बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए क्या कांग्रेस और इनेलो होंगे एक साथ? जानें ताजा राजनीतिक हालात

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Published : Jan 18, 2023, 7:54 AM IST

bhupinder hooda op chautala

हरियाणा के राजनीतिक दलों ने साल 2024 में होने वाले विधानसभा चुनाव (haryana assembly election 2024) की तैयारियां तेज कर दी हैं. सूबे के राजनीतिक दंगल में धुरविरोधी माने जाने वाले भूपेंद्र हुड्डा और ओपी चौटाला की मुलाकात ने सियासी सरगरमी को और बढ़ा दिया है.

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रोहतक में एक समारोह में भूपेंद्र हुड्डा, ओपी चौटाला और बीरेंद्र सिंह एक साथ दिखाई दिए थे.

चंडीगढ़: साल 2024 में लोकसभा चुनाव होना है. वहीं हरियाणा में भी साल 2024 के अंत से पहले विधानसभा चुनाव होने हैं. इन चुनाव को लेकर प्रदेश की सियासत अभी से गरमाने लग गई है. ऐसे में अब धुर विरोधी भी एक साथ बातचीत करते नजर आ रहे हैं. जिसकी चर्चा सियासी गलियारों में होने लगी है. दरअसल नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा और पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला एक सामाजिक कार्यक्रम में बातचीत करते दिखाई दिए. बातचीत करना कोई अनोखी बात नहीं है, लेकिन ओम प्रकाश चौटाला जिस जेबीटी घोटाले में तिहाड़ जेल में लंबे वक्त तक रहे. उनको सजा पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के कार्यकाल में हुई थी.

ओपी चौटाला और भूपेंद्र हुड्डा की मुलाकात के मायने: माना जाता है कि इसकी वजह से काफी लंबे समय से ये दोनों नेता एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते थे. ऐसे में अब दोनों की बातचीत होने से कयास लगाए जा रहे हैं कि आने वाले समय में हरियाणा में राजनीति किसी भी करवट बैठ सकती है. बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला कह चुके हैं कि बीजेपी सरकार का पतन स्वभाविक है. कांग्रेस पार्टी के साथ जाने को लेकर उन्होंने कहा कि हमारा किसी से द्वेष नहीं है, हम मौजूदा शासन के खिलाफ हैं. यानी ये संकेत कहीं ना कहीं दोनों दलों के बीच पक रही नई सियासी खिचड़ी को लेकर भी हो सकता है.

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बीजेपी नेता बीरेंद्र सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला

क्या कांग्रेस इनेलो का होगा गठबंधन? कुछ ऐसे ही संकेत दोनों दलों के तालमेल को लेकर इनेलो के प्रदेश अध्यक्ष नफे सिंह राठी भी कुछ दिनों पहले दे चुके हैं. एक तरफ कांग्रेस हरियाणा में सत्ता वापसी के लिए जी जान लगा रही है, तो दूसरी तरफ लंबे वक्त से सत्ता से दूर रहने वाली इनेलो भी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती. इंडियन नेशनल लोकदल कभी प्रदेश की मजबूत राजनीतिक पार्टी थी. वो सत्ता में भी रही, लेकिन आज उसकी पार्टी में एक ही विधायक है. वहीं प्रदेश में 2014 और 2019 के विधानसभा चुनावों के नतीजों के बाद बीजेपी दूसरी बार हरियाणा की सत्ता पर शासन कर रही है.

बीजेपी के लिए कितना आसान? कांग्रेस और इनेलो, बीजेपी को किसी भी तरह तीसरी बार हरियाणा की सत्ता में आने से रोकने के लिए अभी से पूरा दम लगा रहे हैं. राजनीति भाषा में कहा जाए तो दोनों पार्टियों का निशाना बीजेपी है. ऐसे में भूपेंद्र सिंह हुड्डा और ओम प्रकाश चौटाला की बेशक बातचीत राजनीतिक ना हुई हो, लेकिन ये भी दोनों नेताओं के बीच जमी बर्फ को पिघलने का काम तो कर ही सकती है. इस मुलाकात को लेकर राजनीतिक मामलों के जानकार प्रोफेसर गुरमीत सिंह कहते हैं कि 2024 के विधानसभा और लोकसभा चुनाव हरियाणा की विपक्षी पार्टियों के लिए अहम है, क्योंकि बीजेपी पिछले दो कार्यकाल से सत्ता में है.

haryana assembly election 2024
विशेषज्ञों के मुताबिक बीजेपी को हराने के लिए विपक्ष को एकजुट होना पड़ेगा.

इसमें बीजेपी को सत्ता से हटाना है तो उसके लिए सभी विपक्षी दलों को पूरी ताकत के साथ चुनावी दंगल में उतरना होगा. जब सभी का लक्ष्य एक है तो फिर नेता पुरानी कड़वाहट को भुलाकर एक साथ भी खड़े हो जाएं तो कोई बड़ी बात नहीं है. उन्होंने कहा कि अभी इसको लेकर कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी, क्योंकि अभी चुनाव के लिए समय है. वहीं कांग्रेस पार्टी ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो पद यात्रा के अंतिम दिन के लिए सभी विपक्षी दलों को कश्मीर आने का न्योता देने की बात कही है. ऐसे में अगर इंडियन नेशनल लोकदल को भी इसका निमंत्रण आता है, तो वो क्या करेगी?

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इसको लेकर इंडियन नेशनल लोकदल के विधायक अभय सिंह चौटाला कह चुके हैं कि अगर न्योता आता है, तो इस पर विचार किया जाएगा. इन दोनों संदर्भों को देखा जाए तो कहीं ना कहीं कांग्रेस और इनेलो के बीच की बर्फ पिघलती हुई दिखाई देती है. इस मुद्दे पर राजनीतिक मामलों की जानकार प्रोफेसर गुरमीत सिंह ने कहा कि कांग्रेस पार्टी सभी विपक्षी दलों को एक मंच लाने के लिए लगातार इसलिए प्रयास कर रही है, क्योंकि उसे किसी भी हालत में अगले चुनाव में बीजेपी को मात देनी है. हालांकि वो इसमें कितनी सफल होती है. ये तो 2024 के लोकसभा चुनाव ही बताएंगे. उन्होंने कहा कि जहां तक हरियाणा में कांग्रेस और इनेलो के एक साथ आने की बात है. तो दोनों दलों का लक्ष्य हरियाणा की सत्ता में वापसी है, ऐसी में अगर दोनों मिलकर चुनाव मैदान में उतरे तो ये सबके लिए चौंकाने वाला जरूर होगा. राजनीति में कुछ भी संभव है.

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