नाता, जानें क्या बोले किसान

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ईटीवी भारत से बात करते हुए करनाल के बुजुर्ग किसान ने कहा कि गुरनाम सिंह ने अच्छा नहीं किया. क्योंकि किसान यूनियन में होते तो किसानों की भलाई की काम करते, लेकिन राजनीति में जाने के बाद यह किसान नेता राजनीतिक लोग हो जाते हैं, जो अपने स्वार्थ के काम करते हैं और किसानों को भूल जाते हैं. वहीं एक अन्य बुजुर्ग किसान फुला राम ने कहा कि वह खुद काफी समय तक भारतीय किसान यूनियन में रहे हैं और कई आंदोलनों में उन्होंने भाग लिया है. उन्होंने अपने शरीर पर लाठियां तक खाई है, लेकिन कभी भी उनकी सुनवाई नहीं हुई और उन्होंने गुरनाम सिंह के द्वारा नई पार्टी बनाने पर उनका समर्थन दिया है.

वहीं एक अन्य किसान अमृत शर्मा ने कहा कि जब कोई भी किसान नेता किसान यूनियन में होता है, तभी वह किसानों की आवाज उठा सकता है. राजनीति में जाने के बाद उसके रास्ते बदल जाते हैं और वह अपने किसान साथियों को भूल जाते हैं. दूसरे नेताओं की तरह ही वह विवाद में किसानों का शोषण ही करते हैं. ऐसे में हम गुरनाम सिंह के द्वारा अलग पार्टी बनाने का बिल्कुल समर्थन नहीं करते.

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एक युवा किसान संजीव कुमार ने कहा कि हर किसी को अपनी पार्टी बनाने और चुनाव लड़ने का अधिकार है, लेकिन किसान आंदोलन में गुरनाम सिंह हरियाणा ही नहीं भारत के मुख्य किसान नेताओं में शुमार थे. ऐसे में कहीं ना कहीं राजनीति में आने के बाद वह दूसरी राह पर चले गए हैं और उन्होंने किसानों के जरिए जो अपनी पैठ बनाई थी, उसको अपनी राजनीति में अपना रहे हैं.

गौरतलब है कि भारत में ऐसे कई किसान नेता है, जो किसान आंदोलन में बढ़-चढ़कर आगे रहे और आंदोलन खत्म होने के बाद उन्होंने या तो अपनी राजनीतिक पार्टी बना ली या किसी राजनीतिक पार्टी में शामिल हो गए. जिससे कहीं ना कहीं यह लोग किसानों को एक जरिया बनाकर खुद राजनीति में जाना चाहते थे. गुरनाम सिंह चढूनी के राजनीति में उतरने और पंजाब चुनाव में अपने उम्मीवारों को उतारने को लेकर कई किसानों ने इस कदम को गलत बताया है और कहा कि वह भी कुछ समय बाद बदल जाएंगे और किसानों को भूल जाएंगे.

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