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जज्बे को सलाम : 6 साल की उम्र में चेचक ने छीन ली आंखें, अब दूसरों की जिंदगी में उजाला ला रहे मुरितराम

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Published : Sep 5, 2021, 3:13 AM IST

बचपन में चेचक होने की वजह से दोनों आंखें गंवा चुके एक शख्स ने शिक्षा पाने की ठानी. जी-तोड़ मेहनत और परेशानी के बाद उन्होंने खुद को शिक्षित कर लिया. अब दूसरे बच्चों को वे निःशुल्क शिक्षा दान दे रहे हैं.

जज्बे को सलाम
जज्बे को सलाम

बिलासपुर : साल 2017 में अक्षय कुमार और भूमि पेडनेकर अभिनीत एक फिल्म आई थी. फिल्म का नाम था 'टॉयलेट एक प्रेम कथा'. इसके एक सीन में अक्षय कुमार का एक डायलॉग था, समस्या तब तक समस्या नहीं लगती, जब तक वह निजी न हो. यहां इस फिल्म का जिक्र इसलिए क्योंकि जन्म से ही अपनी दोनों आंखें खो चुके एक शिक्षक (Teacher) ने अंधपन में पढ़ाई करने में काफी परेशानी झेली. इसके बाद उन्होंने जी-तोड़ मेहनत और लगन से पढ़ाई पूरी कर ली. अब वे बच्चों को शिक्षा दान (education donation) दे रहे हैं. उनका मानना है कि जो समस्या उन्होंने झेली वह कोई और न झेल सके, इसलिए बच्चों को शिक्षा ज्ञान दे रहे हैं.

निःशुल्क शिक्षा दे बच्चों को बना रहे काबिल

बिलासपुर के दोनों आंखों से दिव्यांग शिक्षक मुरितराम कश्यप शिक्षा का अलख जगाने आसपास के बच्चों को फ्री में ट्यूशन दे रहे हैं. ताकि जो गरीब और लाचार बच्चे पढ़ाई से वंचित न रह जाएं. अपनी पढ़ाई पूरी कर वे भी अपने शहर, प्रदेश और देश का नाम रोशन कर सकें. वैसे तो वे बचपन से ही दिव्यांग हैं, लेकिन उन्होंने स्कूली शिक्षा ग्रहण करने के लिए काफी परेशानियां उठाई हैं. इसीलिए वह बच्चों को मुफ्त में पढ़ाकर उन्हें काबिल बनाने का प्रयास कर रहे हैं.

दूसरों की जिंदगी में उजाला ला रहे मुरितराम.

6 साल की उम्र में ही हुआ चेचक, चली गई आंखों की रोशनी

मुरितराम कश्यप बिलासपुर के सिरगिट्टी क्षेत्र के रहने वाले हैं. इन्होंने जिंदगी भर रेलवे में सर्विस की, लेकिन सर्विस के दौरान ही उन्होंने शिक्षा को जन-जन तक पहुंचाने की मन में ठान ली थी. यही कारण है कि जब भी मौका मिला वे शिक्षा का दान करने से हिचके नहीं. उन्होंने ने बताया कि 6 साल की उम्र में ही उन्हें चेचक हुआ था. चेचक की वजह से ही उनकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई थी. तब वे जांजगीर जिले के मलदा गांव में अपने माता-पिता के साथ रहते थे.

पारिवारिक जिम्मेदारी के कारण मैट्रिक से आगे पढ़ नहीं पाए

मुरितराम में पढ़ाई करने की बचपन से ही ललक थी. इस कारण वे बिलासपुर के जूनी लाइन स्थित शासकीय ब्रेल स्कूल में आकर पढ़ाई करने लगे. वहीं हॉस्टल में रहते-रहते उन्होंने चेयर केनिन का काम भी सीख लिया था. उसी समय रेलवे के एक बड़े अधिकारी स्कूल घूमने पहुंचे. उन्होंने काम करता देख उन्हें रेलवे में जॉब का ऑफर दिया और रेलवे में चेयर केनिन के काम में लगा दिया. फिर उन्होंने नौकरी करते-करते ही मैट्रिक की परीक्षा पास की. वे आगे की पढ़ाई नहीं कर सके क्योंकि परिवार की जिम्मेदारी उन पर आ गई थी.

बड़े-बड़े पदों पर काबिज हैं उनके पढ़ाए हुए बच्चे

वे ब्रेल लिपि के माध्यम से पढ़ते हैं और बच्चों को पढ़ाते भी हैं. लेकिन उनके पास पढ़ने वाले बच्चे सामान्य हैं, वे दिव्यांग नहीं हैं. मुरितराम पहले बच्चों के स्कूल सब्जेक्ट की बुक ब्रेल लिपि में लेते हैं. फिर उसका अध्ययन कर बच्चों को पढ़ाते हैं. उनका कहना है कि वह कम पढ़े हैं, लेकिन उनके पढ़ाए बच्चे आज बड़े-बड़े पोस्ट पर सर्विस कर रहे हैं.

पत्नी ने कहा-सुखमय बीत रहा जीवन

शिक्षक की पत्नी ने बताया कि जब उनकी शादी हुई थी तो दोनों पति-पत्नी के अलावा उनके साथ कोई नहीं रहता था. तब पति के ड्यूटी जाने आने पर उनके बारे में चिंता होती थी. फिर बाद में उन्हें समझ आया कि उनके पति को सहारे की जरूरत नहीं है. वे खुद अपना सारा काम कर लेते हैं. तब से अब तक उन्हें उनकी दिव्यांगता से कोई दिक्कत नहीं हुई और जीवन सुखमय बीत रहा है.

बेटा बोला-जो अधिकांश सक्षम पिता नहीं कर पाते, मेरे पिता ने किया

मुरितराम के चार बच्चे हैं, दो लड़के और दो लड़की. बच्चे भी हाई एजुकेटेड हैं और सर्विस कर रहे हैं. उनके एक बेटे ने बताया कि उन्हें गर्व होता है कि उनके पापा ने दिव्यांग होकर भी इतने अच्छे से उनकी परवरिश की है. उसे अपने दोस्तों को घर लाकर अपने पिता से मिलवाने पर गर्व महसूस होता है. क्योंकि अधिकांश पिता शारीरिक रूप से सक्षम होते हुए भी अपने बच्चों की परवरिश अच्छे से नहीं कर पाते, लेकिन उनके पिता ने दिव्यांग होते हुए भी अपना फर्ज निभाया है. वहीं उनसे पढ़ने वाली छात्रा ने बताया कि उसरे कई जगह ट्यूशन ली है, लेकिन यहां उसे जितने अच्छे से समझ आता है कहीं और ऐसी पढ़ाई नहीं होती.

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