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बीजेपी का एंटी दलित पार्टी होने का चेहरा हुआ बेनकाब: शैलजा

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Published : Feb 14, 2020, 7:35 PM IST

kumari selja on reservation
kumari selja on reservation

सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी ओबीसी के आरक्षण को लेकर जो फैसला लिया है उससे बीजेपी का एंटी दलित पार्टी होने का चेहरा बेनकाब हो गया है. ये बात कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा व कांग्रेस मीडिया सेल के चेयरमैन रणदीप सिंह सुरजेवाला ने चंडीगढ़ में शुक्रवार को पत्रकारवार्ता के दौरान कही.

चंडीगढ़: इस मौके पर कुमारी शैलजा ने कहा कि हमेशा दलित के खिलाफ बीजेपी और आरएसएस ने आवाज उठाई है और दलित के खिलाफ काम किया है. उन्होंने कहा कि 2019 में उत्तराखंड में बीजेपी की सरकार थी और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में जो दलील दी है वह फैसले में कोर्ट ने कोट भी किया है. संविधान के मुताबिक दलित पिछड़ों को आरक्षण मिलना चाहिए.

शैलजा ने कहा कि 72 साल में दलितों पर सबसे बड़ा हमला मोदी सरकार ने उत्तराखंड की बीजेपी सरकार को आधार बनाकर किया है. सरकारी नौकरी में आरक्षण का मौलिक अधिकार नहीं है ऐसा उत्तराखंड सरकार ने अपनी दलील में कहा है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी मान लिया है. जब इस विषय के खिलाफ राहुल गांधी ने विरोध किया तो वहां उनके पुतले तक जलवाए गए.

सुरजेवाला ने सवाल उठाते हुए कहा कि बीजेपी किस हिंदुत्व की बात करती है हम जानना चाहते हैं ? जात-पात का हिंदुत्व क्यों लाना चाहती है बीजेपी ? कांग्रेस 16 फरवरी को इस मुद्दे को लेकर हरियाणा के हर जिला हेडक्वार्टर पर धरना प्रदर्शन करेगी और महामहिम राष्ट्रपति के नाम सभी जिलों पर ज्ञापन सौंपते जाएंगे.

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा ने चंडीगढ़ में शुक्रवार को पत्रकारवार्ता की.

'खट्टर सरकार में हर साल 20 फीसदी अत्याचार दलितों पर बढ़ें हैं'

सुरजेवाला ने कहा कि पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि आरक्षण पर राजनीति हो रही है इस पर विचार होना चाहिए. कांग्रेस के दौरान जनसंख्या के आधार पर बजट में दलितों के लिए बजट लाया जाता था जिसे मोदी सरकार ने खत्म कर दिया है. हम मांग करते हैं कि उत्तराखंड सरकार को बर्खास्त किया जाए और प्रधानमंत्री इसके लिए जनता से माफी मांगे. दलितों पर इस वक्त बेहिसाब हिंसा हो रही है. खट्टर सरकार में हर साल 20 फीसदी अत्याचार दलितों पर बढ़ें हैं. यह एनआरसीबी की रिपोर्ट के आंकड़े दर्शाते हैं.

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गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने बीते शुक्रवार नौकरी और प्रमोशन में आरक्षण पर फैसला सुनाते हुए कहा कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है. शीर्ष अदालत ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में इस बात का जिक्र किया कि सरकारी नौकरियों में पदोन्नति के लिए कोटा और आरक्षण कोई मौलिक अधिकार नहीं है. कोर्ट ने कहा कि राज्यों को कोटा प्रदान करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है और राज्यों को सार्वजनिक सेवा में कुछ समुदायों के प्रतिनिधित्व में असंतुलन दिखाए बिना ऐसे प्रावधान करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है.

बता दें कि यह मामला उत्तराखंड सरकार के लोक निर्माण विभाग में सहायक अभियंता (सिविल) पदों पर पदोन्नति में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदाय के सदस्यों के लिए आरक्षण पर अपील पर दिए गए एक फैसले से जुड़ा है. साल 2018 में पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने भी कहा था कि 'क्रीमी लेयर' को सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकता है. पिछले साल दिसंबर में केंद्र सरकार ने 7 न्यायाधीशों वाली पीठ से इसकी समीक्षा करने का अनुरोध किया था. इस मामले को लेकर अब राजनीति तेज हो गई है.

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