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DUSU Election: तीन साल बाद होंगे छात्र संघ के चुनाव, जानें क्यों जरूरी है यह इलेक्शन, क्या है छात्रों की राय

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Published : Jul 14, 2023, 12:24 PM IST

Updated : Jul 14, 2023, 10:27 PM IST

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संगठन (डूसू) का चुनाव काफी अहम माना जाता है, क्योंकि एक तो इससे विश्वविद्यालय के छात्रों की समस्याओं का निराकरण हो पाता है तो वहीं ये छात्र नेता आगे चलकर देश की राजनीति में अपनी ताकत दिखाते हैं. कोरोना के चलते पिछले तीन साल से डूसू के चुनाव नहीं हो रहे थे, वहीं अब इस साल इसकी हलचल देखने को मिल रही है.

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डूसू चुनाव को लेकर छात्रों की राय

नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में इस साल आखिरकार छात्र संघ का चुनाव होगा. करीब तीन साल बाद डीयू में इस संबंध में हलचल देखने को मिल रही है. कोरोना महामारी के चलते तीन साल से छात्र संघ का चुनाव नहीं हो पाया है. साल 2019 में जब छात्रसंघ का चुनाव हुआ था, तब एबीवीपी ने बाजी मार ली थी. एबीवीपी से अक्षित दहिया अध्यक्ष बने थे. हालांकि, इसके बाद डूसू को नया अध्यक्ष नहीं मिल पाया है. बीते तीन साल में छात्रों को कौन-कौन सी समस्याओं से जूझना पड़ा और डीयू में पढ़ने वाले छात्रों के लिए छात्र संघ का चुनाव क्यों जरूरी हैं? इसको लेकर जानते हैं डीयू के कुछ छात्र क्या सोचते हैं?

डीयू के विभिन्न कॉलेज के छात्र क्या बोले
दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में परास्नातक के छात्र शेखर सुमन ने बताया कि अगर चुनाव होते हैं तो डीयू प्रशासन बधाई के पात्र हैं, क्योंकि तीन साल में कोरोना महामारी के चलते चुनाव नहीं हो पाए. छात्रों की मांग को विद्यार्थियों के शीर्ष नेतृत्व द्वारा उठाया जाए. डूसू की तरफ से यह एक महत्वपूर्ण पहल होगा. वर्तमान में स्थिति ऐसी है कि छात्रों के मांग को उठाया नहीं जा पा रहा है.

शेखर ने बताया कि छात्रों की मांगों को कोई प्रथिमिकता से नहीं देखता था, जिसके कारण उनका आकादमिक क्षेत्र प्रभावित हो रहा था. डीयू प्रशासन अपने मनमाने रवैये से सारी गतिविधियां संचालित कर रही थी, जिसमें छात्रों के हित को प्रथिमिकता नहीं दी जा रही थी. ओपन बुक परीक्षा से समस्या हुई. कॉलेज में फीस वृद्धि, वाटर कूलर, जैसी कई समस्याओं से जूझना पड़ा. शेखर के मुताबिक यह चुनाव इसलिए जरूरी है क्योंकि छात्रों को एक हौसला रहता है कि उनकी बात सुनने के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन है.

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आर्ट्स फैकल्टी में तीसरे वर्ष के छात्र अनमोल सिंह ने बताया कि छात्र संघ का चुनाव होना जरूरी है और यह होना चाहिए. तीन साल से चुनाव नहीं होने से छात्रों के हितों का हनन हो रहा है. उनके अधिकार की आवाज को कोई नहीं उठा रहा है. कॉलेज में भ्रष्टाचार अपनी चरम पर है. आम छात्रों की बात नहीं सुनी जा रही है, इसलिए हमें लगता है कि छात्र संघ का चुनाव होना चाहिए.

जाकिर हुसैन कॉलेज में हिंदी विभाग से परास्नातक के छात्र पीयूष पांडे ने बताया कि छात्र संघ का चुनाव इसलिए जरूरी है, क्योंकि छात्र बालक नहीं होते, इस देश के युवा नागरिक होते हैं. सत्ता का विकेंद्रीकरण जरूरी है. यह आवश्यक है कि वीसी ऑफिस से निकलकर छात्रों के हाथ में कुछ पावर आए. उन्होंने कहा कि जितना जल्दी हो छात्रसंघ का चुनाव होना चाहिए. अब विलंब छात्रों के हित के लिए ठीक नहीं है.

तीन साल जब एक व्यक्ति रहा अध्यक्ष
साल 1974 में अरुण जेटली डूसू के अध्यक्ष बने थे. इनका तीन साल तक कार्यकाल रहा. इस दौरान आपातकाल लगा था, जिसके चलते डीयू में छात्र संघ का चुनाव नहीं हो पाया था. इसके बाद एबीवीपी के अक्षित दहिया हैं, जो साल 2019 में डूसू के अध्यक्ष रहे. कोरोना के कारण चुनाव नहीं होने से इनका तीन साल का कार्यकाल रहा है.

कोरोना से पहले हुआ था चुनाव
देश में कोरोना महामारी से पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी में साल 2019 में छात्रसंघ का चुनाव हुआ था. इस चुनाव में तीन पद एबीवीपी ने जीती थी. वहीं एक पद पर कांग्रेस के छात्र संगठन भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ (एनएसयूआई) को जीत मिली थी. इसके बाद से अभी तक डीयू में छात्र संघ का चुनाव नहीं हुआ है. दिल्ली यूनिवर्सिटी में हर साल चार पदों के लिए छात्रसंघ का चुनाव होता है. चार पद कुछ इस प्रकार हैं- अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव और संयुक्त सचिव. इन चार पद के लिए एबीवीपी, एनएसयूआई जोर-शोर से छात्रों को अपनी और खींचने के लिए तमाम कोशिश करते हैं.

डूसू चुनाव जीतने के बाद अरुण जेटली. (फाइल फोटो)
डूसू चुनाव जीतने के बाद अरुण जेटली. (फाइल फोटो)

छात्रसंघ चुनाव जीतने के बाद राजनीति में बने दिग्गज
दिल्ली यूनिवर्सिटी का छात्रसंघ चुनाव जीतकर आज वह छात्र नेता राजनीति के दिग्गज बन गए हैं. कई मंत्री बने तो कई आज मुख्य राजनीति पार्टियों के मुख्य प्रवक्ता हैं. कांग्रेस में दिग्गज नेताओं में से एक अजय माकन जो कि दिल्ली में कांग्रेस की सरकार में मंत्री भी रहे. माकन ने 1985 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्र संघ चुनाव जीता और अध्यक्ष बने. साल 1993, 1998, 2003 में विधायक का चुनाव जीता और 2004 में सांसद बने. इस दौरान उन्हें आवास और शहरी विकास मंत्री, खेल मंत्री और गृह राज्य मंत्री भी बनाया गया.

पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली
1974 में दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष बने. साल 2014 में मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में उन्हें वित्त मंत्रालय का जिम्मा दिया गया. जेटली के नाम पर आज दिल्ली के फिरोजशाह कोटला स्टेडियम को अरुण जेटली स्टेडियम के नाम से जाना जाता है. भाजपा के दिग्गज नेताओं में से एक हैं पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय गोयल. गोयल 1977-1978 के दौरान एबीवीपी से दिल्ली यूनिवर्सिटी का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद वह भाजपा के लिए उन्होंने कई पदों पर काम किया. दिल्ली भाजपा में गोयल का नाम बड़े नेताओं की लिस्ट में शामिल है.

कांग्रेस की दिग्गज नेता अलका लांबा डूसू की प्रेसिडेंट रही हैं. साल 1995 में अलका लांबा ने एनएसयूआई से DUSU का चुनाव लड़ा और जीता. इसके बाद वह कांग्रेस से जुड़कर काम करने लगीं. वह दिल्ली में साल 2015 में केजरीवाल सरकार में चांदनी चौक से विधायक रहीं. बाद में उन्होंने आप से इस्तीफा देकर कांग्रेस ज्वॉइन किया. आज अलका कांग्रेस की मुख्य नेताओं में से एक हैं.

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एबीवीपी छात्रों के बीच में जाएगी
डीयू में 16 अगस्त से नए सत्र के लिए क्लासेस शुरू होंगी. एबीवीपी के कार्यकर्ता छात्रों के बीच जाएंगे. एकेडमिक कैलेंडर देंगे. उन्हें बताएंगे कि कब से क्लासेस शुरू हो रही हैं. उनकी प्रतिभा के बारे में उन्हें जानकारी देंगे. साथ ही कॉलेज में आने वाली समस्या से उन्हें अवगत कराने के अलावा उनकी समस्या का समाधान भी करेंगे. एबीवीपी इस दौरान सदस्यता अभियान भी चलाएगी. एबीवीपी का सदस्य बनने के लिए 5 रूपए का शुल्क लिया जाता है. यह शुल्क बाद में छात्र हितों के लिए खर्च किए जाते हैं.

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Last Updated :Jul 14, 2023, 10:27 PM IST
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