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घड़ी की सुईयां 12 पर पहुंचते ही चर्च में हुई विशेष प्रार्थना, लोगों ने कहा- Merry Christmas

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Published : Dec 25, 2022, 7:33 AM IST

पूरे देश में इस वक्त क्रिसमस की धूम है और लगभग दो सालों के बाद, लोग एक बार फिर क्रिसमस का त्योहार मनाने के लिए उत्साहित हैं. हालांकि नए कोरोना मामलों के कारण लोग थोड़े सतर्क जरूर हैं लेकिन उनमें खुशी है कि वे इस साल बिना कोरोना पाबंदियों के क्रिसमस मना पाएंगे. इसी क्रम में रात 12 बजे, दिल्ली के गिरजाघरों में विशेष प्रार्थना (people did special prayer in church on christmas) की गई.

people did special prayer in church on christmas
people did special prayer in church on christmas

नई दिल्ली: देश में कोरोना महामारी की आशंका के बीच क्रिसमस का त्योहार धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है. शनिवार रात जैसे ही घड़ी की तीनों सुइयां 12 पर पहुंची, चर्च में विशेष प्रार्थनाएं शुरू हो (people did special prayer in church on christmas) गईं. दिल्ली के सभी चर्चों में शनिवार देर शाम से ही लोग विशेष प्रार्थना के लिए जुटने लगे थे. यहां के गोल मार्केट में स्थित सेक्रेड हार्ट कैथेड्रल चर्च, दिल्ली के सबसे खूबसूरत और मशहूर चर्चों में से एक है, जहां राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी प्रार्थना में हिस्सा लेने पहुंचीं. क्रिसमस के लिए चर्च परिसर में एक बड़ी स्‍क्रीन भी लगाई गई, जिससे विजिटर्स ने चर्च के अंदर चल रही गतिविधियों को देख प्रार्थना की. क्रिसमस की पूर्व संध्या पर चर्च में सभी लोग इकट्ठा हुए और मध्य रात्रि को विशेष प्रार्थना में एक साथ मोमबत्ती जलाकर प्रार्थना की. साथ ही मध्यरात्रि मास, कैरल गायन, प्रार्थना गायन कर एक दूसरे को बधाईयां भी दी.

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सेक्रेड हार्ट कैथेड्रल चर्च में पहुंची राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू

प्रभु यीशु के जन्म की मनाई गई खुशी: क्रिसमस का पर्व प्रभु यीशू के जन्म की खुशी में मनाया जाता है. प्रभु यीशु (जीसस क्राइस्‍ट) को भगवान का बेटा यानी सन ऑफ गॉड कहा जाता है. ईसाईयों की मान्यता के मुताबिक, प्रभु यीशु का जन्म 4 ईसा पूर्व हुआ था. उनके पिता का नमा यूसुफ और मां का नाम मरियम था. प्रभु यीशु का जन्म एक गौशाला में हुआ था, जिसकी पहली खबर गडरिया लोगों को मिली थी और उसी समय एक तारे ने ईश्वर के जन्म की भविष्यवाणी को सत्य बताया था.

प्रभु यीशु ने 30 साल की आयु से मानव सेवा में जुट गए थे. वह घूम-घूम कर लोगों को संदेश दिया करते थे. प्रभु यीशु के इस कदम से यहूदी धर्म के कट्टरपंथी लोग नाराज हो गए और उनका विरोध करना शुरू कर दिया, जिसके बाद एक दिन रोमन गवर्नर के सामने प्रभु यीशु को लाया गया और फिर उन्हें सूली पर चढ़ा दिया गया. मान्यताओं के मुताबिक, सूली पर चढ़ाए जाने के बाद ईश्‍वर के चमत्‍कार से यीशु फिर से जीवित हो गए और फिर उन्‍होंने ईसाई धर्म की स्‍थापना की.

क्रिसमस मनाने की शुरुआत: ईसाईयों के पवित्र ग्रंथ बाइबल में प्रभु ईसा मसीह की जन्मतिथि की कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है. लेकिन इसके बावजूद हर वर्ष 25 दिसंबर के दिन ही उनका जन्मदिन मनाया जाता है. इस तारीख को लेकर कई बार विवाद भी हुआ है. रोमन कैलंडर के अनुसार पहली बार 336 ईसवी को 25 दिसंबर को पहली बार आधिकारिक तौर पर प्रभु यीशु का जन्मदिन मनाया गया. कहते हैं तब से ही 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाया जाने लगा. वहीं, यह भी कहा जाता है कि पश्चिमी देशों ने चौथी शताब्‍दी के मध्‍य में 25 दिसंबर को क्रिसमस डे के रूप में मनाने की मान्‍यता दी. आधिकारिक तौर पर सन् 1870 में अमेरिका ने क्रिसमस के दिन फेडरेल हॉलिडे की घोषणा की थी.

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लोगों ने मोमबत्ती जलाकर की प्रार्थना

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सांता के बिना क्रिसमस अधूरा: क्रिसमस का त्यौहार सांता के बिना अधूरा है. सांता को लेकर प्रचलित एक कहानी के अनुसार, संत निकोलस का जन्म 340 ईसवी में 6 दिसंबर को हुआ था. बताया जाता है कि बचपन में ही इनके माता पिता का निधन हो गया था. बड़े होने के बाद वह एक पादरी बन गए. उन्हें लोगों की मदद करना काफी पसंद था. कहा जाता है कि वह रात में बच्चों को इस लिए गिफ्ट देते थे ताकि कोई उन्हें देख न सके. मान्यता है कि आगे चलकर यही संत निकोलस बाद में सांता क्लॉज बने.

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